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Bharat Jodo Yatra: राहुल गांधी की री-लॉन्चिंग या 2024 के लिए बैटिंग, 'भारत जोड़ो यात्रा' का क्या मकसद?

Bharat Jodo Yatra: कांग्रेस की मौजूदा सियासी हालत देखें तो पार्टी नेतृत्व को लेकर दुविधा की स्थिति है. एक तरफ पार्टी नए अध्यक्ष का चयन करने के लिए चुनाव की बात कर रही है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी का नेतृत्व स्थापित करने की कोशिश भी. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता खुलकर राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा जता रहे हैं तो रहे तो दूसरी तरफ एक तबका है कि कांग्रेस की कमान किसी गैर-गांधी परिवार वाले नेता को सौंपने की वकालत कर रहा है.

Bharat Jodo Yatra (PTI) Bharat Jodo Yatra (PTI)
टीके श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 07 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:26 PM IST

Bharat Jodo Yatra: लोकसभा चुनाव में करीब डेढ़ साल का समय बचा है, लेकिन देश की सियासी फिजा में अभी से ही चुनावी रंग घुलने लगे हैं. विपक्ष दलों ने एकजुटता की हुंकार भर दी है. बीजेपी 2024 में सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए बेताब है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता मुहिम में जुट गए हैं तो कांग्रेस 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू कर चुकी है, जिसकी अगुवाई राहुल गांधी (Rahul Gandhi)  कर रहे हैं. हालांकि, इस यात्रा को पार्टी गैर-राजनीतिक बता रही है, लेकिन इसका सियासी मकसद जगजाहिर है. 

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कहा जा रहा है कि इस 'भारत जोड़ो यात्रा' के जरिए कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी की री-लॉन्चिंग करने की कोशिश में है. अगर ऐसा है तो कांग्रेस का राहुल गांधी पर ये सबसे बड़ा और आखिरी सियासी दांव भी हो सकता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले 10 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और इसका ठीकरा भी राहुल पर फूटा. 2019 के लोकसभा चुनाव की हार पर भी उन्हीं के नाम पर लिखी गई. सियासत के मैदान में राहुल भले दो दशक से सक्रिय हों, लेकिन चुनावी राजनीति में अभी तक कोई बड़ा मैजिक नहीं कर पाए हैं. ऐसे में उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं और कांग्रेस नेता एक-एक कर पार्टी से किनारा कर रहे हैं. 

कांग्रेस के बिखरते जनाधार को एकजुट के मकसद से शायद राहुल गांधी 'भारत जोड़ो यात्रा' पर निकले हैं. पांच महीने तक चलने वाली इस यात्रा से वो कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भरने और पार्टी के संगठन को मजबूत करने की कवायद करते हुए नजर आएंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इस पदयात्रा के जरिए अपने खोए हुए सियासी जनाधार के साथ-साथ राहुल गांधी को एक मजबूत नेता के तौर पर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले स्थापित कर पाएगी?

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जब-जब की गईं ऐसी यात्राएं 

इतिहास देखें तो देश में कई पदयात्राएं हुईं हैं. पदयात्रा का बड़ा फायदा भी तभी हुआ है जब इसका स्वरूप आंदोलन का रहा हो. चाहे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की डांडी यात्रा हो या आडवाणी की रथ यात्रा. युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर की देशभर में 'भारत एकता यात्रा' सियासी तौर पर काफी सफल रही थी. ऐसे ही राजीव गांधी ने भी देश को जानने और समझने के लिए पदयात्रा की थी. तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के लिए केसीआर ने पदयात्रा की तो आंध्र प्रदेश में राज शेखर रेड्डी और जगन मोहन रेड्डी ने खुद को सियासी तौर पर स्थापित करने के लिए अलग-अलग समय पर यात्रा निकालीं. इसका नतीजा ये रहा कि वो बाद में मुख्यमंत्री बने.

