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सोनिया ने संन्यास लिया तो 2024 में क्या होगा? यूपी में कांग्रेस का आखिरी दुर्ग बचाने कौन उतरेगा?

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से संन्यास की अटकलें लगाई जा रही हैं. अटकलों के बीच ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि अगर सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया तो 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या होगा? यूपी में कांग्रेस का अंतिम दुर्ग बचाने के लिए कौन उतरेगा? 

सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (फाइल फोटो: PTI) सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (फाइल फोटो: PTI)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 25 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:05 AM IST

दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. वही यूपी जो देश की सत्ता पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का कभी गढ़ हुआ करता था. आज उसी यूपी में पार्टी अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है. 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनौती देने की तैयारी में जुटी है लेकिन कांग्रेस के सामने अब यूपी का आखिरी दुर्ग बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है.

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यूपी में कांग्रेस का आखिरी दुर्ग यानी रायबरेली लोकसभा सीट. यूपी की ये एकमात्र लोकसभा सीट है जो अभी कांग्रेस के कब्जे में है. कभी यूपी की सियासत का सिरमौर रही कांग्रेस पार्टी 2019 के चुनाव में केवल एक रायबरेली सीट पर सिमटकर रह गई. पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी जब अमेठी सीट से चुनाव हार गए, तब भी रायबरेली की जनता ने कांग्रेस पार्टी पर भरोसा किया और सोनिया गांधी को जीताकर संसद में भेजा.

कांग्रेस की मुश्किल ये है कि अगर सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया, रायपुर अधिवेशन में सोनिया गांधी के संबोधन के बाद जैसे कि कयास भी लगाए जा रहे हैं. तो यूपी में कांग्रेस का ये आखिरी दुर्ग बचाने की जिम्मेदारी किसे दी जाए, किसके चेहरे पर भरोसा किया जाए, कैसे चुनावी नैया पार लगाई जाए. सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से संन्यास की अटकलों को हालांकि कुमारी शैलजा ने खारिज करते हुए कहा है कि उनका संबोधन कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल को लेकर था.

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क्यों शुरू हुए सोनिया के संन्यास के कयास

दरअसल, सोनिया गांधी ने रायपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में सोनिया गांधी ने भावुक भाषण दिया और अपने संबोधन के दौरान 1998 में कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने से लेकर अब तक के सफर की उपलब्धियां गिनाईं. सोनिया गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की तारीफ करते हुए ये कह दिया कि मेरी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो सकती है जो कांग्रेस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव है. सोनिया के इसी बयान को लेकर उनके संन्यास के कयास लगाए जाने लगे.

सोनिया गांधी (फोटोः पीटीआई)

सोनिया गांधी नहीं तो कौन

यूपी में कांग्रेस के एक-एक किले जब दरक रहे थे, 2019 के चुनाव में बीजेपी ने जब अमेठी का अभेद्य दुर्ग ध्वस्त कर दिया था, तब भी रायबरेली कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी के साथ तनकर खड़ा था. सोनिया गांधी ने 2019 का चुनाव डेढ़ लाख से अधिक वोट के अंतर से जीता तो, लेकिन नतीजों ने कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को ये संदेश भी दे दिया कि ये किला भी कमजोर हो रहा है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सोनिया की जीत का अंतर साल 2014 की तुलना में आधा रह गया था.

राहुल गांधी (फाइल फोटोः पीटीआई)

सोनिया गांधी 2014 की मोदी लहर में जहां तीन लाख से अधिक वोट के अंतर से जीतकर संसद पहुंची थीं, वहीं 2019 में जीत का अंतर घटकर डेढ़ लाख रह गया. सोनिया गांधी अगर सक्रिय राजनीति से संन्यास लेती हैं तो कांग्रेस पार्टी के सामने ये बड़ी चुनौती होगी कि इस किले को बचाने की जिम्मेदारी किसे दी जाए. क्या कांग्रेस राहुल गांधी पर दांव लगाएगी या 2024 में रायबरेली सीट पर प्रियंका गांधी पार्टी की खेवनहार होंगी? या पार्टी नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के किसी चेहरे को आगे करेगी? ये तमाम सवाल हैं जिनके सवाल कांग्रेस पार्टी को भी खोजने होंगे.

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विधानसभा चुनाव के परिणाम ने बढ़ा दी है चिंता

कांग्रेस के लिए रायबरेली की राह मुश्किल हो गई है, इसके एक नहीं कई संकेत हैं. जिस जिले में जिला पंचायत से नगर पंचायत और ब्लॉक प्रमुख तक, कांग्रेस की तूती बोलती थी, आज उस जिले में पार्टी निकायों में भी शून्य पर है. जिले की न तो एक भी नगर पंचायत पर कांग्रेस का कब्जा है और ना ही जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर ही. रही सही कसर विधानसभा चुनाव 2022 के परिणाम ने पूरी कर दी.

सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (फाइल फोटो)

कांग्रेस को अपने ही गढ़ में कई सीटों पर जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिले और पार्टी को दलबदलुओं पर दांव लगाना पड़ा जो दूसरी पार्टियों से टिकट न मिलने पर कांग्रेस में आए थे. विधानसभा चुनाव में रायबरेली से कांग्रेस का सफाया हो गया और पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. कांग्रेस न सिर्फ शून्य पर सिमट गई, बल्कि दूसरे नंबर पर भी काबिज नहीं हो पाई. पार्टी की खस्ता हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस रायबरेली की विधानसभा सीटों पर तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ती नजर आई. 

रायबरेली लोकसभा की विधानसभा सीटों पर क्या रहा परिणाम

रायबरेली लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से पांचों सीटों पर कांग्रेस का सफाया हो गया. रायबरेली सीट से बीजेपी की उम्मीदवार अदिति सिंह जीतीं और कांग्रेस उम्मीदवार को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था. बछरावां में सपा को को जीत मिली और कांग्रेस यहां भी तीसरे स्थान पर रही थी. हरचंदपुर, सरेनी और ऊंचाहार में भी साइकिल दौड़ी और इन सीटों पर भी कांग्रेस पार्टी मुकाबले में नजर नहीं आई. जीत तो दूर, कांग्रेस रायबरेली लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली एक भी विधानसभा सीट पर दूसरे स्थान पर भी काबिज नहीं हो पाई.   

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कांग्रेस के पक्ष में रायबरेली सीट का इतिहास

रायबरेली लोकसभा सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो ये कांग्रेस के पक्ष में नजर आता है. अब तक के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो बस तीन ही मौके ऐसे आए हैं जब इस लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा हो. 1977 में कांग्रेस पहली बार रायबरेली हारी थी. तब भारतीय लोकदल के राजनारायण ने इंदिरा गांधी को 55 हजार वोट से अधिक के अंतर से शिकस्त दे दी थी.

रायबरेली सीट का इंदिरा गांधी भी कर चुकी हैं प्रतिनिधित्व (फाइल फोटोः इंडिया टुडे आर्काइव)

रायबरेली में कांग्रेस को दूसरी शिकस्त 1996 और 1998 में तीसरी हार मिली थी. 1999 में कैप्टन सतीश शर्मा ने ये सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी. इसके बाद पार्टी का गढ़ बचाने के लिए 2004 में खुद सोनिया गांधी चुनाव मैदान में उतरीं. रायबरेली की जनता ने उन्हें करीब ढाई लाख वोट के अंतर से बड़ी जीत का तोहफा दिया. इसके बाद हर चुनाव में सोनिया गांधी ने रायबरेली से बड़ी जीत दर्ज की.

फिरोज और इंदिरा गांधी भी कर चुके हैं रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व

रायबरेली लोकसभा सीट का फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी भी संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. अरुण नेहरू और शीला कौल भी रायबरेली सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनावी बाजी जीतकर संसद में पहुंच चुके हैं. कांग्रेस के इस मजबूत किले में जनेश्वर मिश्रा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया और राजनारायण जैसे दिग्गजों को मात भी खानी पड़ी है.

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जहां जीत की गारंटी माना जाता था टिकट, करना पड़ रहा मंथन

रायबरेली और कांग्रेस, दोनों को ही एक-दूसरे का पर्याय माना जाता रहा है लेकिन आज आखिर कौन से समीकरण बन गए? क्यों और कैसे ये हालात बन गए कि जहां कांग्रेस का टिकट जीत की गारंटी माना जाता था, वहां पार्टी को सोनिया गांधी के बाद कौन नैया पार लगा सकता है, इसे लेकर मंथन करना पड़ रहा है?

 

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