
यूपी सरकार को लेकर जिस तरह फ़ीडबैक पिछलें दिनो मिला है उससे बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की नीद उड़ गई हैं. बीजेपी ने फ़ीडबैक मिलने के बाद उत्तर प्रदेश में अपना किला बचाने के लिए कसरत करनी शुरू कर दी है. पिछले कुछ दिनों से बीजेपी नेताओं की लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बैठकों का सिलसिला इसीलिए चल रहा है कि कैसे यूपी में बीजेपी की फिर से सत्ता में वापसी हो .
सूत्रों की मानें तो बीजेपी नेतृत्व को जो फ़ीडबैक मिला है उनका आकलन हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में कुप्रबंधन के आरोपों और विधायकों-सांसदों की नाराजगी के चलते पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में अच्छे ख़ासे वोट बैंक का नुक़सान हो सकता है. अंदेशा है कि बीजेपी को लगभग 100 सीटों का नुकसान हो सकता है. इसीलिए बीजेपी नेतृत्व समय रहते इस नुक़सान की भरपाई करना चाहती है. बीजेपी नेतृत्व अच्छी तरह से जानता है कि समय रहते जरूरी कदम न उठाने पर यह नुकसान बढ़ सकता है और सत्ता भी जा सकती है.
पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक बीजेपी लखनऊ की गद्दी पर दोबारा काबिज होने के लिए 8 बिंदुओं पर रणनीति बनाकर काम कर रही है. इन 8 बिन्दुओं पर रणनीति बनाकर काम करने के पीछे कारण ये है कि इसे आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं, बीजेपी के पर्यवेक्षकों और जमीनी आधार से मिले फीडबैक के आधार पर तैयार किया गया है. सूत्रों के अनुसार यह आठ सूत्र हैं- 1) नेतृत्व 2)संगठन 3) सुशासन 4) नियोजन 5) सामाजिक समीकरण 6) धार्मिक ध्रुवीकरण 7) गठबंधन और 8) गरीब कल्याण योजनाएं हैं. पार्टी की पूरी चुनावी रणनीति इन्हीं आठ बिंदुओं के आसपास घूमेगी.
नेतृत्व- बीजेपी यह स्पष्ट कर चुकी है कि राज्य में न तो सरकार में और न ही संगठन में नेतृत्व में कोई परिवर्तन होगा. लेकिन अगला विधानसभा चुनाव मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सीएम उम्मीदवार घोषित कर लड़ा जाए या फिर सामूहिक नेतृत्व में, इस बारे में अभी निर्णय होना बाकी है. बीजेपी ने असम और गोवा में सत्ता में रहते हुए सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और अगले साल उत्तराखंड में भी ऐसा ही करने का फैसला किया है. योगी का चेहरा आगे रखने पर अभी असमंजस इसलिए है क्योंकि उनकी कार्यशैली पर पार्टी के एक बड़े तबके में नाराजगी है.
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संगठन- बीजेपी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को नहीं बदला जाएगा. हालांकि पंचायत चुनाव की हार को उन पर मढ़ने की कोशिश हुई है. लेकिन बीजेपी संगठन को चाक-चौबंद करना चाहती है. अभी ठाकुर मुख्यमंत्री और पिछड़े वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष का फार्मूला अगड़े-पिछड़े के समीकरणों को संतुलित करता है.
सुशासन- अधिकांश विधायकों की शिकायत शासन को लेकर है कि इसपर नौकरशाही हावी है. अगले छह महीनों में इस धारणा को दुरुस्त करने का प्रयास होगा. मुख्यमंत्री को विधायकों से संवाद बढ़ाने को कहा गया है. बड़े सरकारी फैसलों को जमीन पर प्रभावी ढंग से उतारने का निर्देश दिया गया है.
नियोजन- अभी तक की सरकारी घोषणाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा की जा रही है. अगले छह महीनों में टीकाकरण की रफ्तार तेज करने का निर्देश दिया गया. महिलाओं और वंचित वर्ग पर खास तौर से ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया गया है. योगी सरकार का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पूरा होने वाला है. बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, आरआरटीएस जैसी परियोजनाओं पर काम में तेजी लाने को कहा गया है. अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी के हाथों जेवर एयरपोर्ट की आधारशिला रखी जा सकती है.
सामाजिक समीकरण- बीजेपी को फीडबैक मिला है कि जाट और ब्राह्मणों की नाराजगी भारी पड़ सकती है. इन दोनों समुदायों को लुभाने का प्रयास तेज होगा. मंत्रिमंडल विस्तार तथा संगठन में इनकी नुमाइंदगी बढ़ाई जा सकती है. जितिन प्रसाद को लाकर ब्राह्मणों को संदेश दिया गया. कुछ जाट नेताओं को भी आने वाले समय में महत्व दिया जाएगा.
धार्मिक ध्रुवीकरण- कट्टर हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों का प्रचार-प्रसार होगा. एंटी रोम्यो ब्रिगेड, लव जिहाद का कानून, दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने जैसे कदमों के बारे में बताया जाएगा. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य और अयोध्या, मथुरा, काशी को आध्यात्मिक नगरियों के रूप में विकसित करने का हवाला दिया जाएगा. देव-दीपावली तथा दीपावली पर अयोध्या में दीप प्रज्जलवन का विश्व रिकॉर्ड जैसी बातें रखी जाएंगी.
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गठबंधन- फीडबैक के मुताबिक पिछले चार साल में सहयोगी दलों को बिल्कुल महत्व नहीं दिया गया. ओमप्रकाश राजभर इसीलिए साथ छोड़ कर चले गए. अब अपना दल और निषाद पार्टी को मनाने का प्रयास हो रहा है. गुरुवार को अमित शाह से अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद की भेंट हुई. उन्हें मंत्रिमंडल में तथा अन्य सरकारी पदों से नवाजा जाएगा. नए सहयोगी जोड़े जा सकते हैं. दूसरी पार्टियों से जिताऊ उम्मीदवार लाए जा सकते हैं.
गरीब कल्याण- 23 लाख दिहाड़ी मजदूरों के खाते में 230 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए. पहली लहर में प्रवासी श्रमिकों का ध्यान रखा गया. सरकार दूसरी लहर में बुरी तरह प्रभावित गरीब तबकों के लिए योजना शुरु होगी. अनाथ बच्चों का सरकार ध्यान रखेगी. टीकाकरण में भी इस वर्ग को प्राथमिकता दी जाएगी.
ये बात ठीक है कि बीजेपी ने समय रहते ही यूपी को लेकर कैबिनेट से लेकर संगठन और ज़मीनी स्तर पर बड़े फ़ैसले लेने शुरू ज़रूर कर दिया हैं, लेकिन सवाल यह है कि समय-समय पर योगी सरकार की ख़िलाफ़ मिलने वाली शिकायतों पर बीजेपी नेतृत्व ने आंखें क्यों बंद किए हुए था?