
बहुत कम लोगों को पता है कि समाजसेवी मदर टेरेसा को भारत रत्न दिलाने में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उन्हें भारत रत्न देने का प्रस्ताव खुद प्रणब मुखर्जी की तरफ से दिया गया था, लेकिन मदर टेरेसा को भारत रत्न दिए जाने को लेकर काफी विवाद भी हुआ. वो विवाद क्या था और उसे सुलझाने में प्रणब दा की क्या खास भूमिका थी? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल बताते हैं कि मदर टेरेसा को भारत रत्न देते हुए एक बहुत बड़ी कंट्रोवर्सी हो गई थी. सवाल था कि टेरेसा भारतीय नागरिक नहीं थीं तो उन्हें भारत रत्न कैसे दिया जा सकता है.
घोषाल बताते हैं कि इंदिरा गांधी इस बात को लेकर काफी परेशान हो गई थीं क्योंकि मुद्दा काफी बड़ा हो गया था. इसके अलावा मदर टेरेसा को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भी प्रणब मुखर्जी की तरफ से रखा गया था. भारत रत्न की एक प्रक्रिया होती है. ज्यूरी कमेटी होती है, फिर प्रस्ताव को होम मिनिस्ट्री के पास भेजा जाता है और फिर कैबिनेट के पास. प्रक्रिया के दौरान इंदिरा गांधी के सामने सवाल रखा गया कि किसी दूसरे देश के नागरिक को भारत रत्न कैसे दिया जा सकता है?
प्रणब मुखर्जी को टैक्स्ट बुक मैन कहा जाता है. उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें कहा गया हो कि सिर्फ भारतीय नागरिक को ही भारत रत्न दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि मदर टेरेसा काफी समय से यहां रह रही हैं, भारतीयों की सेवा कर रही हैं. तो वो भी अब भारतीय हो गई हैं इसलिए नागरिक नहीं होने की वजह से भारत रत्न नहीं देने का सवाल ही नहीं उठता.
बाद में प्रणब दा के दावे को संविधान विशेषज्ञों ने सही माना और फिर मदर टेरेसा को भारत रत्न दिए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली. 1980 में मदर टेरेसा को भारत रत्न दिया गया. इससे एक साल पहले 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
मदर टेरेसा को लेकर आरएसएस का आरोप था कि गरीबों की सेवा करने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य लोगों को ईसाई बनाना था, लेकिन प्रणब मुखर्जी ने संविधान का हवाला देते हुए और नियमों का पालन करते हुए ना केवल अपने विरोध में उठने वाली आवाज को शांत किया, बल्कि मदर टेरेसा को भारत रत्न भी दिलवाया.
इसी आधार पर आगे चलकर अब्दुल गफ्फार खान, नेल्सन मंडेला को भी भारत रत्न दिया गया. सीमांत गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान ताउम्र उदार और गांधीवादी रहे. वह भारत के बहुत करीब रहे. 1987 में उन्हें भारत रत्न की उपाधि दी गई थी.
नेल्सन मंडेला को भी अफ्रीका के 'गांधी' के नाम से जाना जाता है. रंग भेद के खिलाफ लड़ाई में नेल्सन मंडेला के योगदान को कोई भुला नहीं सकता. महात्मा गांधी की तरह अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले मंडेला ने रंग भेद के खिलाफ लड़ते हुए 27 साल जेल में काटे थे. 1990 में मंडेला को भारत रत्न से सम्मानित किया गया.