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आरक्षण को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने मंगलवार को बड़ा बयान दिया है. होसबाले ने साफ तौर पर कहा कि वह और उनका संगठन आरएसएस आरक्षण का 'पुरजोर समर्थक हैं. उन्होंने भारत के लिए आरक्षण को एक 'ऐतिहासिक जरूरत' बताते हुए कहा कि जब तक समाज का एक खास वर्ग 'असमानता' का अनुभव करता है, तब तक आरक्षण जारी रखा जाना चाहिए. होसबाले के आरक्षण पर दिए गए बयान को सवर्ण समुदाय के संगठन संघ की वैचारिक शिफ्टिंग बता रहे हैं.
संघ ही बढ़ा रहा है सामाजिक असमानता
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा (रा.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित राजेंद्र नाथ त्रिपाठी ने कहा कि आरएसएस आरक्षण के पक्ष में खड़े होकर देश से जातिवाद और असमानता को खत्म करने के बजाय उसे बढ़ाने का काम कर रहा है. संघ अब सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों के बजाय बीजेपी के राजनीतिक हितों को लेकर काम करता है. इसके मद्देनजर दलित और पिछड़ा वर्ग को राजनीतिक संदेश देने के लिए दत्तात्रेय होसबाले ने आरक्षण का समर्थन किया है. संघ ऐसे ही अगर आरक्षण पर अपना रवैया रखता है तो ब्राह्मण समाज को सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. देश में आखिर आरक्षण की व्यवस्था कब खत्म होगी और कब प्रतिभा को सम्मान मिलेगा. इस पर संघ से लेकर बीजेपी तक सब खामोश हैं.
वहीं, दूसरी अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष कुलदीप भारद्वाज कहते हैं कि संघ ब्राह्मण और सवर्ण समुदाय की कमजोरी का फायदा उठा रहा है. आरक्षण की सीमा कब खत्म हो गई. आरक्षण को लागू हुए 70 साल हो गए हैं और तीसरी पीढ़ी ने जन्म ले लिया है. आरक्षण से अगर कोई समुदाय दो बार सांसद, दो बार विधायक या फिर सेकेंड क्लास अधिकारी रहा है तो उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति दोनों ही काफी बेहतर है. ऐसे में समाज में आज अंतर जातीय विवाह और खानपान हो रहा है. इससे जाहिर होता है कि सामाजिक असमानता खत्म हो गई है. ऐसे में जातिगत आरक्षण व्यवस्था को कायम रखना कैसे सामाजिक न्याय है और आरएसएस किस आधार पर इसकी वकालत कर रहा है. देश में प्रतिभा का सम्मान न होने से हमारे लोग विदेश पलायन कर रहे हैं. इसके बाद भी संघ आरक्षण को यथावत बनाए रखना चाहता है.
आरक्षण पर संघ की वैचारिक शिफ्टिंग
आरक्षण विरोधी आंदोलन के संजोयक यूएस राणा कहते हैं कि आरएसएस का अब सामाजिक और सांस्कृतिक कामों से लेना देना नहीं रह गया है. संघ बीजेपी की बी-टीम बनकर रह गई है. एक समय था जब संघ बीजेपी को चलाया करता था, लेकिन अब बीजेपी संघ को चला रही है. ऐसे में बीजेपी के हित को ध्यान में रखकर संघ काम करता है. संघ वही बोलता है, जो बीजेपी के राजनीतिक हित को फायदा पहुंचा सके. दत्तात्रेय होसबाले का आरक्षण पर बयान इसी नजरिए से दिया गया है.
वह कहते हैं कि संघ के नजरिए में यह बदलाव पिछले 20 साल में आया है. संघ शुरू से ही आरक्षण का विरोध करता रहा है. संघ के सभी सरसंघचालक मानते थे कि हिंदू एकता में विभाजन नहीं होना चाहिए. लेकिन अब संघ आरक्षण के समर्थन में है. ऐसे में इसे संघ की वैचारिक शिफ्टिंग ही कहा जाएगा. उन्होंने कहा कि दत्तात्रेय होसबाले आरक्षण को एतिहासिक जरूरत बताते हैं तो इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत 100 साल तक आरक्षण व्यवस्था कायम रहने की बात करते हैं. वहीं, मोदी सरकार ओबीसी बिल लेकर आई है, जिससे राज्यों को ओबीसी आरक्षण बढ़ाने का अधिकार मिलेगा. ऐसे में सरकारें 50 फीसदी आरक्षण सीमा को बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं. इससे लोगों में अंदर-अंदर गुस्सा बढ़ रहा है. यही हालत रहे तो वर्ग संघर्ष बढ़ सकता है. यह बात संघ को दिखाई नहीं दे रही है. आरक्षण से हिंदू समाज में बंटवारा होता है. इसके बावजूद संघ आरक्षण की तरफदारी कर रहा है.
