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दोराहे पर विपक्ष! कांग्रेस या ममता, किसकी ओर पलड़ा भारी, सोनिया गांधी के घर मीटिंग के क्या मायने?

दोराहे पर खड़े नजर आ रहे विपक्ष (opposition parties) में, घर-घर जाकर विपक्षी नेताओं से मिल रहीं ममता (mamata) पॉवरफुल मोड में हैं या फिर अपने आवास पर विपक्ष की टॉप लीडरशिप को बुलाकर सोनिया गांधी कांग्रेस (Sonia Gandhi Congress) की ताकत का अहसास करा रही हैं?

सोनिया गांधी और ममता बनर्जी सोनिया गांधी और ममता बनर्जी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:21 PM IST
  • ममता बनर्जी ने UPA के अस्तित्व को नकारा
  • ममता के बयान से कांग्रेस में बढ़ी बेचैनी
  • विपक्षी एकजुटता में नेतृत्व पर रस्साकशी

UPA क्या है, कोई UPA नहीं है... पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी का ये वो बयान है जिसने न सिर्फ विपक्षी एकता को सवालों के घेरे में ला दिया है, बल्कि कांग्रेस को भी फिर से मंथन करने पर मजबूर कर दिया है. 

ममता का ये बयान एक ऐसे रास्ते का सिग्नल दिखा रहा है, जिस पर कांग्रेस की लीडरशिप वाले UPA का भविष्य धूमिल समझा जा रहा है. लिहाजा, कांग्रेस अब इस धुंध को छांटने में जुट गई है. 

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लेकिन सवाल ये है कि दोराहे पर खड़े नजर आ रहे विपक्ष में, घर-घर जाकर विपक्षी नेताओं से मिल रहीं ममता पॉवरफुल मोड में हैं या फिर अपने आवास पर विपक्ष की टॉप लीडरशिप को बुलाकर सोनिया गांधी कांग्रेस की ताकत का अहसास करा रही हैं?

दिल्ली में सोनिया गांधी के आवास पर हुई बैठक

मंगलवार (14 दिसंबर) को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर विपक्षी नेताओं की बैठक हुई. इस बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना सांसद संजय राउत, नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला, डीएमके नेता टीआर बालू और लेफ्ट नेता सीताराम येचुरी जैसी टॉप लीडरशिप शामिल रही.

ट्विस्ट ये है कि इस बैठक में समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, आरजेडी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों के प्रतिनिधि नहीं थे. टीएमसी नेताओं का न होना तो स्वाभाविक था ही. 

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तो क्या ये दल ममता के साथ?

हाल ही में जब ममता बनर्जी महाराष्ट्र के दौरे पर गईं तो उन्होंने वहां शिवेसना और एनसीपी नेताओं से मुलाकात की. भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को लेकर यहीं ममता ने कहा था कि यूपीए जैसा कुछ नहीं है. यानी, यूपीए नहीं तो कांग्रेस भी नहीं, इसका सीधा सा अर्थ यही था. 

12 विपक्षी सांसदों के निलंबन के खिलाफ राहुल ने उठाई आवाज

ममता के इस स्टैंड पर विपक्षी दलों के नेताओं से सवाल भी किए गए. आम आदमी पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आजतक के कार्यक्रम में कहा था कि ममता जी से उनके अच्छे रिश्ते हैं, लेकिन यूपीए वाले बयान पर उन्होंने कुछ नहीं सोचा. केजरीवाल ने कहा था इस मसले पर ममता दीदी की उनसे कोई चर्चा नहीं हुई. 

ममता बनर्जी के UPA पर बयान को लेकर बोले तेजस्वी यादव- जुदा है हमारी राय

आजतक के ही मंच पर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव से भी ये सवाल किया गया था. तेजस्वी ने कहा था कि बंगाल में हमने टीएमसी का साथ दिया और केंद्र में हम कांग्रेस का साथ दे रहे हैं. यूपीए को लेकर तेजस्वी ने ममता बनर्जी के बयान को उनकी राय बताते हुए कहा था कि देश में करीब दो सौ सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और बीजेपी की सीधी फाइट होती है. 

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यानी तेजस्वी ने ये बताने का प्रयास किया कि बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस एक बड़ा विकल्प है.  

महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रही शिवसेना का स्टैंड भी कुछ इसी तरह का है. हाल ही में सामना में लिखा गया कि कांग्रेस अब भी कई राज्यों में है, सोनिया और राहुल गांधी को UPA को मजबूत करने के लिए आगे आना चाहिए. 

पवार ने नहीं खोले पत्ते!

इस पूरे सियासी गेम की अहम कड़ी के तौर पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम आता है. ममता ने मुंबई में पवार से भी मुलाकात की थी, और अब पवार ने दिल्ली में सोनिया गांधी की बैठक में भी शिरकत की है. 

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ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद शरद पवार ने कहा था, ''हमें मजबूत विकल्प देना है. चाहे कांग्रेस हो या टीएमसी, जो भी बीजेपी के खिलाफ हैं, उन्हें साथ आना चाहिए, उनका स्वागत है.'' यानी कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर पवार का स्टैंड स्पष्ट नजर नहीं आया. हालांकि, उनकी पार्टी के नेता नवाब मलिक ने कुछ वक्त पहले ही बयान दिया था कि शरद पवार कांग्रेस और टीएमसी समेत सभी विपक्षी ताकतों को एक मंच पर लाने का प्रयास करेंगे.

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सोनिया की बैठक में क्या हुई चर्चा?

भले ही शरद पवार स्पष्ट तौर पर अपना स्टैंड स्पष्ट न कर रहे हों, लेकिन ममता से मुलाकात के बाद जब सोनिया गांधी ने उन्हें आमंत्रित किया तो वो दिल्ली में उनके आवास पर हुई बैठक में भी शामिल रहे. लेकिन इस बैठक के बाद पवार का बयान नहीं आया. जबकि दूसरे कुछ नेताओं ने बैठक के एजेंडे की जानकारी दी.

सोनिया से बैठक के नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला ने बताया है कि ये बैठक देश के मुद्दों से जुड़ी थी, जिसमें ये बात की गई कि कैसे मिलकर काम किया जा सकता है और देश को मुश्किल हालात से निकाला जा सकता है. वहीं, शिवसेना सांसद संजय राउत ने बताया कि हमारा मुख्य एजेंडा राज्यों के हिसाब से विपक्षी एकता को लेकर था. 

इन दो बयानों से जाहिर है कि सोनिया गांधी की बैठक में न सिर्फ देशव्यापी मुद्दों को लेकर एकजुटता पर चर्चा की गई, बल्कि राज्यों के हिसाब से भी मिलकर लड़ने के एजेंडे पर मंथन किया गया.

कांग्रेस इस एजेंडे पर अमल करती भी नजर आ रही है. राज्यसभा से 12 विपक्षी सांसदों के निलंबन के मुद्दे को कांग्रेस जोर-शोर से उठा रही है. राहुल गांधी भी उनके हक में आवाज उठा चुके हैं. वहीं, हाल ही में कांग्रेस ने जयपुर में महंगाई हटाओ रैली कर देश के एक बड़े मुद्दे को छूने की कोशिश की. साथ ही राहुल ने हिंदू और हिंदुत्व पर आक्रामक रवैया अपनाते हुए बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूती पर प्रहार किया. 

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बहरहाल, इन तमाम चीजों के बीच ये सवाल अब भी कायम है कि 2024 में भाजपा को परास्त करने का प्लान बना रहा विपक्ष कैसे आगे बढ़ेगा. विपक्षी दल एकजुट होने पर तो एकमत हैं, लेकिन विपक्ष के चेहरे और नेतृत्व को लेकर रस्साकशी जारी है. टीएमसी और कांग्रेस के बीच शह-मात का खेल चल रहा है. हाल ही में जब ममता दिल्ली आईं तो सोनिया से नहीं मिलीं, लेकिन ममता ने जब यूपीए का राग छेड़ा तो सोनिया ने विपक्षी नेताओं को अपने घर बुलाकर अपनी ताकत को दर्शाने की कोशिश की. इन नेताओं की आगे भी मीटिंग होने की बात कही जा रही है, ऐसे में देखना है कि आगे कब ये बैठकें होती हैं और उसमें क्या निकलकर आता है. 


 

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