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शिंदे सरकार का क्या होगा? महाराष्ट्र की राजनीति के लिए आज का दिन अहम, 'सुप्रीम' फैसले पर सबकी नजर

महाराष्ट्र में पिछले कई महीनों से चल रहे राजनीतिक घमासान का आज अंत हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट आज शिवसेना (Shiv Sena) के 16 बागी विधायकों के निलंबन पर फैसला सुनाएगा. इस फैसले पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. 2022 में शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई थी.

महाराष्ट्र की सियासत के लिए अहम है आज का दिन महाराष्ट्र की सियासत के लिए अहम है आज का दिन
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 11 मई 2023,
  • अपडेटेड 10:37 AM IST

महाराष्ट्र की सियासत के लिए आज का दिन बेहद अहम साबित होने वाला है. सुप्रीम की संवैधानिक पीठ उद्धव ठाकरे-एकनाथ शिंदे के शिवसेना में टूट और महाराष्ट्र में सरकार बदलने को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाएगी. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की बेंच यह फैसला सुनाएगी. सुनवाई के दौरान उद्धव कैंप ने शिंदे की बगावत और उनकी सरकार के गठन को गैरकानूनी बताया था.

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इस सियासी उठापटक के बाद एक के बाद एक कर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गईं. जहां शिंदे गुट के 16 विधायकों ने सदस्यता रद्द करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, तो वहीं उद्धव गुट ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर, राज्यपाल के शिंदे को सीएम बनने का न्योता देने और फ्लोर टेस्ट कराने के फैसले के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की. इतना ही नहीं उद्धव गुट ने शिंदे गुट को विधानसभा और लोकसभा  में मान्यता देने के फैसले को चुनौती दी.

क्या था मामला?

1- जून 2022 में शिवसेना में बगावत हो गई और एकनाथ शिंदे गुट के 'बागी विधायकों' ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर असंतोष जाहिर किया.  16 विधायक "लापता हो गए" और विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं हुए.
2- पार्टी के मुख्य सचेतक, जिन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा नामित किया गया था, उन्होंने तत्कालीन डिप्टी स्पीकर द्वारा 'बागी' विधायकों को नोटिस जारी करने के साथ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू कर दी. 
3- उसी समय, 'बागी विधायकों' ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ 'अविश्वास का प्रस्ताव रखने के लिए एक पत्र भेजा, जिस यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि इस प्रस्ताव को प्रॉपर चैनल के माध्यम से नहीं भेजा गया था. 
4- अयोग्यता की कार्यवाही के खिलाफ बागी विधायकों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहां कोर्ट की 3 जजों की पीठ ने नोटिसों का जवाब देने के लिए बागियों को और अधिक समय दे दिया. 
5- इस बीच, 'शिंदे खेमे' के विधायकों ने महाराष्ट्र छोड़ दिया, और अपनी जान और संपत्ति को गंभीर खतरे का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से संपर्क किया.
6- राज्यपाल ने तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे से विश्वास मत हासिल करने को कहा. उद्धव ने विश्वास मत से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया और राज्यपाल की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट चले गए.

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उद्धव गुट की दलील

उद्धव गुट द्वारा संविधान पीठ के समक्ष दायर याचिकाओं में 22 जुलाई के फ्लोर टेस्ट को रद्द करने की मांग की गई है, जिसके बाद एकनाथ शिंदे को सीएम की कुर्सी पर बिठाया था. उन्होंने कहा कि विधायकों को "पार्टी विरोधी गतिविधि" की तारीख से "अयोग्य माना जाएगा" और इसलिए शिंदे को सीएम नहीं बनाया जा सकता था. शिंदे गुट की याचिकाओं में स्पीकर की अयोग्यता की कार्यवाही पर विचार करने की शक्ति के बारे में चिंता जताई गई. उद्धव पक्ष द्वारा एक प्रारंभिक मुद्दा उठाया गया था कि मामले को नबाम रेबिया (2016) के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए एक बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए,  स्पीकर द्वारा अयोग्यता नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है, जब उन्हें हटाने की मांग का नोटिस लंबित हो. पीठ ने प्रारंभिक मुद्दे पर तीन दिनों तक दलीलें सुनी.

उद्धव गुट की याचिका में तर्क दिया गया था कि एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति "संविधान के अनुच्छेद 164 (1-बी) का उल्लंघन करती है और यह कि दल-बदल कानून के प्रावधान के किसी भी उद्देश्य के खिलाफ है, क्योंकि दल-बदल करने वालों को संवैधानिक पाप करने के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है.

अदालत ने सुनवाई के दौरान कहीं अहम बात

अदालत ने कहा था "सरकार का फ्लोर टेस्ट केवल सत्तारूढ़ दल के विधायकों के बीच मतभेदों के आधार पर नहीं बुलाया जा सकता है क्योंकि यह एक निर्वाचित सरकार को गिरा सकता है. किसी राज्य का राज्यपाल किसी विशेष परिणाम को प्रभावित करने के लिए अपने कार्यालय को उधार नहीं दे सकता है". पीठ ने यह सवाल भी किया था कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की ''खुशहाल शादी'' बीच में ही क्यों टूट गई. कोर्ट ने कहा, 'तीन साल आप एक गठबंधन में साथ रहे, और एक दिन, आपने तलाक का फैसला किया. बागी विधायक दूसरी सरकार में मंत्री बने.  राज्यपाल को खुद से ये सवाल पूछने चाहिए था कि आप लोग इतने लंबे समय से क्या कर रहे थे और अब अचानक आप तलाक चाहते हैं.'

