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क्या पहली बार कोई महिला बनेगी बीजेपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष? पार्टी को नड्डा के विकल्प की तलाश

बीजेपी के लिए यह वक्त काफी अहम है क्योंकि पार्टी फिलहाल पीढ़ीगत बदलाव की ओर देख रही है. बहुत कम लोग इस बात से असहमत होंगे कि बीजेपी अब अपने चरम पर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में लगातार तीसरा कार्यकाल है, साथ ही बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सत्ता में है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा.
अनिलेश एस. महाजन
  • नई दिल्ली,
  • 26 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 2:36 PM IST

तीन राज्यों में मिली चुनावी जीत से उत्साहित बीजेपी ने जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी के रूप में पार्टी के नए पार्टी अध्यक्ष की तलाश अब नए सिरे से शुरू कर दी है. बीजेपी अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है, लेकिन नड्डा 2019 से ही इस पद पर हैं. वह एक के बाद एक विस्तार पाते रहे, आखिरी विस्तार 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों में निरंतरता बनाए रखने के लिए किया गया था. लेकिन अब अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में देरी हो रही है.

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राजनीतिक चरम पर बीजेपी

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पार्टी नेतृत्व 2024 के सेकंड हाफ में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों पर फोकस कर रहा था. एक समस्या यह भी है कि पार्टी अध्यक्ष के अलावा पिछले जून से नड्डा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में दोहरी भूमिका निभा रहे हैं, जो बीजेपी के 'एक व्यक्ति एक पद' नियम का उल्लंघन है. बीजेपी के लिए यह वक्त काफी अहम है क्योंकि पार्टी फिलहाल पीढ़ीगत बदलाव की ओर देख रही है. बहुत कम लोग इस बात से असहमत होंगे कि बीजेपी अब अपने चरम पर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में लगातार तीसरा कार्यकाल है, साथ ही बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सत्ता में है.

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बीजेपी नेतृत्व अपने वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शीर्ष नेतृत्व के साथ विचार-विमर्श का एक और दौर शुरू कर सकता है, लेकिन दोनों पक्षों का कहना है कि 'मोदी का फैसला अंतिम होगा'. ऐसा माना जाता है कि लोकसभा चुनावों में हार के बाद से चुनाव प्रबंधन में संघ की साफ भागीदारी ने ही बीजेपी के लिए जीत का एक दौर सुनिश्चित किया है. इसके कारण जिला, मंडल और कई मामलों में राज्य इकाई प्रमुख नियुक्तियों के लिए उनकी सिफारिशों पर सक्रिय रूप से विचार किया गया है. संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने इंडिया टुडे को बताया कि वे इस बात को लेकर चिंतित नहीं हैं कि पार्टी अध्यक्ष कौन बनेगा, वे कहते हैं, 'चाहे कोई भी हो, हमारे पास उनके साथ काम करने का कौशल है'.

स्टेट यूनिट में आपसी गुटबाजी

इस बीच राज्य इकाइयां लगातार चौंकाने वाले काम कर रही हैं. 27 फरवरी को बिहार कैबिनेट में फेरबदल के दौरान पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख दिलीप जायसवाल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. एक सप्ताह बाद उन्हें फिर से राज्य बीजेपी प्रमुख चुना गया. मार्च के मध्य में बीजेपी ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जिला प्रमुखों की नियुक्ति की, लेकिन गुटबाजी चिंता का विषय बनी हुई है. यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ, उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक और यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रति वफादार गुट एक्टिव हैं.

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हरियाणा में होली के दिन (14 मार्च) केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री एमएल खट्टर ने राज्य के वरिष्ठ मंत्री अनिल विज से अंबाला में उनके घर पर मुलाकात की. विज ने राज्य इकाई के प्रमुख मोहन लाल बडोली और सीएम नायब सिंह सैनी (दोनों खट्टर के वफादार) के प्रति अपनी दुश्मनी के बारे में खुलकर बात की. बडोली की ओर से विज को उनके सार्वजनिक तीखे बयानों के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद हालात और खराब हो गए थे, इसलिए 'होली मिलन' को एक तरह से तनाव कम करने की कोशिश के तौर पर देखा गया. तेलंगाना में अलग तरह की जंग है, जहां केंद्रीय मंत्री जी कृष्ण रेड्डी और बंदी संजय कुमार और सांसद एटाला राजेंद्र के गुट एक-दूसरे को घेर रहे हैं.

क्या बीजेपी को मिलेगी महिला अध्यक्ष?

बीजेपी ने गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कुछ अन्य राज्यों में जिला प्रमुखों की चुनाव प्रक्रिया पूरी कर ली है. पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तराखंड और महाराष्ट्र समेत सात राज्यों में, जहां सदस्यता अभियान में देरी हुई है, वहां नोमिनेशन के आधार पर निकाय तय किए जाएंगे. ओडिशा और कर्नाटक केंद्रीय नेतृत्व के लिए दूसरा बड़ा सिरदर्द हैं. बीजेपी महासचिव तरुण चुग हाल ही में ओडिशा से खाली हाथ लौटे क्योंकि अगले राज्य अध्यक्ष पर कोई सहमति नहीं बन पाई. सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान 'घर को फिर से व्यवस्थित करने' की कोशिश में अपने गृह राज्य की यात्रा करेंगे.

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सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में मिले झटके और उसके बाद आरोप-प्रत्यारोप के बाद बीजेपी नेतृत्व पार्टी अध्यक्ष के मुद्दे पर सभी स्टेकहोल्डर्स से रायशुमारी कर रहा है. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नड्डा का बयान- जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी, आरएसएस से आगे निकल गई है, पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ है. जैसे-जैसे अनौपचारिक चर्चा से दावेदारों की लिस्ट छोटी करने का काम जारी है, वैसे-वैसे कई विचारधाराएं उभर रही हैं. उनमें से एक है पहली महिला बीजेपी अध्यक्ष का चयन, जिसके बारे में समर्थकों का तर्क है कि इससे मोदी 3.0 के दूसरे हिस्से में बीजेपी की कहानी मजबूत होगी, जब परिसीमन और महिला आरक्षण पर बहस से कुछ हलचल होने की उम्मीद है.

दक्षिण के किसी चेहरे पर भी नजर

दूसरा विचार दक्षिण से पार्टी अध्यक्ष बनाने का है, जो डीएमके के नेतृत्व वाली परिसीमन की कहानी का मुकाबला करने में भी मदद करेगा कि बीजेपी देश के दक्षिण पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे उत्तर के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है. बीजेपी के पास पहले भी दक्षिण से अध्यक्ष रहे हैं (एम. वेंकैया नायडू, जन कृष्णमूर्ति और अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में बंगारू लक्ष्मण), लेकिन वहां विस्तार के मामले में उसे बहुत कम फायदा हुआ है.

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इन दो तनावों के बीच एक तीसरा पहलू यह है कि मोदी सरकार में काम कर चुके बीजेपी संगठन के किसी कट्टर नेता को मौका मिलना चाहिए. यहां तर्क है कि उसका अनुभव, संगठन (आरएसएस पढ़ें) और सरकार के बीच की खाई को कम करेगा. पीढ़ीगत बदलाव की भी चर्चा है, एक युवा नेता जो कल के मतदाताओं की बात करेगा, को जिम्मेदारी सौंपने पर भी विचार हो रहा है. आने वाले दिनों में हमें बताएंगे कि बीजेपी किस राह पर आगे बढ़ती है.

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