Advertisement

एक राजा की ट्राइबल पॉलिटिक्स की कहानी, जिसकी सफलता ने त्रिपुरा में BJP को चौंका दिया

राज परिवार में जन्मे प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने कांग्रेस के जरिए राजनीति में प्रवेश किया. 2019 में एनआरसी के मुद्दे पर कांग्रेस से मतभेद के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर कुछ समय के लिए ब्रेक लिया. इसके बाद अपनी पार्टी बनाई जिसका नाम रखा टिपरा मोथा पार्टी. टिपरा मोथा पहली बार त्रिपुरा चुनाव में उतरी और अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया.

प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा (फाइल फोटो) प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव की जंग भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भले ही जीतने में कामयाब हो गई हो लेकिन सत्ता बचाए रखने में उसके पसीने छूट गए. बीजेपी के माथे पर बल कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन नहीं बल्कि दो साल पहले बनी टिपरा मोथा पार्टी ने ला दिए. इसीलिए त्रिपुरा चुनाव में चर्चा बीजेपी की जीत की नहीं बल्कि टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा (Pradyot Kishore Manikya Debbarma) की हो रही है.

Advertisement

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित प्रद्योत देबबर्मा ने कहा, "एक-दो साल पुराना दल आज त्रिपुरा में यंगेस्ट और दूसरा सबसे बड़ा दल बन चुका है. ये जनता का आशीर्वाद है. हम थोड़े से पीछे आए हैं लेकिन दो साल में 0 से 13 पर आना एक उपलब्धि है. सीपीएम आज 11 और कांग्रेस 3 पर है. ये हमारे लिए बहुत बड़ी चीज है."

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में टिपरा मोथा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए सबको चौंका दिया. शाही परिवार में जन्मे प्रद्योत के लिए राजनीति में राह इतनी आसान नहीं थी लेकिन उन्होंने वो कर दिखाया जिससे त्रिपुरा में एक नए राजनीतिक विकल्प का उदय हुआ. प्रद्योत की पार्टी टिपरा मोथा त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है. ऐसे में सभी के मन में यह सवाल है कि प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा कौन हैं और कैसे उन्होंने त्रिपुरा की सियासत में इतना बड़ा उलटफेर कर दिया. 

Advertisement

42 सीटों पर लड़े, 13 पर मिली जीत

त्रिपुरा की कुल 60 में से प्रद्योत की पार्टी टिपरा मोथा ने 42 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा. टिपरा मोथा ने अपने पहले ही चुनाव में आदिवासी वोट में ऐसी सेंध लगाई कि लेफ्ट और कांग्रेस कहीं पीछे छूट गए. पिछले लोकसभा चुनाव से पहले जब कांग्रेस त्रिपुरा में 2% से कम वोट शेयर के साथ लड़खड़ा रही थी, तब उसने साल 2018 में तीन बार के सांसद किरीट बिक्रम देबबर्मा और दो बार की विधायक बिभु कुमारी के बेटे प्रद्योत को पीसीसी प्रमुख की जिम्मेदारी दी थी. परिणाम एक साल के भीतर दिखाई देने लगे. बीजेपी में कांग्रेस के कई चेहरों के शामिल होने के बावजूद कांग्रेस का वोट शेयर 26% तक बढ़ गया.

प्रद्योत ने कांग्रेस से किया था सियासी सफर का आगाज

प्रद्योत देबबर्मा त्रिपुरा के 185वें महाराजा कीर्ति बिक्रम किशोर देबबर्मा के इकलौते बेटे हैं. उनका जन्म 4 जुलाई 1978 को दिल्ली में हुआ था. राजशाही परंपरा खत्म होने के बाद महाराजा कीर्ति देबबर्मा ने सियासत में कदम रखा और कांग्रेस से जुड़े. प्रद्योत देबबर्मा भी अपने पिता और माता के नक्शेकदम पर चलते हुए कांग्रेस से जुड़ गए. प्रद्योत कांग्रेस के युवा मोर्चा से जुड़ गए और त्रिपुरा में आदिवासी वर्ग के लिए काम करने लगे लेकिन 2019 में कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने टिपरा मोथा का गठन किया. 

Advertisement

आदिवासियों के बीच बनाई पकड़

दिल्ली में जन्मे और शिलॉन्ग में पले-बढ़े प्रद्योत ने जब कांग्रेस के जरिए राजनीति में प्रवेश किया तो आदिवासियों के बीच में सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया. कांग्रेस से अलग होने के बाद प्रद्योत ने 'ग्रेटर टिपरालैंड' की मांग रखी. वो कहते रहे 'ग्रेटर टिपरालैंड' त्रिपुरा राज्य से अलग एक राज्य होगा. नई जातीय मातृभूमि मुख्य रूप से उस क्षेत्र के स्वदेशी समुदायों के लिए होगी जो विभाजन के दौरान पूर्वी बंगाल से भारत आए बंगालियों की वजह से अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक हो गए थे.

एनआरसी के मुद्दे पर कांग्रेस के विपरीत रूख रखने वाले  प्रद्योत ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर कुछ समय के लिए राजनीति से ब्रेक ले लिया.  प्रद्योत सुप्रीम कोर्ट में दायर उस याचिका के सह-वादी थे जिसने त्रिपुरा में सीएए को रद्द करने और कट-ऑफ वर्ष के रूप में 1951 के साथ एनआरसी को लागू करने की मांग की थी. उन्होंने आदिवासियों के लिए स्थानीय स्तर पर कई कैंपेन चलाए और समुदाय के बीच अपनी पैठ मजबूत की.  

ग्रेटर टिपरालैंड है मांग

हालांकि प्रद्योत ने 2021 के त्रिपुरा Tripura Tribal Areas Autonomous District Council (ADC) चुनाव तक चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उन्होंने 'ग्रेटर टिपरालैंड' की अपनी मांग को आगे बढ़ाया. इसके पीछे वजह यह थी कि साल 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान बंगाली समुदाय के लोगों ने त्रिपुरा में शरण ली. जनगणना 2011 के अनुसार, बंगाली त्रिपुरा में 24.14 लाख लोगों की मातृभाषा है जो राज्य  की कुल 36.74 लाख आबादी में से दो-तिहाई है.

Advertisement

प्रद्योत अलग राज्य की मांग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अलग राज्य आदिवासियों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा करने में मदद करेगा, जो बंगाली समुदाय के लोगों के आ जाने से अब अल्पसंख्यक हो गए हैं. टिपरा मोथा का त्रिपुरा में 2021 में एडीसी चुनाव जीतना इस बात का स्पष्ट संकेत था कि प्रद्योत ने आदिवासी समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. 

आदिवासी हितों के साथ ग्रेटर टिपरालैंड की अपनी मांग पर अडिग रहते हुए उन्होंने दो टूक कहा था कि बहुमत का आंकड़ा नहीं मिलता है तो मैं विपक्ष में बैठना पसंद करूंगा या जो भी सरकार बनाता है, उससे हम ग्रेटर टिपरालैंड पर लिखित आश्वासन लेंगे. प्रद्योत ने कहा था कि मैं सत्ता का सुख लेने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहा हूं बल्कि त्रिपुरा के आदिवासियों की पीड़ा का हल निकालने के लिए, सरकार पर दबाव बनाने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं. भले ही प्रद्योत सत्ता के करीब नहीं पहुंच सके लेकिन उन्होंने अपने पहले चुनाव में वो हासिल किया जिसे पाना हर राजनीतिक दल का सपना होता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement