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विपक्षी एकता के नए सूत्रधार बन सकते हैं स्टालिन, एक मंच पर जोड़े दिग्गज 

लोकसभा चुनाव भले ही अभी एक साल दूर है, लेकिन बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का तानाबाना बुना जाने लगा है. नार्थ की सियासत को साउथ के जरिए इस बार साधने की कवायद हो रही है, जिसके मुख्य सूत्रधार तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन बन रहे हैं और तमाम दलों को एकजुट कर सियासी संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं.

एमके स्टालिन के मंच पर विपक्षी दल के नेता एमके स्टालिन के मंच पर विपक्षी दल के नेता
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 04 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 4:39 PM IST

लोकसभा चुनाव में अभी एक साल का वक्त बाकी है, लेकिन सियासी बिसात बिछाना शुरू हो गई है. बीजेपी एक तरफ 2014 और 2019 से भी बढ़ी जीत 2024 में दर्ज करने की कवायद में लगी है तो दूसरी तरफ पीएम मोदी को केंद्र की सत्ता में हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए विपक्षी एकती का तानाबाना इन दिनों दक्षिण भारत में बुना जा रहा है. इस विपक्षी एकजुटता के नए सूत्रधार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन बन रहे हैं, जिन दलों को कांग्रेस साथ लेने में सफल नहीं हो पा रही थी, उन छत्रपों को वो अपने मंच पर सिर्फ साथ लाए ही नहीं बल्कि बीजेपी के हथियार से ही पीएम मोदी को मात देने का एजेंडा भी सेट कर रहे हैं. 

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स्टालिन ने एक मार्च को अपने जन्मदिन पर चेन्नई में एकजुट हुए विपक्षी दलों के नेताओं से कहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव इसलिए नहीं है कि इसमें कौन जीतता है बल्कि इसलिए है कि इसमें किसको नहीं जीतना चाहिए. स्टालिन ने कहा कि यह मेरे जन्मदिन का समारोह नहीं है बल्कि विपक्षी एकता की शुरुआत है. अब एमके स्टालिन ने एक महीने के बाद फिर विपक्षी दलों को सामाजिक न्याय सम्मेलन के नाम पर इकट्ठा किया है और उन्हें 2024 में बीजेपी के खिलाफ अहंकार छोड़कर एकजुट होने की अपील की है. 

स्टालिन के मंच पर विपक्षी एकजुटता

'ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस' के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में डीएमके के प्रमुख एमके स्टालिन, कांग्रेस के अशोक गहलोत, जेएमएम हेमंत सोरेन, आरजेडी के तेजस्वी यादव और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव में शामिल हुए. इसके अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी राजा, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह, टीआरएस नेता के केशव राव और एनसीपी नेता छगन भुजबल शिरकत किए. 

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जातिगत जनगणना पर विपक्ष एकमत

सामाजिक न्याय सम्मेलन में एमके स्टालिन ने बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी दलों से अपने-अपने अहंकार को दरकिनार कर एक साथ आने का आह्वन किया. इतना ही नहीं उन्होंने जातिगत जनगणना के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए जमीन तैयार करने का भी मंत्र दिया. कांग्रेस, सपा और आरजेडी सहित कई दलों ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को धार देने के लिए आंदोलन शुरू करने की बात कही. अशोक गहलोत ने कहा कि विपक्षी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जातीय जनगणना के लिए केंद्र पर दबाव बनाना चाहिए. 

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जातिगत जनगणना पर अपने विचार रखते हुए कहा कि जब तक सामाजिक न्याय नहीं होगा, तब तक आर्थिक समानता नहीं आ सकती है. उन्होंने कहा, सभी को समान अवसर और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. यह आवश्यक है कि हम सामाजिक न्याय के लिए लड़ने के लिए एक साथ आएं. वहीं, आप सांसद संजय सिंह ने आरोप लगाया कि बीजेपी जातिगत जनगणना से इसलिए भाग रही है, क्योंकि उसका वैचारिक संरक्षक आरएसएस चाहता है कि देश में 'वर्ण व्यवस्था' बनी रहे. 

झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि देश में किसी भी संस्थान में पिछड़े वर्गों की उपस्थिति नगण्य है. सोरेन ने कहा, 'अगर हम अभी ठोस कदम नहीं उठाएंगे तो आने वाली पीढ़ियां बहुत दर्द सहेंगी. साथ ही माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण भविष्य के अवसरों की खिड़कियां खोलने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, इसके साथ आर्थिक विकास भी होना चाहिए. हमें कॉरपोरेट सांप्रदायिक गठजोड़ से लड़ना होगा. ऐसे में सभी को एक साथ आने की जरूरत है.  

