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योगी 2.0: अब दिखने लगे हैं भविष्य की राजनीति के कई अहम संकेत

सीएम योगी का दूसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है. लेकिन अपने पहले कार्यकाल और उससे भी पहले की छवि से निकलकर योगी अब एक ज़्यादा वृहद् दायरे की राजनीति को साधते और बढ़ते प्रशासक के तौर पर नज़र आ रहे हैं.

पाणिनि आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 04 मई 2022,
  • अपडेटेड 1:54 PM IST
  • योगी के चेहरे पर बीजेपी को यूपी में मिली दोबारा जीत
  • दोबारा सत्ता में आने के बाद योगी ने अपने फैसलों से सबको चौंका दिया

संस्कृत का एक सूत्र है- योगक्षेम. योगक्षेम का अर्थ कई प्रकार से देखा-गढ़ा जाता है. पर मूल भाव है कुछ हासिल करना और जो हासिल है उसे संभालना, उसकी रक्षा करना. योगक्षेम का यह सूत्र उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वर्तमान अवतार को अभिव्यक्त करता नज़र आ रहा है.

इस वर्ष जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार लौटी तो सूबे के नेतृत्व का दायित्व फिर से योगी आदित्यनाथ के हाथों में सौंपा गया. इसकी वजह यह भी रही कि योगी से बड़े क़द का कोई और चेहरा भाजपा के पास सूबे में था नहीं. दूसरा, जीत का सेहरा केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर नहीं बंधा है, इसमें योगी आदित्यनाथ की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है.

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जानकार मानते हैं कि दोबारा सरकारें न दोहराने वाले सूबे में साढ़े तीन दशकों के बाद अगर कोई सरकार सत्ता में लौटी है तो उसके पीछे एक मज़बूत छवि भी बड़ा कारण है. भाजपा को यूपी में दोहरा लाभ हुआ. प्रधानमंत्री मोदी के सामाजिक कल्याण की योजनाओं का लाभ उनके लिए एक नया, बड़ा और निर्णायक मतदाता वर्ग विकसित करता आया है. इस मतदाता वर्ग की पहचान किसी जाति या विचारधारा से नहीं की जा सकती. दिल्ली, ओडिशा और बिहार में ऐसा ही प्रयोग अरविंद केजरीवाल, नवीन पटनायक और नीतीश कुमार चरितार्थ कर पाने में सक्षम रहे और उन्हें इसका लाभ भी मिला.

लेकिन अखिलेश यादव की चुनाव के वक़्त की घोषणाएं भाजपा की घोषणाओं की तुलना में हल्की नहीं थी. यहां भाजपा को एक अहम लाभ मिला और वो था योगी की अपनी व्यक्तिगत छवि. मैनपुरी का रहने वाला एक मुस्लिम दर्ज़ी अगर यह कहता है कि पहले मैं शाम सात बजे दुकान बंद कर देता था लेकिन पिछले पांच साल के दौरान मैं 9 बजे के बाद तक दुकान खुली रख सका हूं, एक अहम पहलू है जो योगी की छवि के प्रति लोगों के आकर्षण को दिखाती है.

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योगी निर्णायक और अनुशासित प्रशासक के तौर पर उभरे. उन्होंने सत्ता के मोदी मॉडल को अपनाया और प्रशासन की बागडोर के साथ-साथ सत्ता को केंद्रीकृत करके रखा. इससे कुछ मंत्रियों और विधायकों को तो नुक़सान हुआ लेकिन स्पष्ट जनादेश की सरकार को वो नुक़सान नहीं हुआ जो योगी से पहले अखिलेश की सरकार को हुआ था. अखिलेश एक बेहतर प्रशासक होकर भी पांच मुख्यमंत्रियों वाली छवि और निर्णय में असमंजस वाले शाप से मुक्त नहीं हो सके थे.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को मोदी और योगी का यह कॉकटेल भा गया. चुनाव से ठीक पहले आई मोदी और योगी की तस्वीर को भले ही उस वक़्त कई राजनीतिक स्कैनरों से गुज़ारा गया, लेकिन उस फ़ोटो का लोगों के बीच प्रभाव राजनीतिक व्याख्याओं से इतर पड़ा. यही कारण है कि आख़िर तक असमंजस ओढ़े रहे आकलनों में अंततः जीत इस जोड़ी को मिली.

बदलते योगी

लेकिन इन पांच वर्षों के दौरान और उसके बाद भी योगी की छवि का जो सबसे पहला भाव है, उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ. और वो भाव है भगवावस्त्र पहनने वाले एक हिंदुत्ववादी नेता का जिसके सोचने-समझने की शैली का केंद्रीय भाव हिंदू और हिंदुत्व ही है. योगी इसको बदलना भी नहीं चाहते और न बदल सकते हैं. उन्हें शायद कुछ बदलकर बड़े होने की ज़रूरत भी नहीं है. उन्हें पूर्ण अर्जित छवि में और जोड़ने की ज़रूरत है और वो काम योगी शुरू कर चुके हैं.

