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कार्यकर्ता को मान,राम मंदिर आंदोलन को सम्मान, बाहरी और महिलाओं का ध्यान... बीजेपी के राज्यसभा कैंडिडेट्स के चयन की रणनीति समझिए

बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट से कई केंद्रीय मंत्रियों के नाम नदारद हैं. पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत चार पुराने नाम हैं तो वहीं विधानसभा चुनाव हार चुके नेताओं के साथ ही कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं को भी पार्टी ने उच्च सदन का टिकट थमा दिया है. राज्यसभा उम्मीदवारों के चयन के पीछे बीजेपी की रणनीति क्या है?

नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली ,
  • 19 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:01 PM IST

राज्यसभा की 56 सीटों के लिए चुनाव होने हैं.इन 56 सीटों में से आधी यानी करीब 28 राज्यसभा सीटें केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में आएंगी. जिन 28 सीटों पर बीजेपी के लिए बीजेपी ने जिन उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है उनमें पुराने चेहरे नाम मात्र के ही हैं. बीजेपी की ओर से घोषित 28 में से महज चार चेहरे ही पुराने हैं. बीजेपी ने जिन चार चेहरों को फिर से राज्यसभा का टिकट दिया है, उनमें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और एल मुरुगन शामिल हैं.

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पार्टी ने इन चार चेहरों के अलावा 24 नए चेहरों पर दांव लगाया है. बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची में किसी भी नेता को दो बार से अधिक राज्यसभा नहीं भेजने की अघोषित नीति पर विराम नजर आ रहा है तो साथ ही कार्यकर्ताओं को मान, राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों और राम मंदिर निर्माण में सर्वाधिक चंदा देने वालों को सम्मान, कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए नेताओं और महिलाओं का ध्यान भी नजर आ रहा है.

यह भी पढ़ें: गुजरात से जेपी नड्डा, महाराष्ट्र से अशोक चव्हाण और ओडिशा से अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा चुनाव के लिए किया नामांकन 

आइए, समझते हैं कि बीजेपी के राज्यसभा कैंडिडेट्स के चयन में रणनीति क्या रही है?

1. बड़े चेहरों को लोकसभा से लाने की रणनीति

राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी उम्मीदवारों के ऐलान के साथ ही इन कयासों पर भी मुहर लग गई है कि इस बार पार्टी राज्यों के चुनाव की तर्ज पर लोकसभा चुनाव में भी बड़े नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों को उतारेगी. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, धर्मेंद्र प्रधान, मनसुख मांडविया, नारायण राणे, पुरषोत्तम रुपाला, वी मुरलीधरन और राजीव चंद्रशेखर को इस बार राज्यसभा का टिकट नहीं मिला है.

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केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (फाइल फोटो)

साफ है कि अगर इन नेताओं को संसद में प्रवेश करना है तो लोकसभा चुनाव जीतकर आना होगा. बीजेपी को उम्मीद है कि बड़े चेहरों को लोकसभा चुनाव में उतारने से संबंधित सीट पर तो माहौल बनेगा ही, आसपास की सीटों पर भी सकारात्मक संदेश जाएगा और इससे कई सीटों पर चुनाव नतीजे प्रभावित हो सकते हैं.

2. राज्यों से नया नेतृत्व उभारने पर जोर

राज्यसभा सांसदों को लोकसभा चुनाव में उतारने के पीछे राज्यों में नया नेतृत्व उभारने की रणनीति को भी वजह बताया जा रहा है. बीजेपी को ओडिशा में धर्मेंद्र प्रधान, गुजरात में मनसुख मांडविया, राजस्थान में भूपेंद्र यादव के भीतर कई साल तक नेतृत्व करने की संभावनाएं नजर आ रही हैं. यह सभी कमोबेश युवा हैं और अगले कई सालों तक पार्टी को राज्य में मजबूत कर सकते हैं. पार्टी अगर इन नेताओं को स्टेट लीडरशिप में मजबूती से स्थापित कर पाती है तो पीएम मोदी के बाद के दौर में यह पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है. ये तीनों नेता बीजेपी के उस सांचे में भी फिट बैठते हैं जिस तरह का नेतृत्व पार्टी चाहती है.

3. कांग्रेस को हर स्तर पर कमजोर करने की रणनीति

बीजेपी राज्यसभा चुनाव के जरिए लोकसभा चुनाव का गणित भी सेट करने की कोशिश कर रही है. पार्टी की रणनीति कांग्रेस को हर स्तर पर कमजोर करने की दिख रही है. टीम राहुल का चेहरा रहे यूपी और महाराष्ट्र के तीन बड़े चेहरों को राज्यसभा का टिकट इसी रणनीति का हिस्सा है. बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह और मिलिंद देवड़ा को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया ही, पार्टी जॉइन करने के कुछ घंटों के भीतर ही महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण को भी उच्च सदन का टिकट थमा दिया.

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महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण (फाइल फोटो)

इन तीनों नेताओं का अपने-अपने इलाके में अच्छा रसूख माना जाता है. महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद नांदेड़ से जीतने में सफल रहे थे. अशोक के पिता शंकरराव चव्हाण भी महाराष्ट्र के सीएम रहे हैं. मिलिंद देवड़ा खुद भी यूपीए सरकार में मंत्री रहे हैं और उनके पिता मुरली देवड़ा भी कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे थे. टीम राहुल के इन अहम चेहरों को अपने पाले में लाकर बीजेपी ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दे ही दिया था, अब उन्हें राज्यसभा भेजकर अपना भविष्य तलाश रहे नेताओं को भी बड़ा संदेश दे दिया है. 

