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राष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए बुधवार से नामांकन पत्र भरने की प्रक्रिया एक तरफ शुरू हो रही है तो दूसरी तरफ सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने ही सियासी गोलबंदी के लिए मशक्कत शुरू कर दी है. एनडीए के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारने को लेकर दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि सारा विपक्ष एकजुट होकर क्या एनडीए को राष्ट्रपति के चुनाव में मात दे सकता है?
राष्ट्रपति चुनाव में कुल कितने वोट
राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभा के सदस्य वोट डालते हैं. 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में से 233 सांसद ही वोट डाल सकते हैं. लोकसभा के सभी 543 सदस्य वोटिंग में हिस्सा लेंगे, जिनमें वो भी सीटें शामिल हैं जहां पर उपचुनाव हो रहे हैं. इसके अलावा सभी राज्यों के कुल 4 हजार 33 विधायक भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डालेंगे.
राष्ट्रपति चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या फिलहाल 4 हजार 809 होगी. हालांकि, इनके वोटों की वैल्यू अलग-अलग होती है. इस तरह से लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा सदस्यों के वोटों की वैल्यू मिलाकर देखते हैं तो वोटर्स के वोटों की कुल वैल्यू 10 लाख 86 हजार 431 होती है. इस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए आधे से एक वोट ज्यादा की जरूरत होगी. यानी, राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए कम से कम 5,43,216 वोट चाहिए होंगे.
एनडीए-विपक्ष में किसका पलड़ा भारी?
राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने वाले इन सियासी गठबंधनों की ताकत की बात करें तो कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन के पास फिलहाल 23 फीसदी के लगभग वोट हैं जबकि बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास लगभग 48 प्रतिशत वोट हैं. ऐसे में यूपीए के मुकाबले में तो बीजेपी को बड़ी बढ़त हासिल है, लेकिन अगर सभी विपक्षी दल मिलकर संयुक्त तौर पर कोई उम्मीदवार खड़ा करते हैं तो सियासी समीकरण बदल जाएंगे.
देश के सभी क्षेत्रीय दलों ने उसे अपना समर्थन देते हैं तो एनडीए के उम्मीदवार के लिए समस्या खड़ी हो सकती है, क्योंकि बीजेपी विरोधी सभी दलों के एकजुट होने की स्थिति में उनके पास एनडीए से करीब दो प्रतिशत ज्यादा यानी 51 प्रतिशत के लगभग वोट हो जाते हैं. इसलिए बीजेपी नेतृत्व इसी दो प्रतिशत वोट की खाई को पाटने के मिशन में जुट गया है तो विपक्षी दल साझा उम्मीदवार को उतारने के लिए मशक्कत शुरू कर दिए हैं.
एनडीए के पास कुल कितने वोट?
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में जेडीयू, एआईएडीएमके, अपना दल (सोनेलाल), एलजेपी, एनपीपी, निषाद पार्टी, एनपीएफ, एमएनएफ, एआईएनआर कांग्रेस जैसे 20 छोटे दल शामिल हैं. इस तरह से एनडीए के पास कुल 10,86,431 में से करीब 5,35,000 मत हैं, जिसमें उसके सहयोगियों दलों को वेट शामिल हैं. मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से एनडीए को अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए 13 हजार वोटों की और जरूरत पड़ेगी. बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास कुल वोट का करीब 48 फीसदी वोट है.
विपक्षी दलों के पास कुल कितने वोट?
कांग्रेस के अगुवाई वाले यूपीए के पास अभी दो लाख 59 हजार 892 वैल्यू वाले वोट हैं. इनमें कांग्रेस के अलावा, डीएमके, शिवसेना, आरजेडी, एनसीपी जैसे दल शामिल हैं. वहीं, अन्य दलों के वोट को देखें तो 2 लाख 92 हजार 894 वोट हैं, जिनमें टीएमसपी, सपा, वाईएसआर, टीआरएस, बीजेडी, आम आदमी पार्टी, लेफ्ट पार्टी शामिल हैं. इस तरह से विपक्ष के सारे दल एक साथ आते हैं तब उनका वोट करीब 51 फीसदी हो रहा है. इस तरह से विपक्षी दल एनडीए को टक्कर देने की स्थिति में नजर आएंगे.
पटनायक-जगन रेड्डी किंगमेकर
हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव में ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश में सरकार चला रही वाईएसआर कांग्रेस सबसे भूमिका में है. बीजेडी के पास 31 हजार से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हैं और वाईएसआरसीपी के पास 43,000 से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हैं. ऐसे में इनमें से किसी एक के समर्थन से भी एनडीए आसानी से जीत हासिल कर सकती है, लेकिन अगर विपक्ष की ओर से कोई भी दल साथ नहीं आता और विपक्षी दल के साझा उम्मीदवार के पक्ष में मजबूती से खड़े रहते हैं तो एनडीए के लिए राष्ट्रपति चुनाव में अपने उम्मीदार को जिताना आसान नहीं होगा.
ममता बनर्जी की दिल्ली में बैठक
विपक्ष की कोशिश साझा उम्मीदवार के लिए ऐसे नाम की तलाश करना है, जो तमाम विपक्षी दलों के साथ-साथ नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी को भी साथ ले सके. इसी के मद्देनजर ममता बनर्जी ने विपक्षी नेताओं को लेटर लिखकर एक संयुक्त रणनीति बनाने की बात कही है, जिसके लिए बुधवार को नई दिल्ली में एक मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल और सीताराम येचुरी सहित 22 नेताओं को बुलाया गया है, जिसमें कुल 8 राज्यों के सीएम भी शामिल हो सकते हैं.
ऐसे में अगर विपक्ष छोटे दलों को साथ लाने में कामयाब हुआ तो बीजेपी के लिए थोड़ी मुश्किल जरूर हो सकती है, लेकिन अभी पलड़ा बीजेपी के पक्ष में झुका नजर आता है. हालांकि, विपक्ष में इस मुद्दे पर बिखराव भी है. ऐसे में देखना है कि विपक्ष क्या एक साथ राष्ट्रपति चुनाव में आ सकेगा?