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पिछले दिनों दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कॉन्फ्रेंस में ममता बनर्जी से कुछ इस अंदाज में मिले थे योगी. (फाइल फोटो-PTI)

सीएम योगी आज एक नए अवतार में दिखने लगे हैं. अपनी पूर्व की छवियों से आगे निकलकर योगी अब एक ऐसे राजनेता के तौर पर उभर रहे हैं जो अनुशासित और निर्णायक होने के साथ-साथ समावेशी भी दिख रहे हैं और केवल एक पहचान के दायरे से बाहर भी अपने लिए लोकप्रियता का समाज गढ़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं. 

योगी के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद की कुछ घटनाओं को देखने समझने की ज़रूरत है

हाल ही में अयोध्या में जाली टोपी पहनकर आए कुछ युवकों ने मस्जिदों के बाहर मांस के टुकड़े और धर्मग्रंथ के फटे हुए पन्ने फेंके. जांच हुई तो पता चला कि सभी आरोपी हिंदू हैं और वो ईद से पहले माहौल खराब कर जहांगीरपुरी का बदला लेना चाहते थे. मुख्य आरोपी महेश मिश्र तो आरएसएस और बजरंग दल से भी जुड़ा रहा है. पुलिस ने न सिर्फ आरोपियों को गिरफ्तार कर पूरी साजिश का भंडाफोड़ किया बल्कि उनपर एनएसए लगाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी.

ऐसा ही एक मामला मेरठ का है. मेरठ के अतिसंवेदनशील हाशिमपुरा में भाजपा के कुछ नेता 2 मई की रात देवी जागरण कराना चाहते थे. स्थानीय प्रशासन ने इसका विरोध किया क्योंकि रमजान चल रहे थे और 2 मई को ईद भी हो सकती थी. इस मुद्दे पर स्थानीय नेता और एसएचओ के बीच तीखी नोंकझोंक का वीडियो वायरल हुआ. नेता ने यहां तक धमकी दी कि पूरी फोर्स ले आओ, तब भी जागरण तो यहीं होगा. रोक सको तो रोक लो. हालांकि बाद में वरिष्ठ अफसरों ने मामले में हस्तक्षेप किया और जागरण रद्द करवा दिया गया. 

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ईद से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में बिजली की समस्या पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आलाअधिकारियों को निर्देश दिया कि ईद, अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती पर बिजली की कटौती न हो. त्योहारों पर बिजली कटौती पिछली बार  2017 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बना था. 

इस वक्त जब देश के अलग-अलग हिस्सों में मस्जिदों पर लाउडस्पीकर मुद्दा बन रहे हैं, सीएम योगी ने सिर्फ मस्जिदों को निशाना न बनाते हुए सभी धर्मस्थलों से लाउडस्पीकर हटाने अथवा उनकी आवाज एक सीमा से तेज न करने के आदेश दिए. इसका असर ये हुआ कि यूपी के हजारों मंदिरों, मस्जिदों व अन्य धर्मस्थलों से लाउडस्पीकर हटने लगे. खुद गोरखनाथ मंदिर के लाउडस्पीकरों की आवाज कम करते हुए उनका रुख मंदिर के अंदर की ओर कर दिया गया. अबतक के आंकड़ों के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा लाउडस्पीकर हटा दिए गए हैं जबकि 60 हजार से ज्यादा की आवाज कम कर दी गई है. 

दिल्ली, मध्य प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में राम नवमी और हनुमान जयंती के दौरान निकली शोभायात्राओं पर हमले हुए. उसके बाद हिंसा भी भड़की. सीएम योगी ने आदेश दिए कि कोई शोभायात्रा/धार्मिक जुलूस बिना विधिवत अनुमति के न निकाली जाए. अनुमति से पूर्व आयोजक से शांति-सौहार्द कायम रखने के संबंध में शपथ पत्र लिया जाए. अनुमति केवल उन्हीं धार्मिक जुलूसों को दिया जाए, जो पारंपरिक हों, नए आयोजनों को अनावश्यक अनुमति न दी जाए. योगी ने ये भी कहा, “रामनवमी की बात है, 25 करोड़ आबादी है यूपी की. 800 जगह पर रामनवमी पर जुलूस निकाले गए. इस समय रमजान का महीना भी था. रोजा इफ्तार के कार्यक्रम भी चले. कहीं भी तू तू मैं मैं नहीं हुई, दंगों की बात तो दूर है. यूपी में दंगों के लिए, अराजकता के लिए, गुंडागर्दी के लिए कोई जगह नहीं है. यूपी ने रामनवमी पर यह साबित किया है.”

