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BJP ने 2024 से पहले बंगाल, तेलंगाना और ओडिशा के लिए सुनील बंसल पर क्यों जताया भरोसा?

8 सालों तक उत्तर प्रदेश के संगठन महामंत्री का दायित्व सफलतापूर्वक निभाने और यूपी की सियासत में असंभव को संभव कर दिखाने वाले सुनील बंसल को पार्टी के लोग संगठन शिल्पी के तौर पर जानते हैं. अब उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें उत्तर प्रदेश के दायित्व से मुक्त कर राष्ट्रीय महामंत्री का दायित्व दिया है.

सुनील बंसल को राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया गया है (फाइल फोटो) सुनील बंसल को राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया गया है (फाइल फोटो)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 11 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 3:53 AM IST

बीजेपी के कद्दावर नेता सुनील बंसल का पार्टी ने प्रमोशन कर दिया है. अब उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त कर दिया गया है. इसके अलावा उन्हें तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और ओडिशा का प्रभार भी मिला है. अभी तक सुनील बंसल उत्तर प्रदेश में प्रदेश महामंत्री के रूप में काम कर रहे थे. दरअसल, पिछले कुछ समय से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि सुनील बंसल को अब बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी. क्योंकि 8 साल तक उत्तर प्रदेश में संगठन का काम देखने के बाद वह खुद भी उत्तर प्रदेश से बाहर जाना चाहते थे. ऐसे में बीजेपी ने अपने संगठन के मजबूत रणनीतिकार को देश के उन कमजोर राज्यों का जिम्मा सौंपा है, जहां बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आ पाई हैं. 

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बंगाल जहां बीजेपी के सामने ममता बनर्जी हैं, अब वहां का प्रभार सुनील बंसल को दिया गया है. इसके अलावा तेलंगाना में बीजेपी को लगता है कि वह केसीआर की सत्ता हिला सकती है, वहां की जिम्मेदारी भी सुनील बंसल के कंधों पर है. साथ ही ओडिशा में बीजेपी मजबूत तो है, लेकिन कभी नवीन पटनायक के सामने नहीं टिक पाई. लिहाजा इस राज्य का प्रभारी भी सुनील बंसल को बनाया गया है.

सुनील बंसल को पूरब से दक्षिण तक का तटीय राज्य देने के पीछे एक बड़ी वजह देखी जा रही है. दरअसल कुछ समय पहले राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अश्वमेघ रथ को रोकने के लिए जिस रणनीति का खाका सामने रखा. उसमें बीजेपी के लिहाज से वह तमाम कमजोर राज्य थे, जहां बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आई है. प्रशांत किशोर के मुताबिक बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, बिहार और झारखंड के अलावा आंध्र प्रदेश और दक्षिण के तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य ऐसे बड़े सियासी ब्लॉक हैं, जहां लोकसभा की 200 से ज्यादा सीटें हैं. अगर इन 200 सीटों पर बीजेपी को रोक लिया जाता है, तो 2024 में पीएम मोदी के लिए सत्ता का रास्ता रोका जा सकता है.

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तेज तर्रार रणनीतिकार को 3 राज्यों का जिम्मा


बीजेपी ने विपक्ष के इस फार्मूले को भांपते हुए अपने संगठन के सबसे तेज तर्रार रणनीतिकार सुनील बंसल को उन 3 राज्यों का जिम्मा दे दिया है, जो बीजेपी को लगता है कि आने वाले वक्त में उसकी झोली में आ सकते हैं. अगर वहां उत्तर प्रदेश की तरह मेहनत की जाए और जमीन पर जातीय और सामाजिक समीकरण बिठाया जाए तो कामयाबी हासिल की जा सकती है.

2024 के लिए सीटें बढ़ाने की जिम्मेदारी 


दक्षिण और पूर्व के इन तीन राज्यों में बीजेपी को प्रभावी बनाने और 2024 में यहां से सीटें बढ़ाने की जिम्मेदारी अब सुनील बंसल के कंधे पर होगी. बंगाल-तेलंगाना और उड़ीसा ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी जमीन पर तो है, लेकिन जीतने की स्थिति में नहीं आ पाई है और यही सुनील बंसल के संगठन की महारत का टेस्ट भी होगा.

