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नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर जनता की भावनाओं को भुनाना चाहती हैं तृणमूल और बीजेपी

जैसे-जैसे बंगाल में चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे लड़ाई इस बात पर केंद्रित होती जा रही है कि बंगाली 'अस्मिता' का असली झंडाबरदार कौन है. इसके लिए बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस दोनों में होड़ मची हुई है.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती करीब आ रही है, अब तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच खींचतान चल रही है कि कौन इसे बेहतर ढंग से मनाता है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती करीब आ रही है, अब तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच खींचतान चल रही है कि कौन इसे बेहतर ढंग से मनाता है.
aajtak.in
  • कोलकाता,
  • 24 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 11:24 PM IST
  • बंगाली 'अस्मिता' पर केंद्रित होती जा रही है राजनीति
  • ममता और भाजपा में 'सुभाष जयंती' को लेकर होड़
  • सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी जनभावनाओं को वोट में बदलने की कोशिश

हाल ही में अपनी पश्चिम बंगाल की यात्रा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने क्रांतिकारी खुदीराम बोस और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर को पुष्पांजलि अर्पित की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुरुवार को टैगोर के 'विश्व भारती विश्वविद्यालय' के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा, साहित्य के महारथी टैगोर का विजन ‘आत्मानिभर भारत’ का सार था.

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जैसे-जैसे बंगाल में चुनाव करीब आ रहे हैं, लड़ाई सिर्फ राजनीतिक या नागरिकों के मुद्दों पर नहीं हो रही है, बल्कि अब लड़ाई इस पर केंद्रित हो रही है कि बंगाली 'अस्मिता' का असली झंडाबरदार कौन है. इसी क्रम में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती भी करीब आ रही है. अब तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच खींचतान चल रही है कि कौन इसे बेहतर ढंग से मनाता है. बंगाल में तमाम लोग अब भी मानते हैं कि नेताजी की मौत 1945 में ताइवान में हुई विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद को ऐसे नेता के रूप में पेश कर रही हैं जो बंगाल की संस्कृति में गहराई से रची-बसी हैं, राज्य के प्रतीक का सम्मान करती हैं और एक औसत बंगाली की भावनाओं को समझती है. बीजेपी को वे 'बाहरी' के रूप में पेश कर रही हैं लेकिन बीजेपी भी ये संदेश देने के लिए उत्सुक है कि वह भी इस मामले में पीछे नहीं है.

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केंद्र सरकार 23 जनवरी को बड़े ही धूमधाम तरीके से नेताजी की 125वीं जयंती मनाने की तैयारी में है. दूसरी ओर, ममता ने एक उच्चस्तरीय समिति की घोषणा की है जो एक साल तक चलने वाले उत्सवों का आयोजन करेगी. ये आयोजन 23 जनवरी, 2022 तक चलते रहेंगे. इस समिति की अगुवाई नोबेल विजेता अमर्त्य सेन और अभिजीत बिनायक बंद्योपाध्याय कर रहे हैं.

कवि शंख घोष और नेताजी के परिवार के सदस्य सुगत बोस भी इस समिति के सदस्य हैं. ये समिति राज्य के हर जिले में नेताजी का जयंती समारोह मनाएगी, जो एक तरह से तृणमूल कांग्रेस का शक्ति-प्रदर्शन होगा. इन कार्यक्रमों के तहत हर जिले में नेताजी की तस्वीरों और प्रतिमाओं पर माल्यार्पण होगा और साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम व फिल्म स्क्रीनिंग भी की जाएगी.

इस बीच, केंद्र सरकार ने अमित शाह के नेतृत्व में समारोह के लिए एक समिति की घोषणा कर दी है. नेताजी के परिवार के सदस्य चंद्र बोस समेत कई प्रमुख हस्तियां इस समिति का हिस्सा हैं. बीजेपी का कहना है कि तृणमूल को यह अधिकार नहीं है कि वह नेताजी को अपना माने और मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने नेताजी से संबंधित कई दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं.

बीजेपी यह भी प्रचार करेगी कि कांग्रेस में रहते हुए नेताजी को वह सम्मान कभी नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे. बीजेपी की बंगाल यूनिट ने पीएम मोदी से 23 जनवरी को कोलकाता में एक जनसभा संबोधित करने का अनुरोध किया है. प्रधानमंत्री कार्यालय अब इसके मुताबिक एक कार्यक्रम तैयार करने की कोशिश कर रहा है.

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इसके अलावा, बंगाल बीजेपी की योजना है कि इस दिन वह गलियों और चौराहों पर सभा करेगी. कई जिलों में स्कूली बच्चों के शामिल होने की भी संभावना है. बीजेपी ने इसके पहले इस तरह से बड़े पैमाने पर नेताजी की जयंती कभी नहीं मनाई.

ममता का कहना है कि चुनाव नजदीक आते देख बीजेपी ‘नेताजी की भक्त’ बन गई है. तृणमूल ने ये प्रचार करने की योजना बनाई है कि ममता जब विपक्ष में थीं, तब भी वे नेताजी की जयंती मनाती थीं. सीएम ममता बनर्जी 23 जनवरी को एक जनसभा संबोधित करेंगी, जिसके बारे में योजना बनाई जा रही है. हर जिले में कार्यक्रम आयोजित करने के अलावा राज्य सरकार ने सभी स्कूलों को नेताजी की जयंती मनाने के लिए एडवायजरी जारी की है.

नेताजी ने छेड़ा था विद्रोह

नेताजी ने जर्मनी और जापान में युद्धबंदी भारतीयों को लेकर इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) का गठन किया था और देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उस समय आईएनए के विचार के खिलाफ थी और नेताजी की सेना के कई सदस्यों को युद्ध अपराधी घोषित करते हुए दिल्ली के लाल किले में उनपर मुकदमा चलाया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से यह मुद्दा ज्यादा प्रासंगिक हो गया है. बीजेपी ये अभियान चलाने जा रही है कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने नेताजी के लापता होने की जांच के लिए मुखर्जी आयोग का गठन किया था. दूसरी ओर, पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने नेताजी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की थी. 

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मुखर्जी आयोग नेताजी के लापता होने की जांच करने के लिए बनाया गया तीसरा आयोग था. इसके पहले शाह नवाज समिति (1956) और खोसला आयोग (1970) भी इस मामले की जांच कर चुके थे. मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट वामपंथी इतिहासकारों और यहां तक कि नेताजी के परिजनों जैसे सुगत बोस और उनकी स्वर्गीय मां कृष्णा बोस के पक्ष में थी.

नेताजी की मौत को लेकर रहस्य अब भी बरकरार है. तृणमूल और बीजेपी दोनों ही नेताजी को लेकर बंगाल में बनी हुईं जनभावनाओं को भुनाना चाहती हैं. चुनावी मौसम में नेताजी सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण बन गए हैं क्योंकि तृणमूल ने इस चुनाव को ‘हिंदू राष्ट्रवाद बनाम बंगाली गौरव’ में तब्दील कर दिया है.

इस संदर्भ में, न सिर्फ नेताजी बल्कि रबींरवीन्द्रनाथ टैगोर, राजा राम मोहन रॉय, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय आदि सभी महापुरुष महत्व रखते हैं.

(ये लेख जयंत घोषाल ने लिखा है जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मीडिया सलाहकार हैं)

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