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कहीं गठबंधन की मजबूरी, कहीं 20 साल का सूखा... दक्षिण भारत में कांग्रेस को संजीवनी दे पाएगी राहुल गांधी की यात्रा?

कांग्रेस अपने खोए जनाधार को वापस पाने की जुगत में जुटी है. कांग्रेस को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दक्षिण भारत के राज्यों में उमड़े जनसैलाब से संजीवनी की आस है तो वहीं अलग-अलग राज्यों में सियासी हालात भी अलग हैं. दक्षिण भारत में 130 लोकसभा सीटें आती है, क्या कांग्रेस साउथ से फिर उठ खड़ी हो पाएगी?

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ रहे लोग (फाइल फोटोः ट्विटर) राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ रहे लोग (फाइल फोटोः ट्विटर)
मौसमी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:37 PM IST

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी का खोया जनाधार वापस पाने की जुगत में भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की इस यात्रा की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई. दक्षिण भारत के पांच राज्यों से गुजरते हुए राहुल गांधी की इस यात्रा का रुख अब उत्तर की तरफ बढ़ने लगा है. सोमवार से राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' महाराष्ट्र में प्रवेश कर गई है, जो कांग्रेस के लिए किसी 'अग्नि पथ' से कम नहीं है. इस यात्रा को मिल रहे जन समर्थन में कमी आएगी या फिर और बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ते नजर आएंगे? 

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कन्याकुमारी से कश्मीर तक, लगभग 3570 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा 170 दिन में पूरी होनी है. इस यात्रा को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), दोनों में सियासी जंग छिड़ी हुई है. बीजेपी इस यात्रा की शुरुआत से ही राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को घेरने में जुटी है. राहुल गांधी इसे ' तपस्या ' बता रहे हैं तो बीजेपी ढोंग. चार राज्यों में सिमट कर रह गई कांग्रेस एक बार फिर दक्षिण से कमबैक करने की कोशिश में है. भारत जोड़ो यात्रा से उसे बहुत ही ज्यादा उम्मीदें लगी हुई हैं.

तमिलनाडु में गठबंधन का गठजोड़

कन्याकुमारी के गांधी मंडपम में सजावट चल रही थी. कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का आगाज यहीं से होना था. ढोल और स्पीकर लिए कुछ युवा खड़े थे. वह रुक-रुक के नगाड़े बजाते फिर इधर-उधर निहारते. यूथ कांग्रेस के ये कार्यकर्ता अपने सीनियर का इंतजार कर रहे थे कि आखिर कब इजाजत मिले और वे जमकर ढोल बजाएं.

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भारत जोड़ो यात्रा में ढोल लेकर पहुंचे युवा

दरअसल, तमिलनाडू में कांग्रेस के सियासी ढोल-नगाड़े बजे कम से कम पांच दशक बीत गए हैं. द्रविड़ आंदोलन से जन्में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व लगातार बढ़ता ही चला गया. साल 1967 में कांग्रेस ने तमिलनाडु की सत्ता गंवाई और इसके बाद सूबे की सियासत के शीर्ष पर द्रविड़ दलों का ही दबदबा रहा. सत्ता ने द्रविड़ दलों का जो दामन थामा, फिर उन्हीं की होकर रह गई.

डीएमके-कांग्रेस के लिए एक-दूसरे का साथ जरूरी

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के आगाज पर 7 सितंबर को तमिलनाडू के सीएम एमके स्टालिन ने जब राहुल गांधी को तिरंगा थमाया तब संकेत साफ थे. डीएमके के बगैर कांग्रेस तमिलनाडु में सांस भी नहीं ले सकती है. आंकड़े तो यही कहानी कहते हैं. साल 2019 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस को गठबंधन में रहकर आठ सीटें मिली थीं. 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस डीएमके से गठबंधन किए बगैर चुनाव मैदान में उतरी थी और तब पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका था.

