
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सूबे में लागू पॉपुलेशन पॉलिसी को खत्म करने का ऐलान करते हुए नया कानून लाने का ऐलान कर दिया है. आंध्र प्रदेश में अब तक ऐसे लोग चुनाव नहीं लड़ सकते थे जिनके दो से अधिक बच्चे हों. नायडू सरकार ने अब ऐसा कानून लाने का ऐलान किया है जिसमें यह प्रावधान होगा कि निकाय चुनाव केवल वही लोग लड़ सकेंगे जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे. नायडू ने अपने फैसले के पीछे साउथ के राज्यों में बढ़ती बुजुर्ग आबादी के खतरे का हवाला दिया. अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी आह्वान कर दिया है कि लोग 16-16 बच्चे पैदा करें. साउथ के दो सीएम के बयानों से राष्ट्रीय राजनीति में नॉर्थ बनाम साउथ की बहस ने भी जोर पकड़ लिया है.
नॉर्थ बनाम साउथ की बहस क्यों
जनसंख्या को लेकर जिन दो मुख्यमंत्रियों के बयान आए हैं, उनमें से एक चंद्रबाबू नायडू एनडीए में हैं तो दूसरे स्टालिन इंडिया ब्लॉक में. दो विरोधी गठबंधनों में शामिल क्षेत्र पार्टियों के अगुवा पॉपुलेशन पॉलिसी के मुद्दे पर एक राय रखते नजर आ रहे हैं. हालांकि, दोनों के तर्क अलग-अलग हैं. चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश के गांवों में बढ़ती बुजुर्ग आबादी और युवाओं के शहरों की ओर पलायन से उत्पन्न हुई स्थिति का जिक्र करते हुए कहा है कि ऐसा ही रहा तो 2047 तक गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी. कई गांवों में केवल बुजुर्ग ही रह गए हैं. उन्होंने देश में 2.1 फीसदी प्रजनन दर के मुकाबले सूबे का औसत 1.6 होने का भी हवाला दिया है. वहीं, स्टालिन ने तो खुलकर संसदीय सीटों की संख्या का राग छेड़ दिया है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि पहले के लोग 16 संतान का आशीर्वाद देते थे. हालांकि, इसका मतलब 16 संतान नहीं बल्कि 16 तरह की संपत्ति होता था. अब ये आशीर्वाद कोई नहीं देता. उन्होंने कहा कि शायद अब समय आ गया है कि नए कपल 16-16 बच्चे पैदा करें. उन्होंने परिसीमन का जिक्र किए बिना संसद में साउथ की सीटों का जिक्र किया और कहा कि हमारी आबादी कम हो रही है जिसका असर हमारी लोकसभा सीटों पर भी पड़ेगा. क्यों ना हम 16-16 बच्चे पैदा करें.
किस रीजन में कितनी लोकसभा सीटें
नॉर्थ की बात करें तो हिंदी पट्टी में ही लोकसभा की कुल 225 सीटें हैं. हिंदी पट्टी में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश और पांच सीटों वाले उत्तराखंड के साथ ही 40 सीटों वाला बिहार, 14 सीटों वाला झारखंड, 29 सीटों वाला मध्य प्रदेश, 11 सीटों वाला छत्तीसगढ़, 25 सीटों वाला राजस्थान, 10 सीटों वाला हरियाणा, चार सीटों वाला हिमाचल प्रदेश और सात सीटों वाला केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल है. वहीं, दक्षिण भारत की बात करें तो इसमें पांच राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी भी आता है. आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25, तेलंगाना में 17, कर्नाटक में 28, तमिलनाडु में 39, केरल में 20 और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में एक लोकसभा सीट है.
जनसंख्या का सीटों से क्या नाता
चंद्रबाबू नायडू ने जब नई जनसंख्या नीति की बात करते हुए आंध्र ही नहीं, पूरे साउथ में जनसंख्या बढ़ाने पर जोर देते हुए लोगों का आह्वान किया तो चर्चा लोकसभा सीटों और परिसीमन की होने लगी थी. स्टालिन ने खुलकर सीटों की संख्या का जिक्र कर इस बहस को और हवा दे दी. अब सवाल है कि जनसंख्या का सीटों से क्या नाता है? दरअसल, इसके पीछे वह मानक है जिसके मुताबिक 10 लाख आबादी पर एक सांसद का प्रावधान है. जनसंख्या के अनुपात में सीटों का प्रावधान है और इसके लिए परिसीमन के जरिये सीटों की संख्या बढ़ाई जाती है.
