
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के तमिलनाडु, केरल और लक्षद्वीप दौरे पर हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दौरे के पहले दिन तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का उद्घाटन किया और भारतीदासन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में भी शामिल हुए. पीएम मोदी ने तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में करीब 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से कई विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया.
प्रधानमंत्री मोदी का ये चुनावी साल में किसी राज्य का पहला दौरा भी है. ऐसे समय में जब बीजेपी को लेकर नॉर्थ बनाम साउथ की बहस भी छिड़ी हुई है, पीएम मोदी के इस दौरे के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे को कुछ ही महीने बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मिशन साउथ से जोड़कर देखा जा रहा है.
दक्षिण में विस्तार के लिए बीजेपी की रणनीति क्या है? इससे पहले इसकी चर्चा जरूरी है कि दक्षिण में बीजेपी के सामने चुनौतियां क्या हैं? दक्षिण के राज्यों में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हिंदी बेल्ट की पार्टी वाली इमेज से बाहर निकलने की है. गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों एजेंडा आजतक 2023 के मंच पर कहा था कि 2024 के चुनाव के बाद यह बहस समाप्त हो जाएगी. चुनावी साल की शुरुआत के साथ ही बीजेपी ने विपक्ष का दक्षिणी दुर्ग भेदने के लिए अपने सबसे बड़े चेहरे पीएम मोदी को मैदान में उतार दिया है तो इसके अपने रणनीतिक मायने भी हैं.
साउथ को लेकर क्या है बीजेपी की रणनीति
दक्षिण भारत की सियासत में पैर जमाने की जुगत में जुटी बीजेपी की रणनीति सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति और केंद्र सरकार की विकास योजनाओं के सहारे अपनी क्रेडिबिलिटी स्थापित करने के इर्द-गिर्द नजर आती है. मिशन साउथ में बीजेपी का फोकस कर्नाटक और तेलंगाना के बाद अब तमिलनाडु पर है. तमिलनाडु से बीजेपी को उम्मीद नजर आ रही है तो इसके पीछे 2021 के विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर पार्टी को मिली जीत भी है. हालांकि, तब बीजेपी ने एआईएमडीएमके के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और अब गठबंधन टूट चुका है.
तमिलनाडु को लेकर बीजेपी ने रणनीति में बदलाव किया. बीजेपी ने तमिल प्रदेश को साधने के लिए पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी को केंद्र बनाकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद तैयार की. साल 2022 में पहली बार काशी-तमिल संगमम का आयोजन हुआ और हाल ही में दूसरे काशी तमिल संगमम का भी आयोजन हुआ था. इस आयोजन में खुद पीएम मोदी ने भी शिरकत की थी.
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काशी-तमिल संगमम में भी पीएम के संबोधन का केंद्र तमिल साधु-संत-कवि और महापुरुष थे. पीएम मोदी ने अब तिरुचिरापल्ली से तमिलनाडु को करीब 20 हजार करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात तो दी ही, लगे हाथ साधु-संतों के साथ ही तमिलनाडु की समृद्ध भाषा और संस्कृति की भी चर्चा कर डाली. तमिलनाडु भाषा विवाद को लेकर चर्चा में रहता है और ऐसे में पीएम मोदी का भाषा और संस्कृति पर बात करना बीजेपी की सांस्कृति राष्ट्रवाद की रणनीति से ही जोड़कर देखा जा रहा है.
संगठन खड़ा करने की कवायद
कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण भारत के अधिकतर राज्यों में बीजेपी ठीक से अपना संगठन भी खड़ा नहीं कर पाई थी. पिछले कुछ साल में बीजेपी ने तेलंगाना, तमिलनाडु के साथ ही केरल और दूसरे राज्यों में संगठन खड़ा करने पर फोकस किया है. बीजेपी इसके लिए अपने तेलंगाना मॉडल को लेकर आगे रखकर काम कर रही है. तेलंगाना में बीजेपी ने तत्कालीन केसीआर सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन, परिवारवाद को लेकर सड़कों पर उतर आंदोलन किए और अब पार्टी तमिलनाडु में भी इसी फॉर्मूले पर बढ़ती दिख रही है.
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लोकप्रिय हस्तियों को पार्टी से जोड़ने पर फोकस
लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन का गणित साधने के साथ ही बीजेपी का फोकस लोकप्रिय हस्तियों को पार्टी से जोड़ने पर भी है. कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्यूलर के साथ गठबंधन हो या आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से, बीजेपी की इसी रणनीति का हिस्सा है. केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के चार लोकप्रिय चेहरों पीटी ऊषा, इलैयाराजा, वीरेंद्र हेगड़े और वी विजयेंद्र प्रसाद को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जाना भी बीजेपी की इसी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है.