
मुलायम सिंह यादव के निधन से मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए सपा प्रत्याशी डिंपल यादव ने सोमवार को अपना नामांकन दाखिल किया. इस दौरान डिंपल यादव के साथ अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, धर्मेंद्र यादव, अंशुल यादव और तेज प्रताप यादव समेत परिवार के तमाम नेता नजर आए, लेकिन इस दौरान न तो शिवपाल यादव दिखे और न ही उनके बेटे आदित्य यादव. शिवपाल परिवार की गैर मौजूदगी ने चाचा-भतीजे के बीच की अदावत को नहीं, बल्कि मुलायम कुनबे की कलह को एक बार फिर से बयां कर दिया है?
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की आपसी अनबन जग जाहिर है, लेकिन मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद माना जा रहा था कि चाचा-भतीजे सारी अदावत को भुलाकर एक साथ आ जाएंगे. मुलायम सिंह के अंतिम संस्कार से लेकर अस्थि कलश विसर्जन और शांति पाठ तक शिवपाल यादव-अखिलेश यादव के बीच प्यार दिखा था, जिसके बाद कयास लग रहे थे कि चाचा-भतीजे के बीच तल्खियां मिट गई हैं और मुलायम कुनबा फिर से एकजुट है, लेकिन मैनपुरी उपचुनाव की सियासी तपिश बढ़ने के साथ ही परिवार में कलह सामने आ गई है.
मुलायम सिंह के निधन की वजह से मैनपुरी सीट खाली हुई है. सैफई परिवार के ये पहला चुनाव, जो नेताजी के बिना हो रहा है. यह उपचुनाव अखिलेश यादव के लिए असल अग्निपरीक्षा होगा. इस चुनाव से तय हो जाएगा कि आखिर जिस मैनपुरी ने मुलायम पर भरपूर प्यार लुटाया, उसने मुलायम के बाद अखिलेश और सैफई परिवार को कितना अपनाया, लेकिन उपचुनाव से पहले ही सैफई परिवार में नई सियासी पटकथा लिखी जाने लगी है.
मैनपुरी लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने अपना नामांकन दाखिल किया. डिंपल के प्रस्तावकों के जरिए अखिलेश यादव ने मैनपुरी सीट के सियासी समीकरण को साधने की कवायद की है, लेकिन परिवार को एकजुट नहीं रख सके. नामांकन के दौरान पूरा सैफई परिवार शामिल हुआ, लेकिन शिवपाल यादव और उनके बेटे आदित्य यादव कहीं नजर नहीं आए.
डिंपल यादव के मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में उतारने को लेकर शिवपाल यादव की तरफ से किसी तरह बयान सामने नहीं आया है. हालांकि, रामगोपाल यादव ने यह बात जरूर कही है कि शिवपाल यादव से पूछकर ही डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया गया है. उन्होंने ये भी दावा किया था कि शिवपाल सिंह के बेटे और आदित्य यादव सपा प्रत्याशी डिंपल यादव के साथ नामांकन में रहेंगे, लेकिन आदित्य यादव भी नजर नहीं आए.
अखिलेश यादव भी शिवपाल सिंह के न आने के सवाल पर बचते नजर आए. वो यह बात कहते रहे कि मुलायम परिवार में सब ठीक है और चुनाव प्रचार में सब लोग नजर आएंगे. अखिलेश यादव ने भी सोमवार को डिंपल यादव के नामांकन के दौरान परिवार के एकजुट होने की बात दोहराई, लेकिन शिवपाल सिंह यादव की गैर मौजूदगी ने एक बार फिर ये अहसास करा दिया कि परिवार में सब कुछ ठीक नहीं है.
शिवपाल की नराजगी के सवाल हर बार अखिलेश यादव ने कहा कि परिवार के एकजुट होने की बात कहकर बात को घुमा दिया. उन्होंने कहा कि नेताजी के निधन से परिवर गमहीन है और सादगी पूर्ण ढंग से नामांकन करने आया है. आगे प्रचार में सब आएंगे. वहीं, राम गोपाल यादव ने कहा कि शिवपाल से पूछकर डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया गया है. ऐसे में शिवपाल आएं या न आएं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
बता दें कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को कोई भाव नहीं देने की टीस भी माना जा रहा है. अखिलेश ने धर्मेंद्र यादव और रामगोपाल यादव के साथ मैनपुरी सीट के लिए प्रत्याशी को लेकर मंथन किया था, जिसमें शिवपाल यादव शामिल नहीं थे. इसके बाद ही शिवपाल ने अखिलेश के खिलाफ अपने सख्त तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं और डिंपल यादव के नामांकन में नहीं पहुंचकर अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी है.
अखिलेश के रुख को देखते हुए शिवपाल इस बात को समझ चुके हैं कि परिवार एका के नाम पर सपा के साथ रहते हुए वो अपनी सियासत को बहुत विस्तार नहीं कर सकते हैं. अखिलेश के साथ उनको बहुत सीमित दायरे में ही रहना होगा, क्योंकि 2022 के चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करने पर शिवपाल को सिर्फ जसवंतनगर सीट मिली थी. इसके चलते शिवपाल के तमाम करीबी नेता साथ छोड़कर चले गए थे. यही वजह थी कि चुनाव के बाद शिवपाल को कहना पड़ा था कि जहर का घूंट पीकर समझौता करना पड़ा था.
