
लोकसभा चुनाव से पहले उच्च सदन राज्यसभा की 56 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. 15 राज्यों की 56 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच एक-एक सीट के लिए रस्साकशी देखने को मिल रही है. लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पिछले 20 दिनों के भीतर हुए सियासी उलटफेर ने राज्यसभा चुनाव को दिलचस्प बना दिया है. गठबंधनों का गणित बदलने से उत्तर प्रदेश और बिहार की एक-एक सीट पर पेच फंस गया है.
उत्तर प्रदेश की बात करें तो सूबे की 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. 7 सीटों पर बीजेपी और तीन सीटों पर सपा के उम्मीदवारों की जीत तय लग रही थी लेकिन बदली परिस्थितियों में अब अखिलेश की पार्टी के लिए तीसरी सीट जीतना चुनौतीपूर्ण हो गया है. बीजेपी सात सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान पहले ही कर चुकी है और आज नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख भी है. सूत्रों की मानें तो बीजेपी नामांकन के अंतिम दिन यूपी से राज्यसभा चुनाव के लिए अपने आठवें उम्मीदवार का ऐलान कर सकती है. चर्चा है कि बीजेपी संजय सेठ को चुनाव मैदान में उतार सकती है. यूपी से बीजेपी ने आठवां उम्मीदवार उतारा तो सपा के लिए अपनी तीसरी सीट निकाल पाना मुश्किल हो सकता है.
राज्यसभा चुनाव के लिए यूपी का गणित
यूपी विधानसभा की स्ट्रेंथ इस समय 399 सदस्यों की है. 403 सदस्यों वाली यूपी विधानसभा की चार सीटें रिक्त हैं. वर्तमान संख्याबल के हिसाब से राज्यसभा की एक सीट से जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रथम वरीयता के 37 वोट की जरूरत होगी. एनडीए का अंकगणित देखें तो बीजेपी के 252, अपना दल (सोनेलाल) के 13, निषाद पार्टी के छह और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के छह विधायक हैं. हाल ही में एनडीए का दामन थामने वाले राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के नौ विधायकों को भी जोड़ लें तो एनडीए का संख्याबल 286 पहुंच जाता है. रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल के भी दो विधायक हैं जो समय-समय पर सरकार के साथ खड़े नजर आए हैं. इन्हें भी जोड़ लें तो एनडीए का आंकड़ा 288 विधायकों तक पहुंच जाता है.
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सुभासपा के विधायक अब्बास अंसारी और सपा विधायक इरफान सोलंकी अलग-अलग मामलों में जेल में बंद हैं. सपा के 108 विधायक हैं. कांग्रेस के दो और बसपा के एक विधायक हैं. सपा को तीन राज्यसभा सीटें जीतने के लिए 111 विधायकों के वोट की जरूरत होगी. अगर इरफान सोलंकी समेत सपा के सभी विधायक पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट करते हैं और कांग्रेस विधायकों के साथ ही बसपा के एकमात्र विधायक का वोट भी मिल जाता है तो पार्टी का तीसरा विधायक आसानी से चुनाव जीत जाएगा. लेकिन दिक्कत यह है कि इरफान सोलंकी के वोट डालने पर सस्पेंस है और पल्लवी पटेल ने साफ कह दिया है कि हम बच्चन-रंजन को वोट नहीं देंगे. ऐसे में सपा के अपने दो वोट पर सस्पेंस है ही, बसपा विधायक का वोट उसे मिल पाएगा, इसकी संभावनाएं भी ना के बराबर ही मानी जा रही हैं. अगर ऐसा होता है तो सपा के पास तीसरी सीट के लिए 28 से 29 वोट ही बचेंगे.
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दूसरी तरफ, आरएलडी के पालाबदल के बाद बीजेपी के पास सात उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के बाद भी करीब 28 से 29 वोट अधिक हैं. ऐसे में दोनों ही पक्षों के पास प्रथम वरीयता के वोट करीब-करीब बराबर होंगे. ऐसे में फैसला द्वितीय वरीयता के वोट पर निर्भर करेगा जहां बीजेपी और एनडीए का पलड़ा भारी नजर आ रहा है. सपा को ऐसी स्थिति में आरएलडी और सुभासपा में अपने लॉयल लोगों से उम्मीद है कि जरूरत पड़ने पर वे उसके पक्ष में वोट कर देंगे. अब पेच यह भी है कि वोट दिखाकर देना होता है ऐसे में विधायक पार्टी लाइन से अलग जाएंगे, इसकी संभावनाएं भी नगण्य ही मानी जा रही है.
बिहार में क्या हैं समीकरण
बिहार की छह राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं और एनडीए ने तीन उम्मीदवार उतारे हैं. महागठबंधन ने भी तीन उम्मीदवार उतारे हैं और दोनों ही तरफ से तीन-तीन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है लेकिन बीजेपी ने अगर सातवां उम्मीदवार उतार दिया तो सीटों का गणित उलझ जाएगा. चर्चा है कि बीजेपी संगठन में कोषाध्यक्ष राकेश तिवारी को टिकट दे सकती है. अगर ऐसा हुआ तो महागठबंधन का गणित कैसे उलझ जाएगा, यह समझने के लिए विधानसभा और एक सीट पर जीत के लिए वोटों का अंकगणित भी सझना होगा.
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बिहार विधानसभा में एनडीए के पास 130 विधायकों का समर्थन है और एआईएमआईएम के एकमात्र विधायक को भी जोड़ लें तो विपक्षी गठबंधन के साथ 112 विधायक हैं. एक सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए 35 विधायकों के वोट की जरूरत होगी और ऐसे में दोनों ही गठबंधनों को जीत के लिए 105-105 विधायकों के वोट की जरूरत होगी जो वर्तमान संख्याबल के लिहाज से दोनों के पास है भी. अब पेच यह है कि एनडीए के पास अपनी तीन सीटें जीतने के बाद भी 25 वोट अधिक हैं और उसे एक और सीट जीतने के लिए 10 विधायकों की जरूरत होगी. महागठबंधन के पास भी एआईएमआईएम विधायक को लेकर सात वोट अधिक हो रहे हैं. लेकिन अगर बीजेपी सातवां उम्मीदवार उतारती है तो चुनावी लड़ाई कड़ी हो सकती है.