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समाजाकि न्याय के बहाने एकजुटता

2024 लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता की कई स्तर पर कवायद हो रही, लेकिन अपने-अपने राजनीतिक महत्वकांक्षा के चलते सभी एक साथ एक मंच पर खड़े नहीं नजर आ रहे थे. लेफ्ट और टीएमसी एक साथ नहीं आ रहे तो कांग्रेस के चलते सपा, आम आदमी पार्टी और बीआरएस जैसे दल दूरी बनाए हुए थे. लेकिन, स्टालिन ने सामाजिक न्याय के नाम पर इन सभी दलों को एक मंच पर लाकर खड़ कर दिया है और वो भी एक बार नहीं बल्कि दो बार करके दिखाया. यही नहीं एमके स्टालिन ने जिस तरह से बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने के लिए सभी दलों से अपने-अपने अहंकार छोड़ने और सामाजिक न्याय की लड़ाई को बुलंद करने की बात कही है, उसके सियासी मकसद को जाना जा सकता है.  

बीजेडी-वाइएसआर को भी संदेश 

एमके स्टालिन ने सामाजिक सम्मेलन में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल और जगन मोहन रेड्डी की वाइएसआर कांग्रेस को भी न्योता भेजा था, लेकिन दोनों ही दल ने शिरकत नहीं किया. बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस दोनों ही दलों ने अब तक विपक्षी एकता से बाहर रखे हुए हैं. यही नहीं ज्यादातर विपक्षी दल तर्क देते रहे हैं कि बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस खुद को सत्तारूढ़ एनडीए के करीब रहना पसंद करते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विरोध से बचते हैं. 

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बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस की गैर-मौजूदगी पर एमके स्टालिन कुछ नहीं बोले, लेकिन टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने जरूर कहा कि अभी भी कुछ दल हैं, जो बीजेपी से लड़ना नहीं चाहते हैं और जोर देकर कहा कि यह भूरे रंग में रहने का समय नहीं है, बल्कि यह सफेद या काले होने का समय है. उन्होंने आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मौजूदा मोदी सरकार से निपटने के प्रयासों में शामिल होने का आह्वान किया. साथ ही नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि अगर भारत के भविष्य की कल्पना करनी है, तो जाति, वर्ग, धर्म और पंथ के बावजूद लोगों को साथ लेना होगा. 

विपक्ष को एकजुट कर सकेंगे स्टालिन? 

विपक्षी एकता की कवायद स्टालिन ने ऐसे समय शुरू की है जब मोदी सरनेम वाले बयान पर राहुल गांधी अपनी लोकसभा की सदस्यता गंवा चुके हैं.  इस पर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी का समर्थन करते हुए कहा है कि 'विपक्षी नेताओं और पार्टियों पर मुकदमे करके उन्हें खत्म करने की साजिश हो रही है. केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मतभेद होने की बात का ज़िक्र करते हुए कहा है कि भले ही उनके बीच में मतभेद हैं लेकिन राहुल जी को इस तरह मुकदमे में फंसाना ठीक नहीं है. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी अब जातिगत जनगणना के समर्थन में उतर गई है. 

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एमके स्टालिन सामाजिक न्याय के नाम पर जिस तरह से विपक्षी दलों को एक साथ लाए हैं, क्या उन्हें 2024 में पीएम मोदी के खिलाफ भी एकजुट कर सकेंगे. यह बात इसीलिए कही जा रही है कि सपा यूपी में कांग्रेस को स्पेस देने के बजाय उससे समर्थन करने की बात कर रहे हैं तो केसीआर और ममता बनर्जी भी कांग्रेस को साथ लेने के लिए राजी नहीं थे. एक समय तो आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस को लेकर इसी तरह से मुखर थी, लेकिन अब उसके सुर बदल गए हैं. इसी तरह से बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस से विपक्ष के साथ आने की अपील की है.

वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जब विपक्ष ने ऐसा समझौता किया हो. कांग्रेस के खिलाफ तो खूब किए हैं. 1967 में लोहिया ने जनसंघ से किया. 1977 और 1989 में दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों साथ थे. ऐसे में 2024 के चुनाव में एक बार फिर से विपक्षी एकता की कवायद हो रही है, लेकिन इस बार कांग्रेस के खिलाफ नहीं बल्कि बीजेपी से लड़ने के लिए एकजुट होने की है. इसीलिए एमके स्टालिन ने बीढ़ा उठाया है और खामोशी के साथ सभी को एकमंच पर साथ लेने की कवायद कर रहे हैं.
 

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