मुलायम सिंह यादव अब जब दुनिया में नहीं है तो अखिलेश-शिवपाल के बीच सेतु की भूमिका अदा करने के लिए भी कोई नहीं बचा. शिवपाल को चाचा के तौर पर अखिलेश सम्मान देने की बात करते हैं, लेकिन सियासी तौर पर साथ लेकर चलने के लिए राजी नहीं है. ऐसे में शिवपाल के लिए सपा में कोई राजनीतिक जगह नहीं बचती है. मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर चुनाव लड़ने का संकेत शिवपाल यादव पहले ही दिए थे, लेकिन मुलायम सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर डिंपल यादव को उतारा. ऐसे में शिवपाल नाराज होकर लखनऊ में बैठे रहे और डिंपल के नामांकन में नहीं पहुंचे.
मुलायम परिवार की कलह और चाचा-भतीजे के बीच खटास को देखते हुए बीजेपी ने डिंपल यादव के खिलाफ शिवपाल के करीबी पूर्व सांसद रघुराज शाक्य को उतार दिया है. इस तरह से मुलायम सिंह की मैनपुरी सीट पर सपा के खिलाफ कड़ी चुनौती पेश कर दी है. मैनपुरी लोकसभा सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए रघुराज शाक्य की बीजेपी से उम्मीदवारी और शिवपाल की नाराजगी सपा के लिए चिंता बढ़ा सकती है.
मैनपुरी सीट पर 1996 से सपा का कब्जा है और मुलायम परिवार के लिए लॉन्चिग पैड रही है. मुलायम सिंह यादव खुद तो चार बार सांसद रहे ही हैं और उनके अलावा भतीजे धर्मेंद्र यादव और पोते तेज प्रताप यादव ने मैनपुरी उपचुनाव सीट से जीतकर सियासत में कदम रखा और अब मुलायम सिंह के निधन पर हो रहे उपचुनाव में डिंपल यादव चुनावी मैदान में उतरी हैं.
मुलायम सिंह यादव के रहते हुए बीजेपी के किसी भी बड़े नेता ने मैनपुरी सीट पर प्रचार नहीं किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मैनपुरी सीट पर सपा के खिलाफ प्रचार नहीं किया. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिसके तहत 80 की सभी 80 सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही है. इसी के तहत बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व मैनपुरी में कमल खिलाने की जुगत में है, जिसके लिए शिवपाल के करीबी रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है.
मैनपुरी सीट का समीकरण
मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव का जादू चलता रहा है, जिसके आगे सारे समीकरण ध्वस्त हो जाते थे. इस सीट पर सवा चार लाख यादव, शाक्य करीब तीन लाख, ठाकुर दो लाख और ब्राह्मण मतदाताओं के वोटों की संख्या एक लाख है. वहीं दलित दो लाख हैं. इनमें से 1.20 लाख जाटव, 1 लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक लाख मतदाता मु्स्लिम है. इस सीट पर यादवों और मुस्लिमों का एकतरफा वोट सपा को मिलता है. इसके अलावा अन्य जातियों का वोट भी सपा को मिलने से जीत मिलती रही.
मैनपुरी में पांच विधानसभा सीटें
मैनपुरी संसदीय सीट में पांच विधानसभाएं आती हैं, जिनमें मैनपुरी, भोगांव, किशनी, करहल और जसवंतनगर शामिल हैं. आपको बता दें कि जसवंतनगर विधानसभा सीट से मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव विधायक हैं और उन्होंने एसपी से अलग होने के बाद भी अपने भाई की जीत के लिए उन्हें हर तरह से समर्थन देने का ऐलान किया है. 2017 के विधानसभा चुनाव में पांच विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट भोगांव में बीजेपी को जीत मिली थी, लेकिन इस बार दो सीटें बीजेपी और तीन सीट सपा के पास है. सपा की तीन सीटों में से जसवंतनगर से शिवपाल और करहल से अखिलेश यादव विधायक हैं.
मैनपुरी सीट पर सपा यादव, शाक्य और मुस्लिम मतों के समीकरण पर चुनाव जीतती आई है. बीजेपी इस सीट पर सेंधमारी के लिए हरसंभव कोशिश करती रही, लेकिन मुलायम सिंह के चलते सफल नहीं हो सकी. अब मुलायम नहीं रहे तो सपा के लिए मैनपुरी सीट को बचाए रखना चुनौती खड़ी है. ऐसे में अखिलेश यादव ने अपने पिता की सीट पर अपनी पत्नी डिंपल यादव को उतारा है ताकि मुलायम की विरासत उनके पास ही रहे, लेकिन बीजेपी ने शिवपाल के राइट हैंट को उतारकर नया दांव चल दिया है.