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पीठ ने हालांकि यह सवाल भी उठाया था कि क्या वह बागी विधायकों को "अयोग्य" घोषित कर सकती है, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. पीठ ने  टिप्पणी की थी, 'अदालत उस मुख्यमंत्री को कैसे बहाल कर सकती है, जिसने शक्ति परीक्षण का सामना भी नहीं किया.'

मामले की जटिलता

इस मामले में संवैधानिक व्याख्या, संविधान की अनुसूची 10 के तहत दल-बदल विरोधी कानून, राज्यपाल की शक्तियां, अध्यक्ष की शक्तियां, चुनाव आयोग की भूमिका और स्वयं सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका जैसे जटिल प्रश्न शामिल हैं. अदालत के सामने एक प्रमुख मुद्दा यह भी था कि क्या उसे नबाम रेबिया 2016 के फैसले को "फिर से विचार करने' या "स्पष्ट" करने की आवश्यकता है. क्या स्पीकर को हटाने का नोटिस उन्हें नबाम रेबिया में न्यायालय द्वारा पारित भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही जारी रखने से रोकता है?

SC के फैसले से इन सवालों का मिलेगा जवाब...
 

1- क्या शिंदे को इस्तीफा देना पड़ेगा, उद्धव ठाकरे के सीएम के रूप में यथास्थिति बहाल हो सकेगी?

- अगर सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के जून 2022 के उस आदेश को रद्द करता है, जिसमें  उद्धव ठाकरे से विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा था, तो यह शिंदे के लिए बड़ा झटका होगा. हो सकता है कि उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़े और राज्य में उद्धव ठाकरे के सीएम के रूप में यथास्थिति बहाल हो . 

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उद्धव गुट को अरुणाचल पर सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले से उम्मीद है. SC में सुनवाई के दौरान भी इस केस का जिक्र हुआ था. दरअसल, फरवरी 2016 में कालिखो पुल कांग्रेस से बगावत कर भाजपा के समर्थन से अरुणाचल के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन चार महीने बाद जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें पद से हटना पड़ा था. 

2- क्या एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहेंगे और राज्य में मौजूदा स्थिति बरकरार रहेगी?

- सुप्रीम कोर्ट अगर पूरे सियासी घटनाक्रम में राज्यपाल की भूमिका को सही मानता है, तो शिंदे के पक्ष में फैसला सुना सकता है. यानी राज्य में अभी जैसे सरकार चल रही, वैसे ही चलती रहेगी. 

- इससे पहले चुनाव आयोग से उद्धव गुट को बड़ा झटका लगा था. आयोग ने शिंदे गुट को ही असल शिवसेना मानते हुए धनुष बाण वाला चुनाव चिन्ह दिया था. इस फैसले को उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने सभी पक्षों से उनका जवाब मांगा था.

3- क्या शिंदे गुट के विधायक अयोग्यता का सामना करेंगे?

- शिंदे गुट के विधायकों  की अयोग्यता को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है.

4- क्या राज्य में दोबारा चुनाव होंगे?

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सुप्रीम कोर्ट राज्य में दोबारा चुनाव कराने का भी आदेश दे सकता है. 

कहां से शुरू हुई ये सियासी उठापटक?

महाराष्ट्र में पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी. इसके बाद उद्धव सरकार गिर गई थी. शिंदे ने शिवसेना के बागी विधायकों के साथ बीजेपी के समर्थन में सरकार बनाई. इसके बाद से उद्धव ठाकरे गुट के कई नेता शिंदे गुट में शामिल हो चुके हैं. वहीं लंबी उठापटक के बाद शिवसेना के नाम और पार्टी के सिंबल पर हक को लेकर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच तनातनी चल रही थी. चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का प्रतीक तीर कमान सौंप दिया था.

मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और देवदत्त कामत अमित आनंद तिवारी ने उद्धव ठाकरे कैंप की पैरवी की जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता एन के कौल, महेश जेठमलानी और मनिंदर सिंह ने शिंदे गुट का प्रतिनिधित्व किया.

क्या हुआ था जून 2022 में?

- 20 जून- एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के बागी विधायकों के साथ बगावत कर दी. 23 जून को शिंदे ने दावा किया कि उनके पास 35 विधायकों का समर्थन है. 
- 25 जून- स्पीकर ने शिवसेना के 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेजा. बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. 
- 26 जून-  सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों (शिवसेना, केंद्र, डिप्टी स्पीकर को नोटिस भेजा) बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली. 
- 28 जून- राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा. उद्धव गुट इस फैसले के खिलाफ SC पहुंचा.
- 29 जून- सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 
- 30 जून-  एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बनाए गए. 
- 3 जुलाई- विधानसभा के नए स्पीकर ने शिंदे गुट को सदन में मान्यता दे दी. अगले दिन शिंदे ने विश्वास मत हासिल कर लिया. 

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