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योगी के ये निर्णय भाजपा और विपक्षियों, दोनों को चौंकाने वाले हैं. लेकिन यह बदले हुए योगी नहीं हैं. ये योगी की छवि का विस्तार है. 

भविष्य के संकेत

जिस वक़्त यह लेख लिखा जा रहा था, योगी की एक तस्वीर वायरल हो रही थी जिसमें वो अपनी मां से मिल रहे हैं. इस तस्वीर को देखकर स्मृतियों में जो पहली चीज़ याद आती है वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय-समय पर अपनी मां के साथ सामने आए फ़ोटो. एकल जीवन या परिवार के बिना रह रहे नेताओं के लिए ऐसी छवियां उनके प्रति सामान्य लोगों के मन में एक पारिवारिक और परिवारों के प्रति संवेदनशील व्यक्ति की छवि गढ़ने में मदद करती हैं.  

 

नौदुर्गा में कन्याओं के पैर धोने वाली तस्वीरों से आगे योगी इस बार चुनाव जीतने के बाद बच्चों और लोगों को सेल्फ़ी का मौक़ा देते दिखे. दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने लखनऊ में भाजपा के प्रदेश कार्यालय को अधिक समय देना शुरू किया है. उपमुख्यमंत्री के साथ गाड़ी साझा करते भी योगी देखे गए. इन तमाम बातों के अलग-अलग जो भी मायने हों, पर मूल बात है एक पहले से गढ़ी-कही छवि को विस्तार देना. 

योगी लोगों के लिए सुलभ हैं. बच्चों को स्नेह देते हैं. पार्टी और मंत्रियों को लेकर चलना चाहते हैं. संगठन को समय देना, कार्यकर्ताओं को सुनना और पार्टी को मज़बूत करना चाहते हैं. और इससे भी बड़ा संदेश लोगों को ये देने का प्रयास है कि योगी हिंदुत्ववादी हैं, कट्टर हैं, योगी हैं, भगवा पहनते हैं लेकिन क़ानून व्यवस्था के मामले में वो किसी को न मौक़ा देंगे और न माफ़ करेंगे. हालांकि बुलडोज़र लोकतंत्र के लिए एक बुरा और दमनकारी चिन्ह है लेकिन उसका प्रयोग भी एक कठोर छवि गढ़ने के लिए ही ज़्यादा हो रहा है.

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सवाल यह है कि योगी ऐसा क्यों कर रहे हैं? दरअसल, योगी के इस विस्तार वाले अवतार में भविष्य की राजनीति के बीज रुपे हुए हैं. एक व्यक्ति की कठोरता सापेक्षता में दूसरे की छवि को उदार बनाती है. मोदी और आडवाणी, आडवाणी और वाजपेयी ऐसे ही सापेक्षतावाद में गढ़े-देखे गए नेता हैं. और बड़ा होने के लिए कठोरता के साथ-साथ व्यापकता बहुत ज़रूरी है क्योंकि कठोरता आपको केवल एक पहचान का नायक बनाती है. इस व्यापकता देकर ही कोई अपने वर्तमान से आगे बढ़ सकता है.

दूसरी बहुत सीधी लेकिन अहम बात यह है कि केवल धर्म की माला से सत्ता की गाड़ी चलती नहीं है. लोग रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सुधार, सुरक्षा और कुशल प्रशासन चाहते हैं. योगी एक बड़े मध्यमवर्ग और शहरी-ग्रामीण बहुमत के बीच एक नो-नॉनसेंस मैन वाली छवि गढ़ पाए हैं लेकिन उस छवि में कठोरता के साथ-साथ समावेशी होना और संवेदनशील होना उनकी छवि को लोगों के मन में और सहज बनाता है.

योगी इस वक़्त भाजपा के फलक के एक चमकते युवा नेता हैं. निःसंदेह, संघ और भाजपा के लिए योगी में अपार संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं में भविष्य की राजनीति का चेहरा भी है और आने वाले दशकों में देश और संघ की वैचारिक परिधि का मास्टर प्लान भी. दुनिया तेज़ी से बदल रही है. और इस बदलाव में राजनीति और लोगों के मुद्दे भी बदलेंगे और राजनीतिक लोगों के दायित्व और भूमिकाएं भी. योगी का यह विस्तार उन्हें भविष्य के लिए अनुकूलित कर रहा है.

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ऐसा नहीं है कि योगी के समक्ष चुनौतियां नहीं हैं. लेकिन राजनीति में इवॉल्व होना ही आगे बढ़ाता है. योगी में उसके संकेत हैं. योगी अपना राजधर्म लेकर भविष्य की ओर चल पड़े हैं.

 

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