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विष्णुदेव साय बनेंगे BJP के 'खेवैया'? छत्तीसगढ़ के इस फैसले में एमपी-राजस्थान के लिए क्या हैं संदेश

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पर सस्पेंस समाप्त हो गया है. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले आदिवासी सीएम का कार्ड चल दिया है तो वहीं छत्तीसगढ़ के इसे फैसले में मध्य प्रदेश और राजस्थान के लिए क्या संदेश है?

छत्तीसगढ़ के नए सीएम होंगे विष्णुदेव साय (फाइल फोटो) छत्तीसगढ़ के नए सीएम होंगे विष्णुदेव साय (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 11 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:27 AM IST

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हिंदी पट्टी के तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत मिली. इन राज्यों में बीजेपी की सरकार के लिए पूर्ण बहुमत का जनादेश मिलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती है मुख्यमंत्री का चयन. छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में ओबीसी या आदिवासी सीएम, बीजेपी के लिए इसे मुश्किल सवाल माना जा जा रहा था. पार्टी ने आदिवासी सीएम पर दांव चल दिया है. ओबीसी और सामान्य वर्ग को साधने के लिए दोनों वर्गों से एक-एक डिप्टी सीएम बनाने का फॉर्मूला भी सामने आया है.

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अब सवाल ये भी है कि साय को सीएम बनाने के बीजेपी के दांव के पीछे क्या है? दरअसल, आदिवासी बाहुल्य इलाकों में बीजेपी का प्रदर्शन जबरदस्त रहा है. आदिवासी बाहुल्य बस्तर और सरगुजा इलाके की ही बात करें तो कुल 26 सीटें हैं. इन 26 में से 22 सीटों पर इस बार के चुनाव में कमल खिला. वहीं, साहू समाज भी सूबे की आबादी में करीब 12 फीसदी की भागीदारी रखता है. छत्तीसगढ़ की राजनीति में प्रभावी साहू समाज के अरुण साव ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं.

बीजेपी के लिए असली मुश्किल यही थी. एक को सीएम बनाओ तो दूसरा नाराज न हो जाए. लोकसभा चुनाव काफी करीब हैं, ऐसे में पार्टी किसी भी समाज को नाराज करने का खतरा नहीं लेना चाहती थी. कहा जा रहा है कि इसी वजह से पार्टी ने वन प्लस टू (एक सीएम, दो डिप्टी सीएम) के फॉर्मूले से आदिवासी, ओबीसी और सामान्य, तीनों को साधने की कोशिश की है. विष्णुदेव साय आदिवासी समाज से आते हैं. 1980 के दशक से सियासत में सक्रिय हैं, 1999, 2004, 2009 और 2014 यानी लगातार चार बार सांसद रहे हैं.

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क्यों सभी दावेदारों पर भारी पड़ गए विष्णुदेव साय

सीएम की रेस में तीन बार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह तो थे ही, साथ ही रेणुका सिंह, ओपी चौधरी, अरुण साव जैसे नाम भी थे. लेकिन बीजेपी ने विष्णुदेव साय के नाम पर मुहर लगाई. विष्णुदेव साय अन्य दावेदारों पर कैसे भारी पड़ गए? इसके पीछे साय की सरल-सहज और जमीनी नेता की इमेज को प्रमुख वजह बताया जा रहा है. विष्णुदेव साय 1999 से 2014 तक सांसद रहे और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ही नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में भी मंत्री रहे. बीजेपी ने 2019 में साय को टिकट नहीं दिया था.

विष्णुदेव के सहारे कैसे सधेगी छत्तीसगढ़िया सियासत

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद अजीत जोगी सूबे के पहले मुख्यमंत्री बने थे. अजीत जोगी साल 2003 के चुनाव तक मुख्यमंत्री रहे और इसके बाद सूबे की सत्ता के शीर्ष पर गैर आदिवासी चेहरे ही रहे. पहले डॉक्टर रमन सिंह और फिर भूपेश बघेल. जिस प्रदेश की आबादी में आदिवासी समाज की हिस्सेदारी करीब-करीब एक तिहाई है, वहां गैर आदिवासी सीएम भी बड़ा फैक्टर साबित हुआ. वरिष्ठ  पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा कि आदिवासी सीएम की मांग रह-रहकर उठ रही थी और चुनाव में यह भी एक मुद्दा था. हर कोई ये चाहता है कि सीएम उसके बीच का हो.

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बीजेपी ने अब आदिवासी सीएम का दांव चल दिया है तो इससे छत्तीसगढ़िया सियासत कैसे सधेगी? इसे समझने के लिए सूबे के सामाजिक समीकरणों की चर्चा जरूरी हो जाती है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी आबादी करीब 34 फीसदी है. बीजेपी के इस दांव को आदिवासी समाज को साधने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है. छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग की जनगणना के लिए बनाए गए क्वांटिफायबल डेटा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की जनसंख्या 41 फीसदी है. पीएम मोदी के चेहरा है ही, अब एक ओबीसी और एक सामान्य डिप्टी सीएम के फॉर्मूले को बीजेपी के मिशन 2024 के लिए करीब 80 फीसदी वोट पर नजर से जोड़कर भी देखा जा रहा है.

एमपी-राजस्थान के लिए क्या संदेश
 
छत्तीसगढ़ में सीएम के ऐलान के साथ ही नजरें अब मध्य प्रदेश और राजस्थान पर हैं. मध्य प्रदेश में विधायक दल का नेता चुनने के लिए आज यानी 11 दिसंबर को बैठक होनी है. छत्तीसगढ़ के सीएम को लेकर फैसले में मध्य प्रदेश और राजस्थान के लिए क्या संदेश हैं? कहा जा रहा है कि एक बात साफ है कि बीजेपी को पुराने चेहरों पर यकीन नहीं रहा.

बीजेपी अब फ्रेश चेहरों पर दांव लगाने के मूड में है और इसे शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे जैसे नेताओं के लिए शुभ संकेत तो नहीं ही माना जा रहा. लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि शिवराज के साथ दो बातें जा सकती हैं. शिवराज ओबीसी से आते हैं जो मध्य प्रदेश की सियासत में प्रभावी है और दूसरी उनकी लोकप्रियता. मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत के पीछे लाडली बहना योजना मास्टर स्ट्रोक के तौर पर सामने आई है और ये बातें शिवराज के फेवर में जा सकती हैं.

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एक राज्य में बीजेपी ने आदिवासी कार्ड चल दिया है, ये भी छत्तीसगढ़ और राजस्थान के ओबीसी नेताओं के लिए सीएम की कुर्सी पर ताजपोशी का रास्ता खुले होने का संकेत माना जा रहा है. बीजेपी ने छत्तीसगढ़ से राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों की आदिवासी आबादी को भी बड़ा संदेश दे दिया है. अब देखना ये होगा कि बीजेपी राजस्थान और मध्य प्रदेश में किस चेहरे पर दांव चलती है.

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