ऐसा भी नहीं है कि बस कांग्रेस के लिए डीएमके जरूरी है. हकीकत ये है कि बीजेपी की महत्वाकांक्षा और अन्ना द्रमुक में मचे कोलाहल से चिंतित डीएमके के लिए भी अपने सियासी गुलदस्ते में कांग्रेस का होना जरूरी है. कांग्रेस के तमिलनाडु प्रभारी दिनेश गुंडू राव के मुताबिक जब आम चुनाव होते हैं तब हमारी सहयोगी डीएमके को लाभ मिलता है. कांग्रेस अन्य सभी दलों की तुलना में आगे रहती है. उन्होंने डीएमके को सूबे की प्रमुख पार्टी बताया और कहा कि कांग्रेस से लोगों का जुड़ाव अलग है. दोनों ही दलों के लिए गठबंधन फायदेमंद है.

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भावनात्मक रूप से भी अहम थी तमिलनाडु से शुरुआत

राहुल गांधी के लिए दक्षिण के इस राज्य से अपनी यात्रा की शुरुआत सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी अहम थी.  श्रीपेरंबदूर में अपने पिता  राजीव गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित कर राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा शुरू की थी. 8 सितंबर को जब राहुल की पदयात्रा सड़कों पर शुरू हुई तो चर्चा इस बात की थी कि ट्विटर की पार्टी सड़क पर उतरी है. पार्ट टाइम नेता राहुल गांधी फुल टाइम यात्रा करने वाले हैं. इतनी लंबी यात्रा में स्टेज मैनेजमेंट, कैमरा और लाइटिंग, सेटअप कुछ भी काम न आएगा. शुरू में ही फ्लॉप हो गई तो सरेआम रुसवा हो जाएंगे. तस्वीरें क्या बोलेंगी? तमाम सवाल उठाए जाने लगे थे.

लोगों में दिख रहा उत्साह

राहुल गांधी की इस पदयात्रा पर न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि विरोधियों के साथ ही सहयोगियों की भी नजर थी. 'वलगा वलगा वे राहुल गांधी वलगा वे' तमिल भाषा में इस नारे के साथ  कन्याकुमारी से निकलते हुए ये यात्रा लगभग चार दिन और 75 किलोमीटर की दूरी नापने तक तमिलनाडु में रही. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में सहयात्री रहीं अवनी बंसल बताती हैं कि दक्षिण भारत में लोगों से मिलते हुए ये एहसास हुआ कि यहां के लोग बहुत सरल और जिंदादिल स्वभाव के हैं. वे जो भी करते हैं, अपनी पूरी भावना के साथ करते हैं. उनकी भाषा, संस्कृति, रहने का तरीका, खान-पान, ये सब अलग होने के बावजूद भी वे दिल से जुड़ते हैं और दिल से ही संवाद करते हैं.

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राहुल गांधी ने खींचा सबका ध्यान

किसी भी दल के लिए उसके नेता के प्रति जनता का झुकाव और जुड़ाव मनोबल बढ़ाने वाला होता है. दिनेश गुंडू राव कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा का जबरदस्त असर हुआ है. कई लोग इस यात्रा से जुड़े जिनमें ऐसे आम नागरिक भी शामिल हैं जिनका कांग्रेस पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है. वह कहते हैं कि राहुल गांधी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है. लोगों को राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पता चली है और ये हमारे लिए बहुत बड़ा बूस्टर है. कार्यकर्ता भी उत्साह से लबरेज हो गए हैं.

युवाओं में भी दिखा जबरदस्त उत्साह

भारत जोड़ो यात्रा का केरल कनेक्शन

तमिलनाडु से होते हुए यह यात्रा जब केरल पहुंची तो तमाम सवाल खड़े हुए. केरल की सत्ताधारी एलडीएफ ने कांग्रेस पर सूबे में 19 दिन और यूपी में सिर्फ चार दिन यात्रा के कार्यक्रम को लेकर हमला बोल दिया. केरल की सत्ताधारी पार्टी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल उठाते हुए ये तक कहा कि ये भारत जोड़ो यात्रा है या कांग्रेस जोड़ो.

राहुल गांधी के केरल चुनाव प्रचार में सक्रियता के बावजूद कांग्रेस की करारी हार हुई. राहुल गांधी का वायनाड से सांसद होना, कांग्रेस का केरल में मुख्य विपक्षी दल होना और कार्यकर्ताओं में मायूसी के माहौल में इस यात्रा की सफलता कांग्रेस के लिए आसान नहीं थी. केरल में यात्रा की एंट्री तिरुअनंतपुरम जिले से हुई. अभिवादंगल अभिवादंगल राहुल गांधी अभिवादंगल के नारों के बीच गाजे-बाजे और पुष्प वर्षा करते लोग, फूलों की थाली उठाए बच्चे और उनके माता- पिता मानों ओणम का जश्न मना रहे हों. वहीं, तिरुवनंतपुरम के कांग्रेस सांसद शशि थरूर टोपी पहने हुए राहुल गांधी की तरफ बढ़ने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. मधुमक्खी के झुंड की तरह समर्थक उन्हें घेरे हुए थे.

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राहुल गांधी की यात्रा के स्वागत में पुष्प लेकर खड़े बच्चे

भारत जोड़ो यात्रा की तस्वीरें कह रही थीं नई कहानियां

केरल के नेता केसी वेणुगोपाल , के सुरेश , रमेश चेन्निथला भी राहुल गांधी के साथ कदम ताल करते नजर आए. भारत जोड़ो यात्रा के यात्रियों समेत सभी को अब तक ये अंदाजा हो गया था कि राहुल गांधी का स्पीड पकड़ना आसान नहीं. फिर भी, राहत इस बात की थी कि यात्रा अब सियासी रफ्तार पकड़ रही थी और उसके साथ कांग्रेस पार्टी भी.

अब तस्वीरें भी कई कहानियां कह रहीं थीं. राहुल गांधी के बच्ची की सैंडल में बकल लगाने से लेकर बुजुर्ग महिला को गले लगाना, युवा का हाथ पकड़ के चलना और गुलाबों की झड़ियां. राहुल गांधी के चेहरे के हाव भाव, साधारण स्टाइल और सादगी उनके व्यक्तित्व को जनता के सामने एक खुली किताब की तरह पलटने लगी. इस तरह राहुल केरल के लोगों की बीच अपनी जगह बनाते नजर आए. 

फूलों से हुआ भारत जोड़ो यात्रा का स्वागत

एक स्थानीय निवासी ने कहा कि 'यात्रा से पहले हम लोगों के मन में सवाल थे कि वो यहां से सांसद हैं पर क्या राहुल गांधी सक्षम हैं, क्या वह कंसिस्टेंट हैं? ये जानेंगे तभी हम उनको आगे वोट देंगे. राहुल गांधी ने अपने आप को ना सिर्फ फिजिकली साबित किया, बल्कि ये भी साबित किया कि उनका स्वभाव भी सरल और सहज है.

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राहुल की यात्रा को लेकर आक्रामक हो गए बीजेपी के तेवर

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा सोशल मीडिया से लेकर चौपाल तक में चर्चा का विषय बन गई. फिर बीजेपी के तेवर आक्रामक हो गए. हर दिन एक नया विवाद, एक नया आरोप, एक नया हमला. राहुल गांधी की 'बरबरी' टीशर्ट के दाम से लेकर आरएसएस की हाफ पैंट पर सियासत गर्मा गई. कोल्लम से अलप्पुझा आते-आते राहुल गांधी ने कांग्रेस की नाव का चप्पू अपने हाथ में ले लिया था. वो खुद को तू-तू, मैं-मैं की राजनीति से अलग कर रहे थे.

केरल के वरिष्ठ नेता बीटी बलराम का कहना है कि यात्रा हिट रही. उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कहा कि हाल ही में हमने एलडीएफ सरकार के खिलाफ धरना दिया. पहले हमें भीड़ जुटानी पड़ती थी लेकिन यात्रा के बाद कार्यकर्ता फोन कर पूछ रहे हैं कि अब और क्या करना है? बीटी बलराम ने कहा कि भारी तादात में हर कलेक्ट्रेट पर कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा हुई. संगठन में ऊर्जा आ गई है और विश्वास आया है कि हम वापस सत्ता में आएंगे.