यूपी चुनाव के चलते संघ ने दिया बयान
आरक्षण पर होसबाले के बयान को लेकर यूथ फॉर इक्वलिटी के सुभम शर्मा कहते हैं कि यह पूरी तरह से राजनीतिक है. यूपी में चुनाव है, जिसके लिहाज से संघ ने जाति आधार पर आरक्षण की वकालत की है. नीट में बिना मांगे ही ओबीसी समुदाय को आरक्षण देने का काम किया है और राज्यों को ओबीसी की सूची बनाने का अधिकार दे दिया है. बीजेपी यह सब ओबीसी का मसीहा बनने के लिए कर रही है. आरएसएस सोशल इंजीनियरिंग में इतना आगे निकल चुका है, उसे सिर्फ दलित और ओबीसी ही नजर आते हैं और उन्हीं के लिए काम कर रहे हैं. संघ का सामाजिक समानता से कोई वास्ता नहीं रह गया है. संघ इस बात को बेहतर तरीके से जानता है कि बिना बीजेपी के सत्ता में रहे, उसके गोल पूरे नहीं हो सकती है. इसीलिए संघ वही काम कर रहा है जो बीजेपी को सियासी तौर पर फायदा पहुंचाने का काम करते हैं.
आर्थिक आधार से खत्म होगी असमानता
वहीं, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष हरिबंश सिंह कहते हैं कि जातिवादी आरक्षण व्यवस्था का हम विरोध करते रहे हैं और संघ के उस नजरिए को लेकर चल रहे हैं, जिस में गुरु गोलवलकर आर्थिक आधार पर आरक्षण चाहते थे. समाज में आज जातिवाद की वजह से असमानता नहीं है बल्कि आर्थिक आधार के चलते है. देश में आर्थिक आधार पर समाज के जो भी लोग गरीब हैं, उन्हें आरक्षण की व्यवस्था में लाया जाना चाहिए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभी तक आरक्षण के मुद्दे पर जो रुख अपना रखा था, उस पर अगर गौर किया जाए तो संघ हमेशा ही आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करता रहा है. संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने अपनी किताब 'विचारधन' में आर्थिक आधार पर आरक्षण व्यवस्था की बात कही है. उन्होंने लिखा है, 'जाति के आधार पर आरक्षण देने की वजह से स्वतंत्र समाज के तौर पर उनका अस्तित्व निर्माण हुआ. समाज के सभी तबकों में गरीब लोग रहते हैं. ऐसे में आरक्षण की सुविधा आर्थिक आधार पर दी जानी चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो सिर्फ दलितों को ही आरक्षण मिल रहा है, ये भावना ख़त्म हो जाएगी.
भागवत के बयान से होसबाले ने लिया सबक
बता दें कि साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर समीक्षा करने का जो बयान दिया था, उससे भी काफ़ी बवाल मचा था. उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोहन भागवत के बयान पर सफाई दी थी. भागवत के इस बयान का खामियाजा भी बीजेपी को चुनाव में उठाना पड़ा था. ऐसे में संघ ने अब यूपी चुनाव से पहले आरक्षण की तरफदारी करके ओबीसी और दलित समुदाय को सियासी संदेश देने की कवायद की है.
दत्तात्रेय होसबाले ने मंगलवार को इंडिया फाउंडेशन के द्वारा आयोजित 'Makers of Modern Dalit History' किताब विमोचन कार्यक्रम में कहा कि सामाजिक सौहार्द और सामाजिक न्याय हमारे लिए राजनीतिक रणनीतियां नहीं हैं बल्कि ये दोनों हमारे लिए आस्था की वस्तु हैं. उन्होंने आरक्षण को एक 'ऐतिहासिक जरूरत' और आरक्षण को 'सकारात्मक कार्रवाई' का साधन बताया. कहा कि आरक्षण और समन्वय (समाज के सभी वर्गों के बीच) साथ-साथ चलना चाहिए.
होसबाले ने कहा, जब हम समाज के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं तो निश्चित रूप से आरक्षण जैसे कुछ पहलू सामने आते हैं. मेरा संगठन और मैं दशकों से आरक्षण के प्रबल समर्थक हैं. जब कई परिसरों में आरक्षण विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे, तब हमने पटना में आरक्षण के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया और एक संगोष्ठी आयोजित की थी. होसबाले ने यह बात ऐसे समय में कही है जब राज्यों को ओबीसी आरक्षण की सूची तैयार करने का अधिकार देने वाला बिल लोकसभा में मंगलवार को ध्वनिमत से पारित हुआ. पिछले दिनों मोदी सरकार ने नीट में ओबीसी आरक्षण दिया है. यही वजह है कि सवर्ण समुदाय के संगठन संघ के बयान से खुश नहीं नजर आ रहे हैं.