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क्या ये उद्धव का पॉलिटिकल संन्यास है? CM की कुर्सी त्यागने के बाद MLC पद से इस्तीफे के क्या हैं मायने

उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मुख्यमंत्री पद छोड़ने के साथ उद्धव ठाकरे ने विधान परिषद की सदस्यता भी त्याग दी है. क्या उद्धव ठाकरे ने पॉलिटिकल संन्यास की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं? 

उद्धव ठाकरे उद्धव ठाकरे
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2022,
  • अपडेटेड 5:14 PM IST
  • 2019 में टूटी 25 साल की दोस्ती
  • बाला साहेब ठाकरे के आदर्शों से भटने के आरोप लगे
  • फ्लोर टेस्ट से पहले ही सरेंडर

महाराष्ट्र की सियासत में देवेंद्र फडणवीस के आगे उद्धव ठाकरे सियासी मात खा गए, जिसके चलते फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. एकनाथ शिंदे की बगावती तेवर ने उद्धव ठाकरे को सियासी तौर पर हिलाकर रख दिया है, जिससे न तो सरकार बची और न ही पार्टी. यही वजह है कि मुख्यमंत्री पद छोड़ने के साथ उद्धव ठाकरे ने विधान परिषद की सदस्यता भी त्याग दी है. साथ ही उद्धव ने साफ कह दिया है कि अब से वह शिवसेना भवन में बैठेंगे. ऐसे में क्या उद्धव ठाकरे ने पॉलिटिकल संन्यास की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं? 

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2019 में टूटी 25 साल की दोस्ती
बता दें कि साल 2019 में उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ 25 साल की दोस्ती को तोड़कर अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस व एनसीपी के साथ मिलकर सरकार ही नहीं बनाई बल्कि मुख्यमंत्री भी बन गए थे. इस तरह से पहली बार ठाकरे परिवार का कोई व्यक्ति संवैधानिक पद पर बैठा था. इससे पहले ठाकरे परिवार के किसी सदस्य ने कभी ना ही कोई चुनाव लड़ा था और ना ही कभी कोई संवैधानिक पद संभाला था. 

बाला साहेब ठाकरे के आदर्शों से भटकने के आरोप लगे
उद्धव ठाकरे ने सत्ता की कमान अपने हाथ में लेने से पहले तक उनकी छवि बेदाग थी. उद्धव पर किसी तरह के भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं था और न ही हिंदुत्व के विचाराधारा से समझौता करने का आरोप लगा था. हालांकि, मुख्यमंत्री बनने के साथ ही हिंदुत्व के एजेंडे और बाला साहेब ठाकरे के आदर्शों से भटकने के आरोप लगने लगे. उद्धव ठाकरे के कभी करीबी रहे एकनाथ शिंदे ने ही बगावत का झंडा उठाया और सत्ता से लेकर पार्टी तक को हिला दिया. 

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एकनाथ शिंदे ने पार्टी में अपनी ताकत का अहसास कराया
शिवसेना में मतभेदों के चलते बगावत का सियासी घटनाक्रम ऐसे समय हुआ, जब उद्धव ठाकरे का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. उद्धव ठाकरे के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि पार्टी और विधायकों पर उनकी पकड़ कमजोर हुई है, इससे शिवसेना में उनकी साख को भी नुकसान पहुंचा है. ऑटो चालक से राजनीति में कदम रखने वाले शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने बगावती सुर अपनाकर पार्टी में अपनी ताकत का अहसास कराया. इस बात ने उद्धव ठाकरे को अंदर तक हिला कर रखा दिया. इसके चलते उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के 20 मिनट के बाद ही मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया.

फ्लोर टेस्ट से पहले ही सरेंडर
उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही हथियार डाल दिए. उद्धव ठाकरे अपने वैचारिक विरोधी तीन पार्टियों के गठबंधन की सरकार चला रहे थे. उनके पास अपना पूर्ण बहुमत नहीं था. राजनीतिक विश्लेषक ये भी मानते हैं कि जिस तरह का नियंत्रण एक गठबंधन सरकार पर मुख्यमंत्री का होना चाहिए था वैसा वो बना नहीं पाए थे. अलग-अलग विचारों वाली पार्टियों का गठबंधन था. उन पर नियंत्रण करने के लिए जो अथॉरिटी चाहिए वो उद्धव के पास नहीं रहा. साथ ही उद्धव के पास प्रशासन या सरकार चलाने का बहुत अनुभव नहीं था.

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दो तिहाई विधायक उद्धव ठाकरे से अलग हुए
सत्ता के सियासी दांव पेच भी उद्धव ठाकरे नहीं समझ सके और जब एकनाथ शिंदे ने बगावत का बिगुल फूंका तो उसे भी नहीं संभाल सके. शिवसेना के दो तिहाई विधायक उद्धव ठाकरे खेमे से छिटकर शिंदे के साथ चले गए. ऐसे में मुख्यमंत्री के साथ-साथ विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ दी, क्योंकि उद्धव सदन में अब अपने किसी नेता के सामने विपक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठना चाहते हैं. 

वहीं, उद्धव ठाकरे ने सीएम पद छोड़ने से पहले कहा , 'हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए. मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं. मैं अप्रत्याशित रूप से सत्ता में आया और मैं इसी तरह से बाहर निकल रहा हूं. शिवसेना एक परिवार है, इसे टूटने नहीं देंगे. मैं कहीं नहीं जा रहा.' शिवसेना के ही विधायकों के साथ छोड़ जाने पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि "रिक्शा वाले (एकनाथ शिंदे), और पान वाले को शिवसेना ने मंत्री बनाया... ये लोग बड़े हो गए, और हमें ही भूल गए...'

उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे की वजह से राजनीतिक रूप से बढ़े बागियों को उनके (बालासाहेब) बेटे के मुख्यमंत्री पद से हटने पर खुश और संतुष्ट होने दें. मैं संख्याबल के खेल में शामिल नहीं होना चाहता हूं. मैं शर्मिंदा महसूस करूंगा अगर मैं देखूंगा कि पार्टी का एक भी सहयोगी मेरे खिलाफ खड़ा है.' उद्धव ने कहा कि अब से शिवसेना भवन में बैठूंगा और दोबारा से पार्टी को खड़ा करूंगा. 

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बेटे आदित्य ठाकरे के लिए रास्ता बनाया?
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि शिवसेना का नेतृत्व आने वाले दिनों में किसके हाथ में रहेगा. क्या शिवसेना एकनाथ शिंदे के हाथ में चला जाएगा या उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी को बचा लेंगे. हालांकि, शिवसेना ने सीएम के साथ एमएलसी पद छोड़कर अपने भविष्य के राजनीति के संदेश दे दिए हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि उन्होंने सीएम और एमएलसी पद छोड़कर अपने बेटे आदित्य ठाकरे के लिए रास्ता बना दिया है.


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