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दलित सियासत, हिंदू एकता और 80-20 का एजेंडा... दीक्षाभूमि से मोदी ने एक साथ साधे कई निशाने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागपुर में दीक्षाभूमि से दलित पॉलिटिक्स से हिंदू एकता और उत्तर से पूर्वोत्तर तक, एक साथ कई निशाने साधे. पीएम ने समावेशी भारत की बात भी की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटोः पीटीआई) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटोः पीटीआई)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन पहले महाराष्ट्र के नागपुर में थे. संघभूमि और दीक्षाभूमि, ये दोनों संतरों के इस शहर की पहचान से जुड़े हैं और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दौरे के दौरान इन दोनों ही स्थलों का दौरा किया. पीएम मोदी दीक्षाभूमि पर बने उस स्तूप के भीतर भी गए जहां संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की अस्थियां रखी गई हैं. उन्होंने बाबासाहब को श्रद्धा सुमन अर्पित किए और विजिटर्स बुक में लिखा, "विकसित और समावेशी भारत का निर्माण ही डॉक्टर आंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी." प्रधानमंत्री के दीक्षाभूमि जाने और विजिटर्स बुक में लिखे संदेश में समावेशी भारत की बात, दोनों के ही सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं. 

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पीएम ने एक तीर से साधे कई निशाने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीक्षा भूमि जाकर, समावेशी भारत की बात कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. पीएम के समावेशी भारत की बात को सामाजिक न्याय के साथ ही दलित पॉलिटिक्स, बुद्धिस्ट पॉलिटिक्स और हिंदुत्व की एकता, कई समीकरण साधने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, साल के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव हैं और वहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का मुकाबला विपक्षी महागठबंधन से है. महागठबंधन की अगुवाई लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) कर रहा है. लालू की पॉलिटिक्स की पिच भी सामाजिक न्याय ही रहा है.

विपक्षी पार्टियां पिछले लोकसभा चुनाव में यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश करती नजर आईं कि बीजेपी जीती तो बाबासाहब का संविधान बदल देगी. चुनावी जनसभाओं से लेकर संसद सदस्यता की शपथ लेने तक, विपक्षी दलों के प्रमुख नेता भी संविधान की प्रतियां लहराते नजर आए थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी अकेले दम बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई तो इसके पीछे भी संविधान बदलने के नैरेटिव की ही मुख्य भूमिका मानी गई. पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह की डॉक्टर आंबेडकर को लेकर टिप्पणी को भी विपक्षी नेताओं ने बाबासाहब का अपमान बताते हुए उनके और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.

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सामाजिक न्याय की पिच

बिहार में चुनाव से पहले सामाजिक न्याय की पिच से लेकर संविधान तक, बीजेपी पहले से ही अलर्ट मोड में है. पीएम के दीक्षाभूमि दौरे को जहां इस नैरेटिव को काउंटर करने की बीजेपी की कोशिश से जोड़ा जा रहा है. वहीं, समावेशी भारत की बात को जातिगत जनगणना के मुद्दे की काट के रूप में देखा जा रहा है. एक पहलू ये भी है कि बिहार की दलित पॉलिटिक्स के दो बड़े चेहरे चिराग पासवान और जीतनराम मांझी एनडीए में हैं, केंद्र में मंत्री भी हैं. वहीं, अब कांग्रेस ने दलित चेहरे (राजेश कुमार) को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. ऐसे में एनडीए दलित पॉलिटिक्स की पिच पर विपक्ष के लिए किसी भी तरह का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता.

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80-20 का एजेंडा

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी चुनाव 2022 के पहले कहा था कि ये 80 बनाम 20 की लड़ाई है. सीएम योगी ने हाल के दिनों में फिर से यह कहा है कि 2027 का यूपी चुनाव 80-20 का होगा. योगी आदित्यनाथ ने 80-20 का मतलब समझाते हुए ये भी जोड़ा कि बीजेपी 80 और विपक्षी दलों को 20 फीसदी वोट मिलेंगे. सूबे में करीब 20 फीसदी मुस्लिम हैं और सीएम योगी की बात को बीजेपी के यूनिफाइड हिंदू वोटबैंक के एजेंडे से जोड़कर भी देखा जा रहा है. सामान्य वर्ग के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग में भी बीजेपी पहले से ही सबसे बड़ी पार्टी है. ऐसे में बीजेपी की नजर अब दलितों को भी अपने पाले में लाने, और अधिक मजबूती से जोड़ने पर है.

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बुद्धिस्ट पॉलिटिक्स और पूर्वोत्तर

बौद्ध धर्म के अनुयायियों की तादाद देश में एक फीसदी से भी कम है लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में ये प्रभावी स्थिति में हैं. बौद्ध बाहुल्य पूर्वोत्तर के अधिकतर राज्यों में बीजेपी या बीजेपी के सहयोगी दलों की सरकार है. ऐसे में पीएम मोदी के दीक्षाभूमि जाने से पूर्वोत्तर के राज्यों को भी एक संदेश जाएगा.

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