
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. 16 फरवरी को मतदाता अगले पांच साल के लिए सूबे की नई सरकार चुनने के लिए मतदान करेंगे. नतीजे 2 मार्च को आने हैं. इसे लेकर सियासी दल अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने और धरातल पर उतारने में जुटे हैं. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है तो गठबंधन के समीकरण भी बन और बिगड़ रहे हैं.
टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने ट्वीट कर बीजेपी पर हमला बोला और इंडिजिनस पीपुल्स ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि आश्चर्यजनक रूप से आईपीएफटी के सभी नेता उनकी फोन कॉल्स रिसीव नहीं कर रहे है. दिन में 11 बजे से ही उनको सुनने के लिए इंतजार कर रहा हूं. ऐसा लगता है कि ऑपरेशन लोटस शुरू हो चुका है.
गौरतलब है कि प्रद्योत किशोर की टिपरा मोथा और आईपीएफटी के बीच गठबंधन को लेकर बात चल रही थी. हाल ही में प्रद्योत किशोर ने आईपीएफटी के साथ अपनी पार्टी के विलय का भी प्रस्ताव दिया था. प्रद्योत किशोर ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की गठबंधन सहयोगी रही आईपीएफटी को लिखे पत्र में कहा था कि दोनों ही दल एक मांग को लेकर लड़ रहे हैं, इंडिजिनस लोगों के स्थायी संवैधानिक समाधान की मांग.
बिगड़ते समीकरणों के बीच बीजेपी ने बचाया गठबंधन
बनते-बिगड़ते गठबंधन के समीकरणों के बीच सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का केंद्रीय नेतृत्व एक्टिव हुआ. सूबे की सत्ता पर कब्जा बरकरार रखने के लिए जोर आजमाइश कर रही बीजेपी के नेताओं ने पार्टी संगठन को दुरुस्त करने के साथ ही गठबंधन की गांठें दूर करने के लिए कमान संभाली.
बीजेपी ने गठबंधन खत्म करने का ऐलान कर चुके पिछले चुनाव के अपने गठबंधन सहयोगी आईपीएफटी के नेताओं से संपर्क साधा और अंदरखाने कई दौर की बातचीत के बाद आईपीएफटी के साथ सीट बंटवारे को अंतिम रूप देकर गठबंधन बचा लिया. बीजेपी ने आईपीएफटी को पांच सीटें दी हैं जो पिछले चुनाव की तुलना में चार कम हैं. इसके साथ ही ये तय हो गया है कि पिछले चुनाव के दोनों गठबंधन सहयोगी साथ चुनाव मैदान में जाएंगे.
कांग्रेस और माकपा में गठबंधन
दूसरी तरफ, पिछले चुनाव में बीजेपी से वोट प्रतिशत के मामले में मामूली अंतर से पिछड़ सत्ता गंवाने वाली माकपा भी खोया गढ़ वापस पाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है. माकपा ने इस बार सूबे की सियासत में अपनी परंपरागत प्रतिद्वंदी कांग्रेस से हाथ मिला लिया है. दोनों ही पार्टियां इस बार साथ चुनाव मैदान में उतरी हैं. गौरतलब है कि पिछले चुनाव में माकपा वोट शेयर के लिहाज से मामूली अंतर से पीछे रह गई थी.