भारत जोड़ो यात्रा ने आलोचकों को दिया जवाब

सियासी दल का चर्चा में रहना पार्टी और उसकी सक्रियता की निशानी मानी जाती है. राहुल गांधी की ये यात्रा केरल से ही गुजर रही थी जब शशि थरूर ने यह ऐलान किया कि वे कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लडेंगे. फिर क्या था, कांग्रेस पार्टी की चर्चा को और हवा मिल गई. पहले भारत जोड़ो यात्रा की चर्चा और उसके बाद अध्यक्ष पद के चुनाव की चर्चा.

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क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे... हर किसी में नजर आया उत्साह

कांग्रेस के केरल प्रभारी तारिक अनवर का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा ने आलोचकों को करारा जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि हम लोग यात्रा की कामयाबी से बहुत संतुष्ट हैं. इससे बढ़िया कोई और योजना तो हो ही नहीं सकती थी. सभी कहते थे कि कांग्रेस को सड़क पर नजर आना चाहिए और अब हम सड़क पर उतर आए  हैं.

कर्नाटक: हम साथ साथ हैं?

कर्नाटक हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भी जब पूरा उत्तर भारत सूखा था तब कांग्रेस को कर्नाटक की 28 में से 24 सीटें मिली थीं. ये भी सच है कि कई बार कांग्रेस की टूट की जड़ कर्नाटक ही रहा. केरल कांग्रेस की धुआंधार बैटिंग के बाद कर्नाटक इकाई के लिए यह बड़ी अग्निपरीक्षा की घड़ी थी. विधानसभा चुनाव भी नजदीक हैं ऐसे में राज्य के नेताओं के लिए यह मौके पर चौके लगाने की बात थी. भारत जोड़ो यात्रा ने सबसे अधिक दिन, कुल 22 दिन में 500 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर्नाटक में की.

कर्नाटक में यात्रा के पहले ओवर में ही मानों सिक्सर लग गया हो. मैसूर में पहुंचते ही भारी बारिश के बीच राहुल गांधी का भाषण यात्रा के लिए गेम चेंजर बन गया. राहुल गांधी मूसलाधार बारिश में भींगते हुए बोलते रहे और सामने जनता बरसात से बचने के लिए कुर्सी सर पर रख खड़ी सुनती रही. वीडियो वायरल हो गया. यात्रा की पब्लिसिटी अपने चरम पर पहुंच गई और राहुल गांधी की भाषण देते हुए तस्वीर की तुलना एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से हुई.

कर्नाटक से ही शुरू हुआ है कमबैक का किस्सा

इतिहास गवाह है कि गांधी परिवार के कमबैक का किस्सा भी कर्नाटक से ही शुरू हुआ है. साल 1977 की चुनावी हार के बाद इंदिरा गांधी 1978 में चिकमंगलूर से चुनाव जीतीं. सोनिया गांधी ने जब राजनीति में कदम रखने की सोची तो श्रीपेरुबंदूर में राजीव गांधी को श्रद्धांजलि देने के बाद सबसे पहली रैली बेंगलुरु के नेशनल कॉलेज में की. बिलारी में प्रियंका गांधी ने सोनिया गांधी को जिताने की अपील करते हुए कहा था कि मैं अपनी मां आपको सौंप रही हूं.

कलाकारों ने भी दीं लोकनृत्य की प्रस्तुति

इस बीच राहुल गांधी ने कांग्रेस की पदयात्रा के दौरान सूबे की सियासत में दो अलग-अलग ध्रुव माने जाने वाले पार्टी के दो शीर्ष नेताओं को अपने बाएं और दाएं रखा. यात्रा के दौरान सीएम पद की रेस में आगे पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की राहुल गांधी के साथ दौड़ और डीके शिवकुमार की उनके साथ पुशअप का जिक्र सोशल मीडिया पर छाया रहा. यही नहीं सीएम चेहरा कौन होगा, मीडिया के इस सवाल को डाइवर्ट कर राहुल तमाम बड़े नेताओं के साथ एक गोल घेरे में बैठकर गप्पें लड़ाते भी नजर आए.

भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े उम्मीद से अधिक लोग

भारत जोड़ो यात्रा की कमेटी के सदस्य बीके हरिप्रसाद के मुताबिक चुनौती बढ़ गई क्योंकि यात्रा सुबह 6 बजे शुरू होने लगी. उन्होंने कहा कि लोग सूरज का नाम लेते हैं मगर अंधेरे में काम करते हैं. आप सोचते हैं कि यह लोग नेताओं के नाम पर आ रहे हैं पर न जाने कितने ऐसे कार्यकर्ता थे ,आमजन थे जो इस पदयात्रा में जुड़े. हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा. बीके हरिप्रसाद ने कहा कि हर जगह, जहां भी हम गए लगभग 75000 से एक लाख लोग प्रतिदिन यात्रा में जुड़े. सबने देखा कि राहुल गांधी कितने फिट हैं. कर्नाटक में यह यात्रा ट्रेंडसेटर बन गई. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.

जाहिर है 2018 में सत्ता से हाथ धोने के बाद कांग्रेस अब कम बैक की उम्मीद में है, क्यों अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने है. यात्रा का ही असर है कि राहुल गांधी जिन लोगों से मिले और जो उनके सुझाव थे, उनको लेकर एक कमेटी का गठन कांग्रेस ने किया है. वहीं, यात्रा से की सफलता से गदगद कर्नाटक कांग्रेस अब टिकट चाहने वालों से  5000 रुपये मांग रही है. भारत जोड़ो यात्रा का कर्नाटक में लिटमस टेस्ट अगले साल विधानसभा चुनाव में होना है, जिसके चलते राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के जरिए सियासी एजेंडा सेट करते नजर आए हैं. 

आंध्र प्रदेश: 20 साल का इंतजार

सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के लिए यात्रा का एक ऐसे राज्य में प्रवेश करना था जहां पर 2014 हो या 2019, पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी. कांग्रेस विधानसभा या लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. हालांकि, एक दौर में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था. 2004 में कांग्रेस की वापसी में आंध्र प्रदेश की अहम भूमिका रही थी. सियासी हालत ऐसे बदले कि कांग्रेस के लिए आंध्र प्रदेश की राजनीतिक जमीन सूखी पड़ गई है. आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद कांग्रेस बड़े नेता किशोर चंद्र देव, पनाबका लक्ष्मी, सूर्य प्रकाश रेड्डी पार्टी छोड़कर चले गए.

राहुल गांधी की पदयात्रा के बाद उत्साह से लबरेज हुए कांग्रेस कार्यकर्ता

आंध्र प्रदेश के लोगों में अब भी कांग्रेस के प्रति जबरदस्त गुस्सा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री पल्लम राजू बताते हैं कि दक्षिण के राज्यों में गांधी परिवार की एक अलग ही छवि रही है. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को जो रिस्पांस जनता से मिला है, हमें तो एक बार ऐसा महसूस हुआ कि हम सत्ता में है. आंध्र प्रदेश में राहुल गांधी तेज दौड़ लगाते हुए नजर आए.

पल्लम राजू ने कहा कि राहुल गांधी का यात्रा में मौजूद होना और इसका मकसद राज्य की जनता के दिलों में घर कर गया है. उन्होंने कहा कि हम जहां गए हमें भीड़ मिली और एक पॉजिटिव फीलिंग थी. हमें उम्मीद है कि यह यात्रा कांग्रेस पार्टी के लिए एक नया सवेरा लाएगी. राजू ने दावा किया कि कांग्रेस नेताओं का मोरल जोश हाई हुआ है, जिसका आगामी चुनाव में फायदा मिलेगा. 

राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में सफर कर रहे उत्तराखंड से आने वाले वैभव वालिया ने इस सफर को अविश्वसनीय बताया. उन्होंने कहा कि ऐसे राज्य जहां की न तो मुझे भाषा आती है और ना ही कभी इतना आना-जाना ही हुआ, जिनका खान-पान और रहन-सहन बिल्कुल अलग है.  वहां इतना प्यार मिलेगा, उम्मीद नहीं थी. दक्षिण भारत ने भारत जोड़ो यात्रियों का दिल जीत लिया है. वैभव ने कहा कि चुनाव के परिणाम क्या होंगे, यह पता नहीं लेकिन दक्षिण भारत नफरत की और तोड़ने की राजनीति के खिलाफ है. 

2019 में कांग्रेस को मिले थे नोटा से भी कम वोट

आंध्र प्रदेश में आलम ये था कि 2019 के चुनावी समर में कांग्रेस को 1.29 फीसदी वोट मिले थे जो नोटा से भी कम थे. साल 2014 में कांग्रेस के गिरे ग्राफ के पीछे राज्य का विभाजन और तेलंगाना का गठन वजह रहा तो 2019 के चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) का उभरना. शायद कांग्रेस को इस बात का अहसास था. जयराम रमेश ने यात्रा के वक्त कहा था कि एक शुरुआत हुई है और अभी कांग्रेस को यहां लंबी पारी खेलनी है.

राहुल की झलक पाने को उमड़े लोग

जयराम रमेश ने कहा था कि आंध्र प्रदेश में 20 साल लंबा प्रोजेक्ट है. हमें अभी इंतजार करना होगा. उन्होंने कहा था कि लोगों में अभी भी नाराजगी है. कांग्रेस का रिवाइवल यहां इतनी जल्दी नहीं हो सकता. इसमें लंबा समय लगेगा. जयराम रमेश ने ये भी कहा था कि हमें देखना है कि कांग्रेस पार्टी इसको आगे कैसे ले जाती है.

दिलचस्प है कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा करनूल जिले से गुजरी जो रायसीलम इलाके में आता है और  कांग्रेस के पूर्व सीएम वाईएसआर रेड्डी का गढ़ माना जाता था. वाईएसआर ने ही सबसे पहले कहा था कि राहुल गांधी को पार्टी को लीड करना चाहिए और देश का पीएम बनना चाहिए. वाईएसआर हों या उनके बेटे जगन रेड्डी, दोनों ने ही यात्राओं के जरिए जनता का विश्वास जीता और सत्ता हासिल की. ऐसे में राहुल के नेतृत्व वाली यात्रा पर अब सबकी नजरें हैं.

तेलंगाना का तिलिस्म!

एक वक्त था जब आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए ब्रह्मास्त्र से कम नहीं था. साल 2009 के आम चुनाव में 42 में से 33 सांसद यूनाइटेड आंध्र से आते थे. मगर 2014 से कांग्रेस को तेलंगाना में भी हार का सामना करना पड़ा है. अब आठ साल बाद भी पार्टी के तेलंगाना से सिर्फ तीन सांसद और पांच विधायक हैं. दरअसल तेलंगाना कांग्रेस में आपसी तनातनी चल रही है. 2014 से 2019 तक राहुल गांधी यहां आते रहे हैं. हाल ही में वारंगल में राहुल गांधी की बड़ी रैली हुई थी जिसमें आई भीड़ के चलते कांग्रेस में कुछ उम्मीद जगी.

छोटे बच्चों के भी सिर चढ़कर बोला राहुल गांधी का जादू

तेलंगाना में आकर कांग्रेस ने अपनी आंध्र और तेलंगाना को लेकर रणनीति साफ की है. असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ माने जाने वाले हैदराबाद के चारमीनार में कांग्रेस की सभा में हुजूम उमड़ा. मंच पर राहुल गांधी नए अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे का हाथ पकड़ कर बैठे थे. सोशल मीडिया पर मोदी और आडवाणी बनाम राहुल गांधी और खड़गे की  तस्वीरों की तुलना होने लगी.खड़गे ने तो अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले भाषण में यह ऐलान कर दिया कि 2024 में गैर बीजेपी सरकार का नेतृत्व राहुल गांधी करेंगे. अब तक जिस बात को कांग्रेस घुमा फिरा कर कह रही थी उस पर पार्टी ने स्पष्ट लाइन ले ली है. जाहिर है कि यह कोई भ्रम में नहीं बल्कि जानबूझ कर दिया गया संदेश है.

वहीं, राहुल गांधी और खड़गे की लाइन आफ अटैक भी एक ही थी. दोनों ही नेता केसीआर पर जमकर बरसे. राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी और केसीआर की डायरेक्ट लाइन है. वे जब चाहें, बात करते हैं. वैसे अगर केसीआर चीन और अमेरिका में भी चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उनको कोई आपत्ति नहीं है.

राहुल अपनी ही खींची लकीर मिटा पाएंगे?

सवाल ये है की राहुल गांधी ने जो लकीर खींची है, उसे मिटाना क्या वे चाहेंगे? 2024 के चुनावी समर में पार्टी को टीआरएस की  जरूरत आन पड़ी तो क्या समझौता होगा. सीपीआई के वरिष्ठ नेता डी राजा का कहना है कि अलग-अलग राज्यों में छोटे दल हैं और यही भारत की अनेकता में एकता का परिचायक है. उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस का दायित्व बनता है कि वह पूरे देश में बीजेपी के खिलाफ सभी ताकतों को बीजेपी हटाने के लक्ष्य के साथ एकजुट करे. सभी सेक्युलर, लोकतांत्रिक पार्टियां इस मसले पर एकजुट हो जाएं. बाद में  राजनीतिक जोड़ घटाव किया जा सकता है.

बीजेपी कमजोर और कांग्रेस को उम्मीद
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी को मिलाकर दक्षिण भारत में लोकसभा की कुल 130 सीटें आती हैं. यह लोकसभा की कुल 543 सीटों का करीब 24 प्रतिशत हिस्सा है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी इन 130 सीटों में से सिर्फ 29 सीटें ही जीत सकी थी, जबकि कई राज्यों में खाता भी नही खुला था. उत्तर भारत और अन्य क्षेत्रों के मुकाबले दक्षिण भारत में बीजेपी की पैठ कमजोर है. ऐसे में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस के लिए मजबूत सियासी आधार रखा है, जिसके सहारे 2024 के चुनाव में वापसी करने की कवायद है. 

महाराष्ट्र में राहुल गांधी की यात्रा की एंट्री

भारत जोड़ो यात्रा की असल परीक्षा महाराष्ट्र में होनी है. उत्तर भारत नहीं है लेकिन राजनीतिक तौर पर देखें तो महाराष्ट्र की राजनीति में 'हिंदुत्व कार्ड' भली भांति फूला फला है. हिंदूत्व का बड़ा चेहरा बाला साहब ठाकरे ने भी अपनी राजनीति और ताकत को यहीं चमकाया. ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा अब उस मैदान में पंहुच गई है, जहां का माहौल उसके विरोध वाले विचार के लिए काफी अनुकूल माना जा रहा. महाराष्ट्र के बदले हुए सियासी समीकरण के चलते बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार इस यात्रा में राहुल गांधी के साथ कदमताल करते नजर आएंगे, लेकिन यह दोनों नेता कब किस मौके पर आएंगे यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है. महाराष्ट्र में यह यात्रा 14 दिनों तक रहने वाली है, जिसे कांग्रेस के लिए असल अग्निपथ कहा जा रहा. 

भारत जोड़ो यात्रा को 12 राज्यों से ले जाने के प्लान के जरिए कांग्रेस ने ये दिखाने की कोशिश की है कि युवा ही विकल्प हैं. मगर यात्रा की सफलता एक तरफ है लेकिन ये भी जरूरी नजर आ रहा है कि बाकी विपक्षी दलों को भी कांग्रेस के गुलदस्ते में जगह दी जाए. अभी तो बाकी दल इस सोच में डूबे हैं कि यात्रा की सफलता से ओत-प्रोत कांग्रेस कहीं 'एकला चलो रे' का नारा आत्मसात न कर ले.

 

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