4. विधानसभा चुनाव हारे नेताओं को मौका

बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में सामान्य कार्यकर्ताओं के नाम हैं तो साथ ही विधानसभा चुनाव हारे नेताओं के भी. ऐसे नेताओं के नाम भी उच्च सदन के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट में है जिनका टिकट पार्टी ने काट दिया था. यूपी से अमरपाल मौर्य, संगीता बलवंत, साधना सिंह के नाम इसी की बानगी हैं. अमरपाल मौर्य रायबरेली जिले की ऊंचाहार विधानसभा सीट से हार गए थे, वहीं संगीता बलवंत 2017 में पूर्वांचल की गाजीपुर सीट से विधायक रहीं लेकिन 2022 में उन्हें मात मिली थी.

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साधना सिंह चंदौली जिले की मुगलसराय सीट से विधायक रही हैं लेकिन 2022 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था. साधना सिंह की व्यावसायी वर्ग में भी अच्छी पैठ है. वह चंदौली जिला उद्योग व्यापार मंडल की अध्यक्ष भी हैं. ये सभी नाम कम चर्चित हैं और इनकी पहचान सामान्य कार्यकर्ता की है. इनकी उम्मीदवारी के जरिए पार्टी ने नेताओं और कार्यकर्ताओं, दोनों को ही संदेश देने की कोशिश नेतृत्व ने की है.

पूर्व विधायक साधना सिंह (फाइल फोटो)

कार्यकर्ताओं के लिए जहां यह संदेश है कि छोटे से छोटे कार्यकर्ता के काम पर भी नेतृत्व की नजर है और इसका ध्यान रखा जा रहा है. वहीं, नेताओं के लिए भी यह संदेश है कि निष्ठा के साथ काम करते रहे, अनुशासित रहकर पार्टी के लिए एक्टिव रहे तो टिकट काटे जाने या चुनाव हारने के बाद भी नेतृत्व उन्हें हाशिए पर नहीं जाने देगा. चुनाव हारने की स्थिति में भी उनकी सेवाओं का ध्यान रखा जाएगा.

5. किसान नेताओं पर फोकस

पीएम मोदी जातीय जनगणना की पिच पर बीजेपी को घेरने की विपक्षी रणनीति के बीच चार जातियों की बात करते रहे हैं- किसान, महिला, गरीब और युवा. बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में भी किसान और महिला पर फोकस साफ नजर आ रहा है.  हरियाणा से राज्यसभा भेजे जा रहे  बंशीलाल गुर्जर बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. बीजेपी की रणनीति बंशीलाल को उच्च सदन में भेज किसानों को संदेश देने की है कि पार्टी किसान बिरादरी को भी पूरा सम्मान दे रही है.

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6. महिला वर्ग को वेटेज

बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष रह चुकीं माया नारोलिया को भी मध्य प्रदेश से राज्यसभा का टिकट दिया गया है. मध्य प्रदेश चुनाव के बाद आए करीब-करीब हर एग्जिट पोल में बीजेपी को महिला वर्ग में अधिक वोट के अनुमान जताए गए. एमपी-छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत के पीछे पार्टी की साइलेंट वोटर मानी जाने वाली महिलाओं की भूमिका बड़ी मानी गई. अब पार्टी माया नारोलिया और साधना सिंह जैसी महिला नेताओं को टिकट देकर महिला वोटर्स को साधे रखने की कोशिश की है.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (फाइल फोटोः पीटीआई)

7. राम मंदिर से जुड़े लोगों को महत्व

बीजेपी ने महाराष्ट्र से डॉक्टर अजित गोपछडे़ और गुजरात से बड़े बिजनेसमैन गोविंद ढोलकिया को राज्यसभा का टिकट दिया है. डॉक्टर गोपछडे़ अयोध्या जाकर राम मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवा कर चुके हैं. गोपछड़े मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे हैं तो वहीं ढोलकिया ने मंदिर निर्माण के लिए सबसे अधिक 11 करोड़ रुपये चंदा दिए थे. बीजेपी 2024 के चुनाव में राम मंदिर निर्माण को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जा रही है और इन दोनों की उम्मीदवारी को राम मंदिर से जुड़े लोगों को पूर्ण महत्व का संदेश देने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.

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वाजपेयी-आडवाणी युग से कितनी अलग है राज्यसभा की रणनीति

अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर की बीजेपी से मोदी-शाह युग की बीजेपी की राज्यसभा रणनीति काफी अलग है. पुरानी बीजेपी में राज्यसभा की बर्थ अधिकतर उन नेताओं के लिए होती थी जो पार्टी के थिंक टैंक में थे लेकिन उनका जनता के बीच कुछ खास आधार नहीं था. तब अधिकतर ऐसे नेताओं को राज्यसभा भेजा जाता था जो या तो लोकसभा चुनाव हार चुके हों या फिर लोकसभा चुनाव जीतने की स्थिति में न हों.

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अरुण शौरी, अरुण जेटली, चंदन मित्रा और बलबीर पुंज जैसे नाम इसी का उदाहरण हैं. यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह जैसे नेताओं को भी बीजेपी ने राज्यसभा भेजा जिनकी भूमिका पार्टी की रणनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण मानी जाती थी. अब मोदी-शाह के युग की बीजेपी राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवारी का गणित थिंकटैंक वाले फॉर्मूले से कहीं अलग व्यापक वोटर वर्ग और लोकसभा चुनाव को ध्यान रखकर सेट कर रही है.

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