Advertisement

राहुल का चेहरा, विपक्षी गठबंधन की गोटी... 2024 चुनाव के लिए कांग्रेस का 'अटल फॉर्मूला'!

बेंगलुरु में विपक्षी एकजुटता को लेकर दूसरे दौर की बैठक होनी है और इससे पहले 2024 के चुनाव में 'दूल्हे और बाराती' को लेकर बहस छिड़ी हुई है. कांग्रेस महासचिव तारिक अनवर ने 2024 के चुनाव के लिए राहुल गांधी को विपक्ष की बारात का दूल्हा बता दिया है. इस बहस के जरिए कांग्रेस किस तरह से विपक्ष में वाजपेयी वाला दांव चलने की तैयारी में है?

अटल बिहारी वाजपेयी और राहुल गांधी अटल बिहारी वाजपेयी और राहुल गांधी
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 13 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 12:01 PM IST

देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की सियासी बिछने लगी है. पक्ष और विपक्ष, दोनों ही खेमे लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने-अपने मोहरे सेट करने में जुटे हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) मिशन विस्तार में जुटा है तो वहीं विपक्ष भी गैर बीजेपी पार्टियों को एकमंच पर लाने की कवायद में.

Advertisement

विपक्षी एकजुटता कवायद पर तंज करते हुए बीजेपी नेताओं ने कहा था कि इसमें सभी दूल्हा हैं, बाराती कोई नहीं. विपक्ष ये बताए कि उनकी ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा कौन होगा? लालू यादव ने 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में हुई बैठक के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी से कहा कि आप दूल्हा बनिए, हम सब लोग बाराती बनने को तैयार हैं.

अब कांग्रेस के महासचिव तारिक अनवर ने इसके सियासी मायने बताए हैं. दरअसल, तारिक अनवर ने लालू यादव के पटना में दूल्हा और बाराती वाले बयान के सियासी मायने बताते हुए कहा है कि दूल्हा यानी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार. राहुल गांधी ही 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष की ओर से उम्मीदवार होंगे. लालू के बयान का मतलब था कि सभी विपक्ष दल राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे.

Advertisement
राहुल गांधी से लालू ने कहा था दूल्हा बनिए, हम सब बाराती बनने को तैयार (फाइल फोटोः PTI)

पीएम पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने से बचती रही कांग्रेस 2024 के चुनाव में राहुल को लेकर बदली रणनीति के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में है? इस पर कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि पार्टी की रणनीति में कोई बदलाव नहीं आया है. सबको पता है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस का चेहरा हैं. उन्होंने नीतीश कुमार और फारूक अब्दुल्ला के बयानों को लेकर कहा कि सबके अपने-अपने विचार हैं. सभी लोग अपनी-अपनी राय रख रहे हैं लेकिन जमीन पर सबसे ज्यादा संघर्ष कौन कर रहा? ये भी सबको नजर आ रहा है.

कैसे शुरू हुई दूल्हे और बाराती की बहस?

इसी महीने 17 और 18 जुलाई को कर्नाटक के बेंगलुरु में 24 विपक्षी दलों की बैठक होनी है. विपक्षी गठबंधन का एजेंडा तय करने के लिए बुलाई गई इस बैठक से पहले दूल्हे और बाराती की बहस कैसे शुरू हो गई?  इस बहस की शुरुआत एनडीए के विपक्ष को घेरने के लिए, एकजुटता की कवायद पर तंज करते बयान से हुई थी. पटना की महाबैठक से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंर प्रसाद ने तंज करते हुए कहा था कि नीतीश पटना में बारात सजा रहे हैं. बारात में दूल्हा भी तो होता है न? 2024 के चुनाव में दूल्हा कौन होगा?

Advertisement

दूल्हे और बाराती को लेकर जारी बहस के बीच अब ये चर्चा भी छिड़ गई है कि क्या कांग्रेस विपक्ष में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वाला दांव चलने की तैयारी में है?

वाजपेयी वाला दांव खेलने की तैयारी कैसे

दरअसल, 1989 के आम चुनाव के बाद से लेकर 1999 तक, राजनीतिक अस्थिरता का दौर था. किसी भी दल को स्पष्ट जनादेश नहीं मिल रहा था, त्रिशंकू नतीजों के बाद गठबंधन की सरकारें बन रही थीं लेकिन स्थिरता का अभाव ऐसा कि एक चुनाव के बाद देश को एक से अधिक प्रधानमंत्री तक देखने पड़ रहे थे और फिर भी नौबत मध्यावधि चुनाव की आ जा रही थी. साल 1996 के लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस की सरकार थी और नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे. बीजेपी विपक्ष में थी.