यूपी में कैसे सफल हुआ प्रयोग


अमित शाह के फार्मूले को आगे बढ़ाते हुए यूपी में सुनील बंसल ने जमीन पर जातीय आधार बड़ा किया, जिसमें ओबीसी और दलित जातियों को जोड़ा. उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया. इन वर्गों से नेता और कार्यकर्ता पैदा किए. उन्हें बड़ी तादात में संगठन और सदन में जगह दिलाई. जिसने बीजेपी को यूपी में इतना बड़ा बना दिया कि आज दूसरे सभी दल बौने हो गए. सिर्फ संगठन कौशल ही नहीं, दूसरे दलों के मजबूत आधार वाले नेताओं को तोड़ने और उन्हें बीजेपी से जोड़ने के साथ ही दूसरे दलों से आए नेताओं को उचित सम्मान और प्रतिनिधित्व देने की रणनीति ने बीजेपी को लगभग अजेय बना दिया. 2017 में स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी सरीखे नेताओं को लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि 2022 के चुनाव से पहले इसमें कइयों ने बीजेपी का दामन छोड़ा. लेकिन किसी ने सुनील बंसल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना.

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सीट निकालने वालों को पार्टी से जोड़ा
 

सुनील बंसल दूसरी पार्टी के दमदार नेताओं खासकर जनाधार वाले नेताओं को बीजेपी में लाने में महारथी माने जाते हैं. पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद सुनील बंसल हर उस शख्स को बीजेपी से जोड़ते रहे, जो सीटें निकाल सकता था. 2022 के चुनावी नतीजों के बाद आजतक से अनौपचारिक बातचीत में सुनील बंसल ने कहा था कि इस चुनाव में कुल 29 विपक्ष के नेता उनकी उस लिस्ट में थे, जिन्हें दूसरी विपक्षी पार्टियों से बीजेपी में लाना था और चुनाव आते-आते वो 22 नेताओं को लाने में सफल रहे.

करोड़ों नए कार्यकर्ता बनाए
 

सुनील बंसल की पहचान संगठन के महारथी के तौर पर इसलिए बनी, क्योंकि उन्होंने संगठन को आंकड़ों के साथ जोड़ दिया. करोड़ों की तादात में नए कार्यकर्ता बनाने, जमीनी कार्यकर्तओं की सुनने, उनसे मिले फीडबैक को चुनावी रणनीति से जोड़ने की उनकी कार्यशैली कार्यकर्ताओं के बीच खासी सफल रही.

यूपी में ऐसे हुई सुनील बंसल की एंट्री 
 

यूपी में सुनील बंसल की एंट्री 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले हुई, तब अमित शाह ने RSS से यूपी में अपने लिए एक सहयोगी की मांग की थी. क्योंकि उस वक्त अमित शाह यूपी के प्रभारी बनाये गए थे. यूपी में भाजपा की चुनावी सफलता के लिए रणनीति के जमीनी अमल में सुनील बंसल की भूमिका भी अहम मानी गई. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में जब भाजपा को 73 सीटों पर जीत मिली तो इनाम के तौर पर उन्हें यूपी भाजपा का संगठन महामंत्री बना दिया गया. बंसल ने आते ही शहरी पार्टी के तौर पर चर्चित भाजपा संगठन की संरचना में नीचे तक बदलाव किए. बूथ से लेकर पन्ना प्रमुखों की संरचना कागजों से निकलकर धरातल पर उतरी. और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 325 सीटों की शानदार विजय के लिए तय रणनीतियों की सफलता में भी सुनील बंसल का रोल सबसे अहम माना गया. इसके बाद वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों और वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत में उनकी अहम भूमिका रही. वर्ष 2014, 2017, 2019 और 2022 के चुनावों के साथ वह पंचायत और नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा की जीत के रणनीतिकारों में रहे हैं.  

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ABVP से की शुरुआत

भाजपा में आने से पहले राजस्थान के रहने वाले सुनील बंसल ने छात्रों के बीच काम करने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से काम शुरू किया था. वह एबीवीपी के सह संगठन मंत्री रहे. भाजपा में आने के बाद उन्होंने पार्टी में नए चेहरों को तैयार करने और जिम्मेदारी देने की कार्य संस्कृति को भी बढ़ावा दिया. लिहाजा भाजपा के विस्तार और प्रभाव के साथ ही यूपी में सुनील बंसल का भी प्रभाव और विस्तार बढ़ता गया. अब भले ही सुनील बंसल की उत्तर प्रदेश से विदाई हो रही है, लेकिन कोई भी सियासी रणनीतिकार चाहेगा कि ऐसी विदाई हो, जब उसकी झोली में सिर्फ जीत ही जीत रही हो.

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