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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक आज बेंगलुरु में शुरू हो रही है. संघ के इतिहास में पहली बार नागपुर से बाहर हो रही प्रतिनिधि सभा की चुनावी बैठक काफी अहम मानी जा रही है, क्योंकि 20 मार्च को संघ में नंबर दो के पद यानी सरकार्यवाह का चुनाव होना है. संघ प्रमुख के बाद आरएसएस में सरकार्यवाह का पद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. दुनिया के सबसे बड़े संगठन के नंबर दो के लिए जब चुनाव होता है तो न ही कोई तामझाम रहता है, और न ही कोई दिखावा. ऐसे में हम बताएंगे कि कैसे संघ में चुनावी प्रक्रिया अपनाई जाती है.
आरएसएस में सबसे अहम पद संघ प्रमुख (सरसंघसंचालक) का होता है, जिसका चयन संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में होता है. हालांकि, संघ का अपना लोकतांत्रिक ढांचा है, लेकिन अंतिम निर्णय सरसंघचालक का ही होता है. अब तक के आरएसएस के इतिहास में ऐसा रहा कि हर सरसंघचालक अपना उत्तराधिकारी खुद चुनता आया था. इसी परंपरा का निर्वहन हो रहा है, लेकिन संघ के सरकार्यवाह के लिए बकायदा चुनाव की परंपरा है. संघ के इस चुनाव की प्रक्रिया में पूरी केंद्रीय कार्यकारिणी, क्षेत्र व प्रांत के संघचालक, कार्यवाह व प्रचारक और संघ की प्रतिज्ञा किए हुए सक्रिय स्वयंसेवकों की ओर से चुने गए प्रतिनिधि शामिल होते हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हर तीन साल पर सरकार्यवाह पद का चुनाव होता है. यह संगठन में कार्यकारी पद होता है, जबकि सरसंघचालक का पद मार्गदर्शक का होता है. वहीं, संघ के नियमित कार्यों के संचालन की जिम्मेदारी सरकार्यवाह की होती है. एक तरह से महासचिव का पद होता है, जिसे संघ सरकार्यवाह कहा जाता है. इसके साथ ही प्रतिनिधि सभा में अन्य प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति भी होती है. सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल तीन साल का होता है.
संघ में प्रत्येक तीन साल पर चुनावी प्रक्रिया जिला स्तर से शुरू होती है. सरकार्यवाह से पहले जिला और महानगर संघचालक का चुनाव होता है, जिसके बाद विभाग संघचालक और फिर प्रांत संघचालक का चुनाव किया जाता है. चुनाव के बाद ये सभी अधिकारी अपनी नई टीम की घोषणा करते हैं. इस प्रक्रिया के पूरी होने के बाद अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह का चुनाव किया जाता है और साथ ही उसी बैठक में क्षेत्र संघचालक का भी चुनाव होता है.
संघ के प्रतिनिधि सभा की बैठक में अंतिम दिन सरकार्यवाह का चुनाव होता है. सरकार्यवाह अपने तीन वर्षों के कार्यकाल का पूरा लेखा जोखा रखते हैं. इसके बाद वो कहते हैं कि अब आप लोग जिन्हें चाहें इस दायित्व के लिए चुन सकते हैं. फिर वे मंच से उतरकर सामने आकर सभी लोगों के साथ बैठ जाते हैं. उस समय मंच पर केवल सरसंघचालक बैठे रहते हैं. इसके बाद संघ के सबसे वरिष्ठ सह सरकार्यवाह के चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी की घोषणा कर सकते हैं.
संघ के चुनाव अधिकारी चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत करते हुए नए सरकार्यवाह के लिए नाम मांगेंगे. केंद्रीय प्रतिनिधियों के इस चुनाव में केंद्रीय प्रतिनिधि ही वोटर होते हैं, लेकिन कोई भी प्रचारक वोटर नहीं होता. संघ का कोई व्यक्ति खड़ा होकर नाम की घोषणा करता है और दूसरा उसका अनुमोदन कर देता है. ऐसे में अगर किसी को कोई नाम देना होता है तो वो 3 से 4 अनुमोदक के साथ नाम प्रस्तावित कर सकता है.
चुनाव पदाधिकारी घोषणा करते हैं कि कोई और नाम इसके लिए प्रस्तावित है तो बताएं. ऐसे में जब कोई नाम नहीं आता है तब सर्वसम्मति से सरकार्यवाह के लिए उस नाम की घोषणा चुनाव पदाधिकारी की ओर से की जाती है. इसके बाद उन्हें सम्मानपूर्वक मंच पर ले जाकर सरसंघचालक के साथ बैठा दिया जाता है. सरकार्यवाह अपनी टीम के नामों की घोषणा करते हैं और फिर बैठक होती है और आगामी कार्ययोजना पर चर्चा होती है. संघ के इतिहास में अभी तक तो सर्वसम्मति से ही सरकार्यवाह का चुनाव हुआ है. नए सरकार्यवाह चुने जाने के बाद अपनी टीम का गठन करते हैं.
संघ के अभी तक के सरकार्यवाह
आरएसएस में अभी तक सरकार्यवाह की जिम्मेदारी माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर उर्फ गुरुजी, जो बाद में संघ प्रमुख भी बने. भैयाजी दानी, एकनाथ राणाडे, माधव राव मूले, बाला साहब देवरस उपाख्य दत्तात्रेय देवरस (बाद में तृतीय सरसंघचालक बने), रज्जू भैया उपाख्य डाक्टर राजेंद्र सिंह (बाद में चौथे सरसंघचालक बने), हो वे शेषाद्री, डा. मोहन भागवत (वर्तमान सरसंघचालक), भय्याजी जोशी (वर्तमान सरकार्यवाह) बने हैं. भैयाजी जोशी पिछले दो दशक से ज्यादा से समय से इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं और इस बार उनका चयन होता है तो पांचवी बार वो इस पद पर विराजमान होंगे.