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटोः पीटीआई)

चुनाव से पहले बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन हुआ. पार्टी ने मुरली मनोहर जोशी की जगह राम मंदिर आंदोलन के बाद पार्टी का चेहरा बन चुके लालकृष्ण आडवाणी को नया अध्यक्ष बनाया. लालकृष्ण आडवाणी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद जब संबोधन के लिए खड़े हुए तो बोले- 'अबकी बारी...', तब तक कार्यकर्ता और बीजेपी के नेता भी ये मान चुके थे वे ही पार्टी का फेस हैं, अध्यक्ष हैं तो निश्चित रूप से चुनाव जीतने की स्थिति में सरकार के भी अगुवा होंगे. लेकिन अबकी बारी के बाद आडवाणी के शब्द थे- अटल बिहारी. आडवाणी के इस नारे ने प्रधानमंत्री पद के लिए वाजपेयी को चेहरा घोषित कर दिया था.

Advertisement

देश की आजादी के बाद ये पहला अवसर था जब विपक्ष प्रधानमंत्री पद के लिए कोई चेहरा घोषित करके लड़ रहा था. चुनाव के बाद बीजेपी 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. हालांकि, ये सरकार 13 दिन ही चल सकी और बहुमत के अभाव में वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा लेकिन इस सरकार ने पीएम फेस आगे कर प्रेसिडेंशियल स्टाइल में चुनाव मैदान में उतरने की नया चलन शुरू कर दिया जो एनडीए के लिए एक तरह से ट्रेंड बन चुका है.

विपक्ष ने कब-कब पीएम फेस पर लड़ा चुनाव?

आजादी के बाद शुरुआती दौर कांग्रेस के वर्चस्व का रहा. इमरजेंसी के बाद पहली बार देश में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था. तब जयप्रकाश नारायण की पहल पर जनता पार्टी का गठन हुआ था. जनता पार्टी ने चुनाव जीतकर सरकार भी बनाई लेकिन उस चुनाव में भी प्रधानमंत्री पद के लिए किसी को चेहरा नहीं बनाया गया था. इसके बाद जनता दल ने अलग-अलग दलों के समर्थन से 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई. तब भी पीएम के लिए कोई चेहरा आगे नहीं किया गया था.

साल 1996 के चुनाव में अटल को चेहरा घोषित कर बीजेपी ने चुनाव लड़ा और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. बीजेपी ने सरकार भी बनाई और इसके साथ पीएम फेस पर चुनाव लड़ने की परंपरा भी शुरू हुई. इसके बाद 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भी अटल ही एनडीए की ओर से पीएम फेस थे. इनमें 1998 को छोड़ दें तो 1999 और 2004 में बीजेपी सत्ताधारी दल के रूप में मैदान में उतरी थी. 2004 के चुनाव में कांग्रेस ने छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की नींव रखी.

Advertisement
भारत जोड़ो यात्रा के बाद मजबूत हुई है राहुल गांधी की छवि (फाइल फोटोः पीटीआई)

विपक्षी यूपीए ने एनडीए को हराकर सरकार बनाई लेकिन तब भी विपक्ष की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले प्रधानमंत्री पद के लिए किसी को उम्मीदवार नहीं बनाया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया. हालांकि, चुनाव नतीजे यूपीए के पक्ष में गए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई.

एनडीए ने 2014 के चुनाव में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाया और 336 सीटें जीत लीं. अकेले बीजेपी को 282 सीटों पर जीत मिली जो पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 273 सीट के जादुई आंकड़े से कहीं अधिक थीं. 2019 में एनडीए ने 2014 से भी बड़ी जीत के साथ सरकार बनाई. 2019 में अकेले बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं जबकि एनडीए को 351 सीटों पर जीत मिली थी. 

कांग्रेस की बदली रणनीति के पीछे वजह क्या है?

ऐसे समय में जब विपक्षी एकजुटता की कवायद के अगुवा नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी से इनकार कर रहे हैं. नीतीश ये कह रहे हैं कि इससे विपक्षी एकजुटता की मुहिम को नुकसान होगा. एनसीपी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला भी ये कह चुके हैं कि अभी साथ तो आएं, बाकी मुद्दे बाद में सुलझा लेंगे. कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी का चेहरा आगे कर देने के पीछे क्या वजह है, क्या रणनीति है? जानकार इसे भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में बदलाव और कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस के बढ़े मनोबल का परिणाम बता रहे हैं.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement