
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर जमीन पर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. बीजेपी मिशन मोड में आ गई है, तो कांग्रेस भी अब जमीन पर अपने समीकरण साधने में जुट चुकी है. लेकिन कांग्रेस इस बार विपक्षी एकजुटता भी चाहती है, कोशिश पहले भी थी, लेकिन इस बार ज्यादा जोर दिया जा रहा है. लीड करना चाहती है, लेकिन साथ में क्षेत्रीय पार्टियों का सहयोग चाहिए. इस विपक्षी एकजुटता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक अहम किरदार निभा सकती हैं. अभी तक साथ आने के उन्होंने कोई संकेत नहीं दिए हैं. लेकिन रिश्ते बिगड़ने की सुगबुगाहट जरूर होने लगी है.
चुनाव मेघालय का...सियासत 2024 वाली
मेघालय का चुनाव सिर पर है, कांग्रेस को अपनी सरकार बचाने की कोशिश करनी है, बीजेपी पूरी ताकत के साथ वहां पर लगी हुई है. टीएमसी भी जमीन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है. लेकिन कांग्रेस इस समय बीजेपी से ज्यादा टीएमसी को अपने निशाने पर ले रही है. कारण सिंपल है, पार्टी को लग रहा है कि गोवा की तरह यहां भी टीएमसी सीट नहीं जीत पाएगी, लेकिन जमीन पर वोटों का बंटवारा जरूर हो सकता है. इसी वजह से मेघालय में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने टीएमसी को आड़े हाथों लिया. राहुल ने जनसभा में कहा कि आप सभी को टीएमसी का इतिहास पता है. पश्चिम बंगाल में किस तरह से हिंसा और घोटाले हुए हैं. आप सभी उनका ट्रेडिशन अच्छे से समझते हैं. इन लोगों ने गोवा में खूब पैसे लगाए थे, एक ही मकसद था, बीजेपी की मदद करना. यहां मेघालय में भी वहीं करने की कोशिश कर रहे हैं. टीएमसी चाहती है कि मेघालय में बीजेपी मजबूत हो और वो सरकार बना ले.
अब राहुल गांधी का ये टीएमसी पर सीधा वार रहा है. ये वार उस समय दिया गया है जब कई बड़े नेताओं ने विपक्षी एकजुटता की बात की है. हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो कह चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस से पहल का इंतजार है. अगर कांग्रेस हरी झंडी दिखाएगी तो विपक्षी एकजुटता पर काम आगे किया जाएगा. लेकिन इस बीच राहुल के इस जोरदार हमले ने जमीन पर सियासी हलचल तेज कर दी है. वार क्योंकि सीधे टीएमसी पर किया गया है, इसलिए जवाब भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की तरफ से आया है.
टीएमसी का राहुल पर वार, संदेश कांग्रेस को?
उन्होंने ट्विटर पर राहुल पर हमला करते हुए कहा कि बीजेपी को रोकने में कांग्रेस पूरी तरह विफल रही है. कांग्रेस की अक्षमता ने कन्फ्यूज वाली स्थिति में ला दिया है. मैं राहुल गांधी से अपील करता हूं कि हम पर हमला करने से अच्छा है कि वे अपनी राजनीति पर ध्यान दें. हमारा विकास कोई पैसे के दम पर नहीं हुआ है, लोगों का जो प्यार मिला है, उससे हमारा विस्तार हुआ है. अब ये कोई पहली बार नहीं है कि टीएमसी की तरफ से कांग्रेस को लेकर यूं तल्ख टिप्पणी की गई हो. एक समय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यहां तक कह चुकी हैं कि यूपीए क्या है, अब कोई यूपीए नहीं है. हमे तो मजबूत विकल्प की जरूरत है. ये बयान ममता ने पिछले साल मुंबई में दिया था जब उनकी मुलाकात एनसीपी प्रमुख शरद पवार से हुई थी.
इससे पहले भी एक बार राहुल गांधी का नाम लिए बिना ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर कोई कुछ करेगा नहीं और आधे टाइम विदेश में रहेगा तो राजनीति कैसे की जा सकती है. राजनीति में स्थिरता जरूरी रहती है. अब ममता बनर्जी का स्पष्ट स्टैंड है, वे क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस के अधीन नहीं बनाना चाहती हैं. उनके पुराने बयान साफ बताते हैं कि वे कुछ बड़ा करना चाहती हैं, विपक्षी एकजुटता को लेकर उनका विजन भी अलग दिखाई पड़ता है.
केसीआर को भी तवज्जो नहीं दे रहे राहुल गांधी
वैसे ममता का विजन अलग दिख रहा है, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हमलों में एक सेट पैटर्न है. जो हमला उन्होंने टीएमसी पर किया, वैसा ही एक वार तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पर भी किया गया. जब केसीआर ने अपनी राष्ट्रीय पार्टी लॉन्च की थी, राहुल ने उस पर अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा था कि केसीआर अगर राष्ट्रीय पार्टी बना रहे हैं तो ये ठीक है. वे चाहे तो अंतरराष्ट्रीय पार्टी भी बना सकते हैं. वे चीन-ब्रिटेन में जाकर चुनाव लड़ सकते हैं. बीजेपी की विचारधारा को सिर्फ कांग्रेस की विचारधारा ही हरा सकती है. उस समय उन्होंने ये भी साफ कर दिया था कि तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में वे केसीआर की पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करने वाले हैं. ऐसे में टीएमसी से कांग्रेस की तकरार है, केसीआर को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा रही, नीतीश कुमार की विपक्षी एकता वाली बात पर भी तंज अंदाज में जवाब दिया गया है, ऐसे में विपक्षी एकजुटता होगी कैसे? किन दलों को साथ ला इसे साकार किया जाएगा?
इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुछ संकेत जरूर दिए हैं. उन्होंने जोर देकर कहा है कि कांग्रेस ही आगामी लोकसभा चुनाव में लीड करने वाली है, कई दूसरी पार्टियों के साथ भी बात चल रही है. खड़गे ने कहा कि 2024 में गठबंधन वाली सरकार सत्ता में आने वाली है, कांग्रेस उसे लीड करने वाली है. हम कई दूसरी पार्टियों से बात कर रहे हैं, ऐसा नहीं किया तो लोकतंत्र और संविधान दोनों चले जाएंगे. इस बार बीजेपी को बहुमत नहीं मिल पाएगा. दूसरी पार्टियां जो साथ आएंगी, उन्हें मिलाकर हमे बहुमत मिलेगा. चाहे फिर 100 मोदी-शाह क्यों ना आ जाए. अब मल्लिकार्जुन का ये जवाब उन पार्टियों को एक संकेत है जो अभी भी कांग्रेस को मजबूत विकल्प मानती हैं, जो ये मानती हैं कि कांग्रेस ही विपक्षी एकजुटता का चेहरा बन सकती है, उसकी अध्यक्षता में भी लोकसभा चुनाव लड़ा जा सकता है.
कांग्रेस को नीतीश का साथ पसंद या नहीं?
लेकिन जिस विपक्षी एकजुटता के सपने देखे जा रहे हैं, उसे जमीन पर उतारना उतना ही मुश्किल रहने वाला है. असल में क्षेत्रीय पार्टियों के अपने मुद्दे हैं, राज्यों में उनकी अपनी सियासी लड़ाइयां हैं. ऐसे में लोकसभा चुनाव में प्री पोल एलायंस मुश्किल लगता है, बातचीत कर नतीजों के बाद पोस्ट पोल अलायंस की उम्मीद ज्यादा दिखाई पड़ती है. लेकिन अभी के लिए अविश्वास की बड़ी खाई है जिस पाटना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. ये खाई ज्यादा बड़ी इसलिए दिखती है क्योंकि कांग्रेस के कई नेता तुरंत ही विपक्षी नेताओं पर बड़े वार कर जाते हैं.
हाल ही में जब नीतीश कुमार ने विपक्षी एकजुटता के लिए कांग्रेस को पहल करने को कहा था, इस पर जवाब ये दिया गया कि नीतीश कुमार ने भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा तक नहीं लिया, उन्हें न्योता दिया गया था, फोन करके बोला गया था, लेकिन जेडीयू नगालैंड में चुनावी प्रचार करने में व्यस्त रही जहां उसका कोई जनाधार तक नहीं है. अब नीतीश कुमार विपक्ष का एक बड़ा चेहरा हैं, बिहार में लंबे समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए हैं, राज्य में कांग्रेस उनके साथ भी खड़ी है, लेकिन ऐसे बयान तल्खी बढ़ाने का काम कर सकते हैं.
वैसे कांग्रेस के कुछ नेताओं के मन में नीतीश कुमार और जेडीयू के लिए जो खटास है, उसके अपने कारण हैं. भारत जोड़ो यात्रा में नीतीश का शामिल ना होना तो नाराज कर ही गया, जिस दिन यात्रा समाप्त हो रही थी, उसी दिन में बिहार में महागठबंधन की मेगा रैली का भी आयोजन कर दिया. बड़ी बात ये रही कि उस रैली के जो पोस्टर लगे, उससे राहुल गांधी की तस्वीर गायब रही. सोनिया को जगह मिली, लेकिन सक्रिय चल रहे राहुल गांधी को नदारद कर दिया गया. बिहार में कांग्रेस भी जेडीयू-आरजेडी के साथ है, लेकिन पोस्टर में जगह ना मिलने से कई नेता खफा हो गए. एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि हम राज्य में आपके साथी हैं. आप एक मेगा रैली का आयोजन करते हैं, लेकिन हमसे कोई बात तक नहीं करते. कार्यक्रम भी उस दिन रखा जाता है जब कांग्रेस का सबसे बड़ा शो होने जा रहा है. ये सब क्या है?
थर्ड फ्रंड और केसीआर की सियासत
अब एक तरफ कांग्रेस के साथ वाली विपक्षी एकजुटता की बात चल रही है तो दूसरी तरफ थर्ड फ्रंट की सुगबुगाहट भी तेज है. केसीआर पिछले साल से ही खुद को इस तरह से पोजीशन कर चुके हैं कि वे थर्ड फ्रंट का चेहरा हैं. वे कांग्रेस के बिना एक विपक्षी गठबंधन चाहते हैं. उन्होंने अपनी राष्ट्रीय पार्टी भी लॉन्च कर दी है. कई नेताओं से मुलाकात भी कर चुके हैं. ऐसे में इस समय विपक्षी खेमे में जबरदस्त हलचल है. एक हलचल कांग्रेस और उसकी विपक्षी एकता वाली है तो दूसरी थर्ड फ्रंट की कोशिश भी जोर पकड़ती दिख रही है.