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दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन के बीच कृषि मंत्री से मिला किसानों का एक गुट, बोले- हो गए थे भ्रमित

नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के नाकों पर प्रदर्शन के बीच भारतीय किसान यूनियन (किसान) के सदस्यों ने मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की. इस किसान संगठन के सदस्यों ने कृषि कानूनों को उचित बताया. संगठन ने मुलाकात करने के बाद आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया.

कृषि मंत्री से मिले भारतीय किसान यूनियन (किसान) के मेंबर कृषि मंत्री से मिले भारतीय किसान यूनियन (किसान) के मेंबर
हिमांशु मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:42 PM IST
  • कृषि मंत्री से मिले किसान यूनियन के सदस्य
  • किसानों ने कानूनों का किया है सपोर्ट- तोमर
  • 'किसान कानून और केंद्र सरकार के साथ'

नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के नाकों पर प्रदर्शन के बीच किसानों के एक गुट ने मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की. भारतीय किसान यूनियन (किसान) के सदस्यों ने कृषि कानूनों को उचित बताया. इस गुट ने मुलाकात करने के बाद आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया.

मुलाकात के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, 'आज जो किसान मुझसे मिले, उन्होंने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि वे बिल और सरकार के साथ हैं. चूंकि कुछ किसान गलत धारणा फैला रहे हैं इसलिए उन्हें भी गुमराह किया गया. जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने बिलों का स्पष्ट समर्थन किया.'

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इससे पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करने वाले हरियाणा और उत्तराखंड के कुछ किसान संगठन कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं. उत्तराखंड के किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने रविवार को दिल्ली में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की थी. इन किसानों ने तीन कृषि कानूनों का समर्थन किया था. इस दौरान कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी और उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय मौजूद थे.

कृषि मंत्री इसके अलावा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ किसान नेताओं से भी मिल चुके हैं. किसानों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, सरकार की ओर से लिखित प्रस्ताव भी दिया गया है लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कुछ किसान संगठनों से मुलाकात की थी. 

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केंद्र सरकार की तरफ से बार-बार कहा जा रहा है कि वह हर मुद्दे पर बातचीत को तैयार है, किसान अपने आंदोलन को खत्म करें और संशोधनों को स्वीकार करें. लेकिन किसान अब सिर्फ कानून रद्द करने की मांग पर अड़ गए हैं. 

 

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