Advertisement

अपनी छवि बदलने का मेगा प्लान, ग्लोबल इफेक्ट... मोदी पर वार के लिए अमेरिका-ब्रिटेन ही क्यों गए राहुल गांधी?

चुनावी मौसम में राहुल गांधी ने ब्रिटेन और अमेरिका का दौरा करने का क्यों फैसला किया? क्या इसके पीछे कांग्रेस का कोई गेम प्लान है या फिर राहुल गांधी के मन में 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ और ही चल रहा है?

कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी
राम शंकर
  • नई दिल्ली,
  • 18 जून 2023,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST

'मैं एक आम आदमी हूं. मुझे यह पसंद है. मैं तो अब सांसद भी नहीं हूं...' अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन क्लीयरेंस के इंतजार में जब राहुल गांधी को करीब दो घंटे इंतजार करना पड़ा तो उनके चेहरे पर कोई शिकन या गुस्सा नहीं था. वह आम यात्री की तरह एयरपोर्ट से बाहर निकलने की अपनी बारी का इंतजार करते रहे. एयरपोर्ट पर बाकी यात्रियों को राहुल के बारे में पता चला तो वे उनके पास आए. इस दौरान राहुल ने खुशी-खुशी उनके साथ सेल्फी भी खिंचवाई.

Advertisement

राहुल की 'कॉमन मैन' की यह छवि कई मौकों पर दिखती रही है. भारत जोड़ो यात्रा हो या फिर कर्नाटक का सियासी संग्राम, वह लीक से हटकर बाकी राजनेताओं की तरह दिखे हैं. ब्रिटेन और अमेरिका में कभी-कभी वो इसी अवतार में दिखे. अमेरिका में एयरपोर्ट का वो वाकया हो या फिर ट्रक ड्राइवर के साथ बातचीत, राहुल गांधी की अलग छवि दिखी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दोनों मुल्कों का दौरा क्या राहुल गांधी की रणनीति का कोई हिस्सा था? यदि हां तो फिर तो इन दौरों से उन्हें क्या हासिल हुआ? आगामी लोकसभा चुनाव में क्या इसका कोई असर होगा? विपक्ष में अभी भी पीएम पद का उम्मीदवार कौन हो, इस पर मंथन जारी है. यदि बदलते सियासी मौसम में कोई एक राय नहीं बन पाई, तो फिर राहुल की बदली-बदली छवि से क्या उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी?

Advertisement

चुनाव से पहले अमेरिका क्यों गए राहुल?
यह कोई संयोग नहीं है कि राहुल गांधी अमेरिका से अपना दौरा खत्म कर उस समय भारत लौट रहे हैं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के राजकीय दौरे पर जाने वाले हैं. प्रवासी भारतीयों में पीएम मोदी की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. तो फिर आखिर क्या वजह रही कि राहुल गांधी उस वक्त ब्रिटेन और अमेरिका गए, जब लोकसभा चुनाव में महज एक साल बचे हैं और अगले कुछ महीनों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं.

अमेरिका में सैम पित्रोदा के साथ राहुल गांधी

जब यही सवाल आज तक ने वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई से पूछा तो वो बताते हैं, 'कुछ दिनों पहले इंडिया टुडे-सी वोटर सर्वे दिखाया गया तो उसमें राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी थी. पीएम मोदी के टक्कर देते राहुल को पसंद करने वाले लोगों की तादाद बढ़ गई थी. आज इंटरनेट के दौर में खासकर सोशल मीडिया की अहमियत काफी बढ़ गई है. दुनिया के तमाम राजनेता इसका बखूबी इस्तेमाल करते हैं. खासकर पीएम मोदी ने इसका 2014 लोकसभा चुनाव और विदेश दौरों में खूब अपने पक्ष में भुनाया. अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया दौरे में पीएम मोदी प्रवासी भारतीयों के साथ संवाद करते रहे और इसका असर भारतीय वोटरों खासकर युवाओं पर हुआ. राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं और देश में मोदी के बाद सबसे लोकप्रिय जननेता हैं. राहुल इन दौरों से अपनी छवि मजबूत करने के साथ मोदी को टक्कर देने वाले राजनेता के रूप में खुद को पेश करना चाहते हैं.'

