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राज्यसभा चुनाव के लिए हर दल दूसरे के विधायकों पर डाल रहा डोरे... हिमाचल, यूपी से कर्नाटक तक हलचल

राज्यसभा की 56 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में सीटों का गणित उलझ गया है. हिमाचल प्रदेश और यूपी से लेकर कर्नाटक तक सियासी हलचल बढ़ गई है. एक-एक विधायक का वोट अहम हो गया है और ऐसे में हर पार्टी एक-दूसरे के विधायकों पर डोरे डाल रही है.

मल्लिकार्जुन खड़गे और जेपी नड्डा मल्लिकार्जुन खड़गे और जेपी नड्डा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

देश के 15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. नामांकन पत्र दाखिल करने और इनकी जांच की अंतिम तारीख बीत चुकी है. आज नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख है और देर शाम तक तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी कि क्या 27 फरवरी को वोटिंग की नौबत आएगी या सभी उम्मीदवारों का निर्विरोध निर्वाचन तय हो जाएगा. फिलहाल, राज्यसभा चुनाव को लेकर राज्य दर राज्य सियासी पारा चढ़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश के साथ ही कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में भी अपनी तय सीटों से एक एक्स्ट्रा उम्मीदवार उतार बीजेपी ने राज्यसभा की चुनावी जंग को रोचक बना दिया है.

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इन तीन राज्यों में राज्यसभा का चुनावी गणित उलझ गया है तो वहीं बयानबाजियों का दौर भी तेज हो गया है. छत्तीसगढ़ की एकमात्र सीट से बीजेपी उम्मीदवार की जीत तय मानी जा रही है लेकिन इस राज्य में भी विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप को लेकर बयानी जंग छिड़ी हुई है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दावा किया है कि बीजेपी के नेता हमारे (कांग्रेस के) विधायकों के संपर्क में हैं और उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट और मंत्री पद देने का लालच दिया जा रहा है. कर्नाटक सरकार के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने भी जेडीएस पर कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में करने के लिए लालच देने का आरोप लगाया था.

अब हिमाचल प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के दावे से सियासी तापमान और बढ़ गया है. जयराम ठाकुर ने दावा किया है कि बीजेपी पार्टी लाइन से हटकर विधायकों के संपर्क में है. उन्होंने यह भी दावा किया कि कांग्रेस में जिस तरह से निराशा है, एक राज्यसभा सीट के लिए हो रहे चुनाव में कुछ भी हो सकता है. हिमाचल प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता ने यह भी कहा कि हमने कांग्रेस विधायकों और निर्दलीयों से सरकार के खिलाफ नाखुशी जताने के लिए वोट करने की अपील की है.

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राज्य दर राज्य हलचल के बीच कहां किस तरह के समीकरण हैं, खासकर उन राज्यों में जहां बीजेपी के अतिरिक्त उम्मीदवार उतार दिए हैं. आइए, नजर डालते हैं.

यूपी में एक सीट पर फंसा पेच

यूपी की 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. बीजेपी की सात और सपा की तीन सीटों पर जीत तय मानी जा रही थी लेकिन सत्ताधारी दल के आठवां उम्मीदवार उतारने और पिछले कुछ दिनों में बदले सियासी समीकरणों से एक सीट की लड़ाई रोचक हो गई है. 403 सदस्यों वाली यूपी विधानसभा की स्ट्रेंथ इस समय 399 है और चार सीटें रिक्त हैं. 10 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं, ऐसे में एक उम्मीदवार की जीत के लिए प्रथम वरीयता के 37 वोट की जरूरत होगी. बीजेपी को अपने सभी आठ उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए 296 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट की जरूरत होगी. पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया की पार्टी के दो विधायकों समेत 288 विधायकों का समर्थन है जो जरूरी संख्याबल से आठ कम है.

वहीं, सपा को अपने सभी तीन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए 111 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. सपा के 108, कांग्रेस के दो और बसपा का एक विधायक है. अगर सभी सपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करें तो पार्टी की तीसरी सीट आराम से निकल सकती है लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा. अपना दल कमेरावादी की नेता और सपा विधायक पल्लवी पटेल ने दो टूक कह दिया है कि वह बच्चन और रंजन को वोट नहीं देंगी. अब कांग्रेस और सपा की राहें भी सूबे में जुदा होती नजर आ रही हैं. ऐसे में अगर कांग्रेस किनारा कर लेती है, पल्लवी पार्टी उम्मीदवार को वोट नहीं देती हैं और बसपा का भी साथ नहीं मिलता है तो सपा नंबरगेम में 107  वोट तक पहुंचती नजर आ रही है.

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ताजा तस्वीर यह है कि सपा प्रथम वरीयता के लिए जरूरी 37 वोट से चार कम 33 वोट पर ठिठकती नजर आ रही है. दूसरी तरफ, बीजेपी के पास आठवें उम्मीदवार के लिए प्रथम वरीयता के 29 वोट हैं. लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह से नेता सपा से किनारा करते जा रहे हैं, कुछ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी तो बीजेपी के आठवें उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो सकती है. सपा को आरएलडी और सुभासपा में अपने वफादार विधायकों से जरूरत के समय क्रॉस वोटिंग की उम्मीद भी है. अब किसका गणित सेट होगा और किसका फेल, यह देखना होगा. 

हिमाचल प्रदेश में क्या हैं समीकरण

हिमाचल प्रदेश की एक राज्यसभा सीट के लिए वोटिंग होनी है. सूबे की विधानसभा में कुल 68 सदस्य हैं. ऐसे में एक उम्मीदवार की जीत के लिए प्रथम वरीयता के 35 वोट की जरूरत है. कांग्रेस का संख्याबल 40 है और तीन निर्दलीय विधायक भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं. ऐसे में सूबे की सत्ता पर काबिज कांग्रेस की जीत प्रथम वरीयता के 43 वोट के साथ सुनिश्चित मानी जा रही है. कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी के सामने बीजेपी ने हर्ष महाजन को उतार दिया है. हर्ष भी कांग्रेस से ही बीजेपी में आए थे, ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि कांग्रेस के कुछ विधायक महाजन के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं. जयराम ठाकुर के इस दावे ने भी कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है कि पार्टी लाइन से हटकर भी कुछ विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं.

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कर्नाटक की एक सीट पर भी फंसा पेच

कर्नाटक की चार राज्यसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में कांग्रेस से तन और बीजेपी-जेडीएस गठबंधन से दो उम्मीदवार मैदान में हैं. विधानसभा के नंबरगेम और वोटों के गणित की बात करें तो 224 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 135 विधायक हैं. बीजेपी के 66 और जेडीएस के 19 विधायक हैं. दोनों का संख्याबल 85 पहुंचता है. दो निर्दलीय समेत अन्य के भी चार विधायक हैं. अब वोटों के गणित की बात करें तो एक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए 45 विधायकों के प्रथम वरीयता वाले वोट की जरूरत होगी.

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कांग्रेस को अपने तीनों उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रथम वरीयता के 135 वोट की जरूरत होगी जो उसके पास है भी. लेकिन बीजेपी-जेडीएस के दूसरा उम्मीदवार उतारने से गणित उलझ गया है. दरअसल, बीजेपी-जेडीएस गठबंधन का संख्याबल 85 है जो दूसरे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी 90 से पांच कम है. अब अगर अन्य के चार विधायक बीजेपी-जेडीएस गठबंधन के पक्ष में मतदान कर देते हैं तो गठबंधन के पास दूसरी सीट के लिए प्रथम वरीयता के 44 वोट होंगे जो जरूरी वोट से एक कम है.

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ऐसे में कांग्रेस का एक विधायक भी अगर बीजेपी-जेडीएस गठबंधन के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दे या दो विधायक वोटिंग से दूरी बना लें तो विपक्षी गठबंधन के दूसरे उम्मीदवार की जीत भी सुनिश्चित हो सकती है. कांग्रेस भी यह गणित समझ रही है और यही वजह है कि कर्नाटक में पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले एक-एक विधायक को गोलबंद रखने के लिए खुद मोर्चा संभाल लिया है.

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