दिग्विजय सिंह ने निकाली थी नर्मदा यात्रा

कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नर्मदा यात्रा की थी, जिससे जरिए बीजेपी की हिंदुत्व की पॉलिटिक्स को काउंटर करने का दांव सफल रहा था. इसके अलावा दिग्विजय की छवि एक सीरियस पॉलिटिशियन की भी बनी थी. ऐसे ही सचिन पयालट ने राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ पूरे प्रदेश में पदयात्रा कर माहौल बनाया था. इसका नतीजा था कि कांग्रेस दोनों ही राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही थी. ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कितनी सफल होती है ये तो समय ही बताएगा.

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कांग्रेस की मौजूदा सियासी हालत देखें तो पार्टी में नेतृत्व को लेकर दुविधा की स्थिति नजर आ रही है. एक तरफ पार्टी नए अध्यक्ष का चयन करने के लिए चुनाव की बात कर रही है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी का नेतृत्व स्थापित करने की कोशिश भी है. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता खुलकर राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा जता रहे हैं तो दूसरी तरफ एक तबका वो है जो कांग्रेस की कमान किसी गैर-गांधी को सौंपने की वकालत कर रहा है. हालांकि. ये भी एक तथ्य है कि राहुल के नेतृत्व में पार्टी को कोई बड़ा सियासी फायदा नहीं मिल पाया है.

अध्यक्ष चुनाव से किनारा कर यात्रा पर राहुल

देश एक बार फिर चुनाव की दहलीज पर खड़ा है. ऐसे में राहुल गांधी ने देश की जमीनी हकीकत की थाह लेने और अपने पैरों से नापने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा की शुरुआत की है. कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव से किनारा कर राहुल गांधी 3570 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकल पड़े हैं. कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी. पांच महीने की इस पदयात्रा का राहुल गांधी ने तमिलनाडु से आगाज किया है और 150 दिनों तक पदयात्रा करेंगे. 

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कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा ऐसे समय शुरू हो रही है जब कांग्रेस अपने नेतृत्व से ही नहीं बल्कि सियासी संकट से भी घिरी हुई है. हाल ही में जब ईडी ने सोनिया गांधी को नेशनल हेराल्ड मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था तो कांग्रेसी जमीन पर नजर आई थी, लेकिन ये मामला जनता के मुद्दे से जुड़ा नहीं था. बीजेपी भी ये आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस सिर्फ गांधी परिवार को बचाने के लिए सब धरने-प्रदर्शन करती है. लेकिन अब जो पदयात्रा शुरू हुई है उसका सरोकार सीधे-सीधे जनता से जुड़े मसलों से है. कांग्रेस का दावा है कि इस यात्रा के जरिए वो बढ़ती महंगाई और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों पर आम लोगों में बहस छेड़ने की कोशिश करेगी लेकिन उस पर जनता कितना विश्वास जताती है, ये तो आगे पता चलेगा.

राहुल की पदयात्रा से ये राज्य क्यों हैं दूर?

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का जो रोडमैप बनाया गया है, उसके तहत ये यात्रा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरेगी. मजे की बात यह है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं, उन्हें भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं किया गया है. हालांकि, कांग्रेस की यात्रा उसी समय राजस्थान से गुजरेगी जब दोनों ही राज्यों में चुनाव का ऐलान हो चुका होगा. 
 
यूपी में भी पदयात्रा का मैप काफी हल्का रहा है. सिर्फ बुलंदशहर में कार्यक्रम रखा गया है. ऐसे ही बिहार, बंगाल और झारखंड से भी ये पदयात्रा नहीं गुजरेगी. वहीं, अगले साल छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां पदयात्रा नहीं निकाली जाएगी. हालांकि, राजस्थान के सात जिलों में 500 किलोमीटर की यात्रा होगी जबकि ज्यादातर हिंदी बेल्ट वाले राज्य और पूर्वोत्तर को पूरी तरह से पदयात्रा को जगह नहीं मिली. ऐसे में सवाल ये भी है कि इन राज्यों को पदयात्रा के रूट से दूर क्यों रखा गया है जबकि ये राज्य लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम हैं.

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क्या बैक सीट से पॉलिटिक्स करेंगे राहुल गांधी? 

कांग्रेस की पदयात्रा को लेकर राजनीति के जानकार ये भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी अब बैक सीट से पॉलिटिक्स करेंगे. वो पदयात्रा की भले ही अगुवाई कर रहे हों, लेकिन अब उनकी सियासत फ्रंटफुट वाली नहीं होगी. राहुल गांधी पार्टी की कमान नहीं संभालना चाहते हैं. इस बात को सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं, जिसके चलते कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से बाहर किसी चेहरे को सौंपने की तैयारी है. राहुल गांधी आंदोलन की राह पर हैं और अब तक की उनकी राजनीतिक पारी को भी देखें तो कुछ ऐसी ही रही है. कांग्रेस जी-23 के नेता भी ये बात कहते रहे हैं कि राहुल गांधी एनजीओ स्टाइल की सियासत करते हैं और फुल टाइम पॉलिटिशियन नहीं हैं. 

वहीं, कांग्रेस पार्टी कहती रही है कि राहुल गांधी एकमात्र विपक्ष के नेता हैं, जो लोगों से जुड़े हुए मुद्दों को उठाते हैं और मोदी के खिलाफ सड़क पर अकेले लड़ रहे हैं. ऐसे में राहुल की पदयात्रा को लेकर कांग्रेस ने कहा कि इसकी जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि विपक्ष के सामने और कोई रास्ता ही नहीं है. इस यात्रा के जरिए राहुल गांधी लोगों के बीच जाएंगे और उन्हें देश की मौजूदा स्थिति से वाकिफ कराएंगे. इसके अलावा लोगों की समस्याओं को उठाएंगे.

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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राहुल इस यात्रा के जरिए लोगों के बीच पहुंचना चाहते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि यह पदयात्रा सिर्फ बीजेपी और मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की नहीं बल्कि भविष्य की राजनीति में राहुल गांधी की भूमिका का एक तरह से निर्धारण करने वाली भी सिद्ध हो सकती है.

यात्रा से जननेता बन पाएंगे राहुल? 

भारत जोड़ो यात्रा वाला कांग्रेस का यह कदम राहुल गांधी की छवि को मजबूत बनाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. इसीलिए कांग्रेस ने साफ कहा है कि राहुल यात्रा के दौरान किसी होटल में नहीं ठहरेंगे बल्कि साधारण तरीके से यात्रा करेंगे और कंटेनर में ही ठहरेंगे व पार्टी नेताओं के साथ ही भोजन करेंगे. इससे एक बात साफ है कि राहुल 'भारत जोड़ो यात्रा' के जरिए आम लोगों से जुड़ने की कवायद करेंगे. इसीलिए चमक-दमक से दूर साधारण तरीके से यात्रा करने की रूप रेखा बनाई गई है ताकि राहुल को जननेता के तौर पर स्थापित किया जा सके. राजनीतिक विश्लेषक भी इसे 2024 की तैयारी मानते हैं और राहुल गांधी को जननेता बनाने की रणनीति के तौर पर देखते हैं. कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह जमीनी स्तर पर लोगों को जानने के साथ पार्टी के ब्लॉक, शहर और ग्रामीण स्तर तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं से जुड़ सकेंगे.

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पदयात्रा में सबसे बड़ी चुनौती?

भारत छोड़ो आंदोलन के 80 साल बाद कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर दी है. कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन का लक्ष्य था देश की आजादी. जबकि मौजूदा यात्रा को लेकर भी पार्टी की ओर से राष्ट्रीय एकता की बात की जा रही है. हालांकि, तब दौर दूसरा था और अब दौर दूसरा है. पदयात्रा लंबी है, इसलिए चुनौतियां भी बहुत रहेंगी.

कांग्रेस के साथ राहुल गांधी को भी ये समझना होगा कि प्राइम टाइम से ज्यादा सोशल मीडिया पर अलर्ट रहना होगा. हाल ही में महंगाई के खिलाफ हल्ला बोल रैली में राहुल गांधी के आटा और लीटर को लेकर बयान पर जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली, उससे पूरी रैली उसी पर फोकस हो गई. एक तबका इसी इंतजार में रहता है कि राहुल गांधी कब इस तरह की चूक करें. कहने में भले ही ये छोटी बात हो लेकिन कांग्रेस के लिए परेशानी बन जाती है. ऐसे में देखना है कि भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए क्या संजीवनी बन पाएगी?

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