
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोमवार (24 अगस्त) को हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे गए कुछ नेताओं के पत्र की टाइमिंग पर राहुल गांधी ने सवाल उठाए. सूत्रों से ये जानकारी मिली कि राहुल गांधी ने पत्र लिखने वालों पर तीखी टिप्पणी की और यहां तक कह दिया कि ये पत्र बीजेपी की मिलीभगत से लिखा गया है.
हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने बाद में औपचारिक तौर पर इस खबर का खंडन किया और कहा कि राहुल गांधी की तरफ से इस तरह का कोई शब्द नहीं कहा गया है. कांग्रेस की सफाई से पहले ही पत्र पर साइन करने वाले नेताओं में शुमार कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर राहुल गांधी को निशाने पर ले लिया. हालांकि, बाद में उन्होंने सफाई देते हुए ट्वीट डिलीट कर लिया. दूसरी तरफ विवाद में केंद्र में रहे गुलाम नबी आजाद ने भी ट्वीट किया.
गुलाम नबी आजाद ने भी ट्वीट कर राहुल गांधी का बचाव किया और अपने बयान पर पूरी जानकारी दी.
गुलाम नबी आजाद ने ट्वीट में लिखा, ''मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि राहुल गांधी ने न ही CWC बैठक में, न ही बाहर ये कहा है कि चिट्ठी बीजेपी के इशारे पर लिखी गई है. मैंने ये कहा था कि कल कुछ कांग्रेस नेताओं ने ये कहा कि हमने बीजेपी से मिलकर ये काम किया है, उस संदर्भ में मैंने अपनी बात रखी थी. मैंने कहा था, ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि CWC के बाहर कुछ साथी नेता हम पर बीजेपी के साथ मिलीभगत के आरोप लगा रहे हैं, अगर वो लोग ये आरोप साबित कर दें तो मैं इस्तीफा दे दूंगा.''
राहुल ने नहीं तो फिर किसने कहा?
सबसे अहम सवाल ये है कि अगर राहुल गांधी ने बीजेपी से मिलीभगत की बात नहीं है तो फिर किसने कही है. हालांकि, CWC मीटिंग में किसी नेता ने सीधे तौर पर ये नहीं कहा कि चिट्ठी लिखने वाले नेता बीजेपी के साथ मिले हुए हैं, लेकिन कुछ नेताओं ने बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणियां जरूर कीं.
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गोवा के प्रभारी और कांग्रेस सांसद ए. चेल्ला कुमार ने बैठक में अपने भाषण के दौरान बड़ी साजिश की तरफ इशारा किया. उन्होंने कहा कि कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मुझसे पूछा कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद सभी विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया, लेकिन गुलाम नबी आजाद को नहीं. जबकि जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती को लंबे समय तक नजरबंद रखा गया, लेकिन जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद को कभी हिरासत में नहीं लिया गया.
बैठक में एक सदस्य का ये बयान अप्रत्यक्ष तौर पर इस बात का इशारा था कि गुलाम नबी आजाद के साथ भाजपा की केंद्र सरकार की तरफ से सहयोग का व्यवहार किया गया है. ये बयान ऐसे आरोपों के बीच दिया गया जबकि चिट्ठी लिखने वाले नेताओं (जिनमें गुलाम नबी भी शामिल हैं) पर बीजेपी से मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं.
CWC के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि पार्टी के अंदर तीन तरह के असंतुष्ट नेताओं के ग्रुप हैं. उन्होंने बताया, 'कुछ नेता ऐसे हैं जिनके खिलाफ केस हैं. दूसरा ग्रुप ऐसा है, जो पार्टी में निश्चित स्थान नहीं मिलने से खुश नहीं है और कुछ नेता ऐसे हैं जो खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखते हैं.''
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बहरहाल, कुल मिलाकर मीटिंग में विवाद, नेताओं के बयान और मीटिंग के बाद चिट्ठी लिखने वाले नेताओं के केंद्र में गुलाम नबी आजाद ही हैं. गुलाम नबी आजाद ने बीजेपी से मिलीभगत के आरोपों का जिक्र किया, उन्होंने ही इस्तीफा देने तक की बात कही और बैठक में अन्य सदस्य ने गुलाम नबी आजाद पर ही केंद्र सरकार की मेहरबानी का उदाहरण दिया.