लोकसभा की वर्तमान स्ट्रेंथ 545 सदस्यों की है जो 1971 की जनगणना पर आधारित है. 1951 की जनगणना के मुताबिक देश की आबादी 36 करोड़ थी जो 1971 की जनगणना में 50 के पार 55 करोड़ तक पहुंच गई. तब सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठाने शुरू किए. दक्षिण के राज्यों ने जागरुकता का परिचय देते हुए अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण के लिए तमाम कदम उठाए और सफल भी रहे लेकिन इसके उलट उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार जारी रही. साउथ के राज्यों ने जनसंख्या के आधार पर सीट बढ़ाने के प्रावधान किया और परिसीमन पर पहले सन 2000 और फिर 2026 तक के लिए रोक लगा दी गई थी.
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दक्षिण के राज्य जनसंख्या के आधार पर परिसीमन में सीटें बढ़ाने को अपने साथ अन्याय बताते हुए इसका विरोध करते हैं. दक्षिण के राज्यों का तर्क है कि हमने जनसंख्या नियंत्रण में योगदान दिया और अगर इस आधार पर सीटें बढ़ाई गईं तो यह हमारे साथ अन्याय होगा. दक्षिण के विरोध और सीटों की संख्या का जनसंख्या से नाता समझने के लिए वर्तमान तस्वीर को भी समझना होगा. इस समय हिंदी पट्टी के राज्यों में कुल 225 सीटें हैं और दक्षिण में 130. आंध्र प्रदेश की बात करें तो यहां 25 सीटें हैं. सूबे की आबादी करीब 5 करोड़ है और आबादी के लिहाज से सीटें बढ़ी तो सूबे में सीटों की संख्या दोगुनी होकर 50 तक ही पहुंचेगी. ऐसे ही तमिलनाडु में सीटों की संख्या 39 से बढ़कर 77 तक ही पहुंच सकेगी.
10 लाख वाले फॉर्मूले से सीटों में कहां होंगे आंध्र-तमिलनाडु?
इसके उलट हिंदी पट्टी के राज्यों में बिहार की ही बात करें तो सीटों की संख्या 40 से बढ़कर 131 पहुंच जाएगी. 19 करोड़ आबादी वाले यूपी में सीटें 80 से बढ़कर 131 पहुंच जाएंगी. संसद में दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत की सीटें अधिक बढ़ जाएंगी. दक्षिण की पार्टियों की चिंता यही है कि उत्तर भारत में बीजेपी मजबूत है और कहीं वह नॉर्थ की पॉलिटिक्स को ध्यान में रखकर सीटें बढ़ाने का फैसला ना कर ले. एक पहलू यह भी है कि बीजेपी हालिया आम चुनाव में लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटी तो लेकिन पिछले दो चुनावों जितनी मजबूती के साथ नहीं.
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बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र की एनडीए सरकार में चंद्रबाबू नायडू भी अहम घटक हैं. चंद्रबाबू के साथ और साउथ के सांसदों के विरोध की आशंका होगी. साउथ की पार्टियों की रणनीति सन 2000 की ही तरह फिलहाल सरकार पर दबाव बनाकर कम से कम 20 साल के लिए सीटें बढ़ाने पर रोक एक्सटेंड कराने की हो सकती है लेकिन हर बार दबाव की ये रणनीति कारगर हो, ये जरूरी नहीं. यह भी एक वजह हो सकती है कि भविष्य में ऐसी स्थिति न आए कि सत्ता का सेंटर नॉर्थ शिफ्ट हो जाए, इससे बचने के लिए रणनीति के तहत साउथ की पार्टियां अब जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दे रही हैं.
नायडू की पॉलिसी से एनडीए में खींचतान के आसार क्यों
अब सवाल ये भी है कि नायडू की नई पॉलिसी से एनडीए में खींचतान के आसार क्यों हैं? दरअसल देश में नई जनसंख्या नीति 2000 को लागू करने का श्रेय भी बीजेपी को जाता है. बीजेपी की अगुवाई वाली सरकारें, एनडीए की राज्य सरकारें जब दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को लेकर कठोर नियम बना रही हैं, नायडू के इस ऐलान से खींचतान के आसार बढ़ गए हैं. महाराष्ट्र में एक पुलिसकर्मी की मृत्यु के बाद उसके आश्रित अनुकंपा नियुक्ति की सुविधा से बस इसलिए वंचित रह गए क्योंकि उसकी दो से अधिक संतानें थीं.
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यूपी की बीजेपी सरकार भी 2021 में नई पॉपुलेशन पॉलिसी लेकर आई थी जिसमें दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने, सरकारी योजनाओं में सब्सिडी का लाभ नहीं देने और सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन से रोकने की बात थी. ऐसे समय में जब देश की तमाम बीजेपी और एनडीए सरकारें जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए प्रावधान कड़े कर रही हैं, आंध्र प्रदेश के सीएम का ऐलान एक तरह से पॉलिसी शिफ्ट ही है.