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शरद यादव: जेपी मूवमेंट से निकलने वाला छात्र नेता जो हिन्दी हार्टलैंड में समाजवादी आंदोलन का प्रतीक बन गया

भारत में समाजवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली चेहरों में शुमार शरद यादव का निधन हो गया है. शरद यादव भारत की राजनीति का वो नाम थे जो खरी-खरी कहने से गुरेज नहीं करते थे.

शरद यादव नहीं रहे. (फाइल फोटो) शरद यादव नहीं रहे. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:57 AM IST

प्रखर समाजवादी नेता शरद यादव नहीं रहे. गुरुवार (12 जनवरी) को उनका गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया. छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाने वाले शरद यादव के निधन की सूचना उनकी बेटी सुभाषिनी शरद यादव ने ट्विटर के जरिये दी. सुभाषिनी शरद यादव ने ट्वीट कर लिखा- पापा नहीं रहे. शरद यादव दिल्ली से सटे गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती थे. 

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शरद यादव ने सियासत में लंबी पारी खेली. समाजवादी आंदोलन से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में छाने वाले शरद यादव ने भारत के हिन्दी हार्टलैंड पर अपना परचम फहराया और हिन्दी पट्टी की राजनीति के सशक्त हस्ताक्षर बन गए. शरद यादव देश की आजादी से कुछ ही दिन पहले 1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में पैदा हुए थे, लेकिन उनकी कर्मभूमि रही बिहार और उत्तर प्रदेश.  

किसान परिवार में पैदा होने वाले शरद यादव की रुचि शिक्षा अर्जन में बचपन से ही रही. जब उच्च शिक्षा की बात आई तो शरद यादव ने इंजीनियरिंग को अपना पेशा चुना. शरद यादव ने अपना दाखिला एमपी के जबलपुर के विख्यात इंजीनियरिंग कॉलेज में करवाया. इसी कॉलेज में युवा शरद ने राजनीति का ककहरा सिखा. तब देश में छात्र राजनीति उफान पर थी. शरद यादव इसी कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए.

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हालांकि सियासत की सीढ़ी चढ़ते हुए शरद यादव ने अपनी पढ़ाई को प्रभावित नहीं होने दी. उन्होंने BE सिविल में गोल्ड मेडल जीता था. शरद यादव की शादी 15 फरवरी 1989 को रेखा यादव से हुई. इन दोनों को एक बेटा और एक बेटी है. 

1974 में जब देश में छात्र आंदोलन चल रहा था तो वे 27 साल के थे. इसी दौरान जय प्रकाश नारायण ने उन्हें जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ने के लिए भेजा. इस उपचुनाव में शरद यादव को जीत मिली और यही से औपचारिक रूप से उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ. 1977 में वे एक बार फिर से इसी सीट से चुनाव जीते. 

लोहिया के विचारों से थे प्रभावित

शरद यादव समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित थे. उन्हीं से प्रेरित होकर शरद यादव ने कई राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लिया. आपातकाल के दौरान MISA के तहत  1969-70, 1972, और 1975 में वे हिरासत में ले लिए गए. शरद यादव ओबीसी की राजनीति के बड़े नेता थे. उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने में भी अहम भूमिका निभाई. 

एमपी से उत्तर प्रदेश आए शरद

शरद यादव राजनीति में तेजी से उभर रहे थे. 1978 में वे युवा लोक दल के अध्यक्ष बन गए. 1981 में शरद यादव की सियासत मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश आ गई. 

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तब तक शरद यादव पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के करीब आ चुके थे. 1980 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. लेकिन जब संजय गांधी की मौत के बाद 1981 में अमेठी में उपचुनाव हुआ तो इस चुनाव में शरद यादव राजीव गांधी के खिलाफ खड़े हो गए. इस चुनाव में उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. 

यूपी से अब बिहार की ओर हुआ प्रस्थान

शरद यादव 1989 में बदायूं लोकसभा सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते.  1989-90 में शरद यादव टेक्सटाइल और फूड मंत्री रहे. इसके बाद शरद यादव ने अपनी संसदीय राजनीति का सफर बिहार से शुरू किया. शरद यादव बिहार के मधेपुरा सीट से चुनावी दंगल में उतरे और 1991, 1996, 1999 और 2009 में इस सीट से चुनाव जीते. इस सीट से उन्हें 4 बार हार का मुंह भी देखना पड़ा. शरद यादव को शिकस्त दी लालू यादव ने. पहली बार 1998 में और फिर 2004 में. फिर पप्पू यादव ने उन्हें 2014 में हराया. 2019 में शरद यादव को हराया जेडीयू के दिनेश यादव ने.  

शरद यादव 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए थे. इसके बाद वह 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 13 अक्तूबर 1999 से 31 अगस्त 2001 तक वह नागरिक उड्डयन मंत्री रहे. इसके बाद 1 सितंबर 2001 से 30 जून 2002 तक शरद यादव श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री चुने गए. 2004 में वह एक फिर राज्यसभा सांसद चुने गए और गृह मंत्रालय समेत कई कमेटियों के सदस्य बने. 

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जब नीतीश से हुआ मनमुटाव 

शरद यादव को कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सारथी माना जाता था. लेकिन नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में आगे बढ़ते रहे और कई वजहों से शरद यादव नीतीश की बढ़ती ताकत के साथ कदम ताल नहीं कर सके. दोनों दिग्गज समाजवादियों के बीच टकराव होता गया. मनमुटाव बढ़ता गया. इसके बाद शरद यादव ने 2018 में जेडीयू से बगावत कर लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली.   

लेकिन शरद यादव की पार्टी को खास सफलता नहीं मिली. समाजवाद का ये सितारा मौजूदा समय में संसदीय राजनीति से दूर था. कुछ महीने पहले से राहुल गांधी के साथ देखे गए थे. लेकिन देश की राजनीतिक और सामाजिक हलचलों पर उनकी पैनी नजर रहा करती थी और वे इनसे जुड़े मुद्दों पर लगातार अपनी प्रतिक्रिया देते रहते थे.  

 

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