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'मैंने चेताया, उन्होंने मजाक उड़ाया...', कोरोना पर राहुल गांधी बोले- सरकार ने वैज्ञानिकों की भी नहीं मानी

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में मोदी सरकार पर कई सवाल उठाए. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि सरकार ने वैज्ञानिकों की चेतावनी को नजरअंदाज किया.

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (फाइल फोटो-PTI) कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 मई 2021,
  • अपडेटेड 11:17 AM IST
  • राहुल का हमला, पीएम की छवि बनाने में लगी रही सरकार
  • उन्होंने कहा, हालात बेकाबू हुए, तो गेंद राज्यों के पाले में डाल दी

देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के लिए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने महामारी से निपटने के लिए सही कदम नहीं उठाए और जो भी चेतावनी दी गई, उसे नजरअंदाज किया गया.

राहुल गांधी ने ये बातें न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कही. राहुल ने कहा कि भारत में जिस तरह से कोरोना ने अपना प्रकोप दिखाया है, उसने सारी दुनिया को हिला कर रख दिया है. देश में हर जगह लाइन लगी हुई है. कहीं ऑक्सीजन के लिए, कहीं दवाइयों के लिए तो कहीं बेड के लिए , यहां तक कि श्मशान के बाहर भी लाइन लगी है. राहुल ने कहा महामारी को लेकर जो भी पहले चेतावनी जारी की गई, सरकार ने उसे नजरअंदाज कर दिया.

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हर जगह लगी है लाइन- राहुल

कोरोना की दूसरी लहर पर राहुल गांधी ने कहा "ये लहर नहीं है. ये सुनामी है, जिसने सबकुछ तबाह कर दिया. हर जगह कभी ना खत्म होने वाली लाइनें लगी हैं. ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लाइन लगी है. सिलेंडर रिफिल करवाने के लिए लाइन लगी है. दवाओं के लिए लाइन लगी है. अस्पतालों के बाहर बेड के लिए लाइन लगी है. और अब श्मशान घाट के बाहर भी लाइन लगी है."

उन्होंने कहा, "कोरोना से निपटने के लिए हमारे पास हर चीज की कमी है. राजधानी के सबसे अच्छे अस्पताल भी तेजी से भर रहे हैं. देश के डॉक्टर ऑक्सीजन की डिमांड कर रहे हैं. ऑक्सीजन के लिए अदालतों में याचिकाएं दायर हो रही हैं. हमारे हेल्थकेयर वर्कर्स अपनी आंखों के सामने मरीजों को दम तोड़ते देख रहे हैं. वो लोगों की जान बचाने में असमर्थ हैं. अब भारत कोरोना वायरस का एपिसेंटर बन गया है. भारत की हालत देखकर पूरी दुनिया हिल गई है."

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उन्होंने आगे कहा, "ऐसा नहीं होना चाहिए था. कई बार चेतावनी दी गईं. वैज्ञानिकों ने कई बार सरकार को चेताया, लेकिन सरकार ने उसे नजरअंदाज कर दिया. हमें और बेहतर तैयारी करनी चाहिए थी और हम ऐसा कर सकते थे. और अब, सरकार कहां है? इस सब से वो पूरी तरह गायब है. वो प्रधानमंत्री की छवि बचाने में और दूसरों पर दोष मढ़ने पर लगी है. आजकल एक नया शब्द चर्चा में है कि सिस्टम फेल हो गया. ये सिस्टम कौन है? सिस्टम कौन चलाता है? ये सिर्फ जिम्मेदारियों से भागने की एक चाल है."

क्या कोरोना को भांपने में सरकार से गलती हुई?

इस सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि इसमें पूरी गलती प्रधानमंत्री की है. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री एक मशीनरी चला रहे हैं, जो उनको ब्रांड के रूप में स्थापित करने का काम कर रही है. फैक्ट ये है कि महामारी की गंभीरता को समझने और बार-बार चेतावनी देने के बावजूद सरकार शुरू से ही इससे निपटने में नाकाम रही. 2020 में इस महामारी के शुरू होने के बाद से मैं सरकार को बार-बार चेतावनी देने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया. पिछले साल फरवरी-मार्च में एयरपोर्ट के जरिए वायरस हमारे देश में आया और फिर बिना किसी सलाह के सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया. इससे प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया."

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उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, "प्रधानमंत्री के पास पूरा एक साल था. लेकिन उन्होंने क्या किया? क्या प्रधानमंत्री और सरकार ने ऑक्सीजन कैपेसिटी बढ़ाने पर काम किया, क्या टेस्टिंग बढ़ाई गई, क्या अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर्स बढ़ाए गए? क्या पीएम ने हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर के बारे में सोचा? हम पहले भी पर्याप्त टेस्टिंग नहीं कर रहे थे और अभी भी नहीं कर रहे हैं."

सरकार ने आंख बंद कर ली थी

राहुल ने कहा, "मोदी सरकार ने बड़ी लापरवाही की और आंख बंद करके भरोसा किया. बीजेपी ने महामारी खत्म होने की घोषणा कर दी और इसके लिए पीएम को बधाइयां दीं. पीएम ने भी कहा कि भारत ने महामारी पर काबू पा लिया. लेकिन सच्चाई ये है कि सरकार ने कोई रणनीति नहीं बनाई. ना ही सरकार ने टेस्टिंग, ऑक्सीजन, बेड और वेंटिलेटर्स बढ़ाने के लिए कोई काम किया. ना ही पीएम और उनकी सरकार ने ये माना कि कोई महामारी थी भी कभी. आप जब उसे मान ही नहीं रहे हैं, तो आप उसे ठीक कैसे कर सकते हैं?

सरकार ने वैज्ञानिकों की चेतावनी को नजरअंदाज किया और चुनाव में बिजी रहे. उन्होंने सुपर स्प्रेडर इवेंट को बढ़ावा दिया. पिछले कई महीनों से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सार्वजनिक जगहों पर मास्क भी नहीं पहने दिखे. और सबसे बड़ी बात ये कि हम दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन प्रोड्यूसर हैं. हम दुनिया के लिए वैक्सीन बना रहे हैं. लेकिन हमारे यहां ही उसकी कमी है. हमारे लोगों को पहले वैक्सीन क्यों नहीं लगाई गई?"

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अब हालात आउट ऑफ कंट्रोल

उन्होंने आगे कहा, "हम हेल्थ इमरजेंसी से गुजर रहे हैं. इस सरकार के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ये पहले घोषणा करती है और फिर उससे मुकर जाती है. अब हालात पूरी तरह से आउट ऑफ कंट्रोल हो गए हैं. उन्होंने अब गेंद राज्यों के पाले में फेंक दी है. उन्होंने वाकई राज्यों और लोगों को आत्मनिर्भर बना दिया है. अपने आप पर भरोसा रखिए. कोई आपकी मदद करने नहीं आएगा. पीएम तो बिल्कुल नहीं. वक्त की यही मांग है कि हम सब साथ आएं और इस महामारी से निपटें." राहुल ने आरोप लगाया कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो विशेषज्ञों की सलाह के बिना इस महामारी का सामना कर रहा है.

क्या मौजूदा स्थिति केंद्र और राज्यों की नाकामी है? इस सवाल पर राहुल ने कहा, "देश एक साल से महामारी अधिनियम के तहत है. इस कारण राज्यों पर केंद्र की पूरी शक्ति है. जब मामले कम हुए तो जीत का श्रेय प्रधानमंत्री ने ले लिया. लेकिन अब जब हालात भयानक हो गए हैं, तो सारा दोष राज्यों पर मढ़ दिया. केंद्र ने पिछली साल अक्टूबर में 162 ऑक्सीजन प्लांट को मंजूरी दी थी, लेकिन उसमें से सिर्फ 33 ही शुरू हुए. ये पीएम केयर्स फंड से सेटअप किए गए थे. इस नाम पर मोदी सरकार ने हजारों करोड़ रुपए का डोनेशन लिया. इस फंड से केंद्र ने राज्यों को जो वेंटिलेटर दिए, उसे राज्यों ने खारिज कर दिया. राज्यों का जीएसटी भी बकाया है. ऑक्सीजन और रेमडेसिविर के लिए राज्य केंद्र पर निर्भर है. राज्यों के पीछे केंद्र का हाथ है. राज्यों के पास शक्ति नहीं है. जाहिर है, सिस्टम ध्वस्त हो चुका है."

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एक वैक्सीन की 5 अलग-अलग कीमत क्यों?
वैक्सीन की कमी और वैक्सीनेशन पर भी राहुल ने जवाब दिया. इंटरव्यू के दौरान राहुल ने कहा, "अगस्त तक सरकार ने 45 साल से ऊपर के 30 करोड़ लोगों को वैक्सीनेट करने का टारगेट तय किया है. लेकिन अभी तक वो कुल आबादी का 2% भी वैक्सीनेट नहीं कर सकी है. उन्होंने 1 मई से 18+ के 60 करोड़ लोग और जोड़ दिए. लेकिन वैक्सीन कहां है? मोदी सरकार ने 18 से 44 साल के लोगों को वैक्सीनेट करने की जिम्मेदारी से पल्ला क्यों झाड़ लिया? वैक्सीन की कीमतों को लेकर भी भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई. एक वैक्सीन की 5 अलग-अलग कीमतें क्यों हैं? 1 अरब आबादी को वैक्सीनेट करने के लिए 2 अरब डोज कैसे आएंगे, इसको लेकर कंपनियों की क्या रणनीति है?"

 

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