Advertisement

विदेश में मोदी सरकार की आलोचना कितना सही?
हालांकि राहुल गांधी पर इस बात को लेकर निशाना साधा गया कि वे विदेश में जाकर भारत सरकार की आलोचना करते हैं. उनके आलोचकों का कहना था कि इससे देश की छवि खराब होती है. खासकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर समेत मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने उन्हें आड़े हाथों लिया. इस पर राशिद किदवई कहते हैं- 'फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सिर्फ भारत ही नहीं, बाकी देशों में लोग यूज करते हैं. ऐसे में आपकी किसी भी जगह कही गई बात सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं रह सकती. किसी नेता की स्पीच या बयान उसी समय देखी या पढ़ी जा सकती है. राहुल गांधी इन तरीकों से खुद अपने आपको ऐसे पेश कर रहे हैं जो आम लोगों से जुड़ा हुआ इंसान है और उन्होंने इसे बखूबी पेश किया है. विदेश में वो जरूर होते हैं, लेकिन उनका टारगेट भारतीय मतदाता होते हैं.

ताकतवर मुल्कों का ही दौरा क्यों?
सवाल यह भी उठता है कि क्या राहुल गांधी इन विदेशी दौरे से 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी को जोड़ रहे हैं. राहुल खुद को ऐसे नेता के रूप में पेश करने की कोशिश में हैं जो भारत ही नहीं, मुल्क के बाहर भी मोदी के मुकाबले दिखता हो. प्रवासी भारतीयों से स्पष्ट संवाद और वहां की यूनिवर्सिटी में स्पीच, युवाओं के बीच वह खुद को दमदार दिखाना चाहते हैं. वो दिखाना चाहते हैं कि भारत को लेकर उनके पास विजन है. शायद इसी वजह से वह ब्रिटेन और अमेरिका जैसे ताकतवर देश गए और खुलकर बात की. सवाल यह भी उठता है कि ये अमेरिकी भारतीय जब वोट डालने भारत नहीं आ पाते तो भारतीय राजनेताओं से इतनी मोहब्ब्त क्यों? इसकी पीछे वजह है कि भले ही ये प्रवासी दुनिया के कोने-कोने में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ रखे हैं, लेकिन सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से वे हमेशा अपने वतन से जुड़े रहते हैं. इंडियन इकोनॉमी में इन लोगों का बड़ा निवेश है. अमेरिका और बाकी देशों में प्रवासी भारतीयों की लॉबी भारत के साथ रिश्ते पर गहरी छाप छोड़ते हैं. साल 1998 में भारत का परमाणु परीक्षण, फिर कड़े आर्थिक प्रतिबंध और कुछ वर्षों में अमेरिका से दोस्ताना रिश्ते पूरी कहानी बयां करते हैं.

Advertisement

कर्नाटक फतह के बाद कांग्रेस का जोश बढ़ गया है. विपक्ष भी आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रहा है. हालांकि इस प्लान में सबसे बड़ी बाधा है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर स्वीकार्यता. ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल से लेकर विपक्ष के दूसरे नेता अलग-अलग सुर अलाप रहे हैं. ऐसे में राहुल गांधी खुद को अलग तरीके से पेश कर रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा और विदेशी दौरा क्या राहुल का पीएम पद की उम्मीदवारी पर विपक्ष की ओर से मुहर लगवाने की कोशिश है, यह सवाल कई सियासी पंडितों के जेहन में उभर रहा है.

2024 में पीएम पद की उम्मीदवारी
राशिद किदवई भी कुछ इसे इस तरह से देखते हैं. उनका कहना है कि पीएम पद का मामला वही लोग उठा रहे हैं जो विपक्ष को जानबूझकर नकारना चाहते हैं या बात नहीं करना चाहते हैं. पहली बात यह है कि सबसे पहले पीएम का पद उपलब्ध होना चाहिए. 2024 चुनाव में यदि एनडीए को बहुमत मिलता है तो मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे. यदि बीजेपी 200 लोकसभा सीटों से नीचे रहती है और कांग्रेस बिग जंप लगाने में कामयाब होती है तो जरूर यह सवाल उठेगा कि पीएम पद पर किसकी दावेदारी हो. यदि कांग्रेस अपने दम पर 150 से अधिक सीट जीतती है और दूसरे विपक्षी दल भी इसी के आसपास सीटें लाते हैं तो जरूर वैकल्पिक सरकार की बात आएगी. उस वक्त राहुल की दावेदारी की जरूर चर्चा होगी.

Advertisement

राहुल के दिल में क्या चल रहा है?
अमेरिका में ट्रक ड्राइवर के साथ गुफ्तगू की भी खूब चर्चा हुई. इस दौरान वो उनसे उनकी कमाई के बारे में पूछते दिखे. भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक चुनाव में भी कुछ इसी तरह उनकी आम लोगों के साथ तस्वीरें आई थीं. आखिर राहुल इन चीजों से क्या दिखाना चाहते हैं. अपनी छवि बदलने की कोशिश या फिर कुछ उनके दिल में चल रहा है. किदवई बताते हैं, 'इंदिरा गांधी, नरेंद्र मोदी जैसी शख्सियत भी कुछ इसी तरह जनता से पेश आते रहे हैं. वो अपने आपको दिखाना चाहते हैं कि ताकतवर होने के बाद भी कोई भी उनके पास पहुंच सकता है. वह आम आदमी की बात समझते हैं. यह ऐसा माहौल बनाने की कोशिश होती है जो वंचित समाज, कमजोर और कॉमन मैन के साथ जुड़े हैं. ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथनी अल्बनीज या अमेरिकी राष्ट्रपित जो बाइडेन, जब ये लोग पीएम मोदी की तारीफ करते हैं तो उससे देश की छवि भी मजबूत होती है.'

वॉशिंगटन में प्रवासी भारतीयों के साथ राहुल गांधी

अमेरिका में प्रवासी भारतीय कितने असरदार?
अब बात करते हैं आखिर क्यों नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी जैसे नेता अमेरिका और ब्रिटेन का दौरा करना पसंद करते हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है अमेरिका में प्रवासी भारतीयो की अच्छी-खासी तादाद. अमेरिकी जनगणना ब्यूरो (एसीएस) के मुताबिक, अमेरिका में प्रवासी भारतीयों की आबादी 40 लाख से अधिक है. उनकी मेडिकल, इंजीनियरिंग, फाइनेंस सेक्टर में अच्छी दखल है.

Advertisement

हाल ही में अमेरिकी सांसद रिच मैकोरमिक ने भारतीय मूल के लोगों की तारीफ करते हुए कहा, 'अमेरिकी की कुल आबादी में प्रवासी भारतीयों की जनसंख्या महज एक फीसदी है, लेकिन वह कुल टैक्स में 6 फीसदी अंशदाता हैं. हमारे समुदाय में हर पांच में से एक डॉक्टर भारतीय मूल के हैं. ये अमेरिका के श्रेष्ठ नागरिकों में से एक हैं, जो कानून का पालन करते हुए ईमानदारी से अपना टैक्स अदा करते हैं. भारतीय मूल लोग कमाई में भी बाकी मुल्कों के प्रवासियों से आगे हैं. अमेरिकी और भारतीय राजनीतिक दलों को वो दिल खोलकर चंदा देते रहे हैं. साल 2019 की स्टडी के मुताबिक, डेमोक्रेटिक प्रत्याशियों को चंदा देने में एशियन समुदाय में सबसे आगे भारतीय रहे.'

इंग्लैंड में भी भारतीय मूल के लोगों का दबदबा
भारतीय मूल के लोगों का इंग्लैंड में कितना दबदबा है, इसका ताजा उदाहरण हैं वहां के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक. वह इंफोसिस के चीफ नारायण मूर्ति के दामाद हैं. प्रवासी भारतीयों की वहां हर सेक्टर में अच्छी-खासी दखल है. साल 2021 की जनगणना के मुताबिक, वहां भारतीय मूल के लोगों की आबादी 19 लाख से अधिक है. यह ब्रिटेन की कुल आबादी की 2.86 फीसदी है. ब्रिटेन की इकोनॉमी में भी प्रवासी भारतीयों का अहम योगदान है. इसका उदाहरण है ब्रिटेन की जीडीपी में भारतीय मूल के लोगों की भागदारी 6 फीसदी है. साल 2019 में ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीय मूल के 15 सदस्य थे. यह तस्वीर दिखाती है कि प्रवासी भारतीय वहां कितने प्रभावशाली हैं और क्यों भारतीय राजनेता इन मुल्कों का दौरा करते हैं.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement