
पंजाब में चुनाव सिर पर हैं और सूबे में सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन में दरार के संकेत मिलने लगे हैं. पंजाब सरकार ने 'सूबे में विकास के नौ साल' को लेकर एक बुकलेट जारी किया है लेकिन इसमें न तो बीजेपी और न ही पार्टी के एक भी नेता का जिक्र है. इस बुकलेट के जरिये बताया गया है कि सीएम प्रकाश सिंह बादल और डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल ही राज्य में विकास का चेहरा हैं. बुकलेट में अंदर के एक पन्ने में पीएम नरेंद्र मोदी की तीन छोटी-छोटी तस्वीरें हैं.
पंजाब सरकार की ओर से जारी इस बुकलेट में सूबे में किए गए विकास कार्यों का बखान किया गया है. सीएम और डिप्टी सीएम के अलावा मंत्री सिकंदर सिंह मलूका, केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल और सूबे के राजस्व मंत्री बिक्रम मजीठिया इस बुकलेट में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं.
सात महीने पहले मिले थे गठजोड़ टूटने के संकेत
पिछले दो बार से लगातार सूबे में सत्ता पर काबिज अकाली दल-बीजेपी गठबंधन में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है, इसके संकेत बीते मार्च में ही मिलने लगे थे. उस वक्त राज्य के बीजेपी नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और गठबंधन तोड़े जाने की मांग की थी. बीजेपी नेताओं का कहना था कि अकाली दल के साथ गठजोड़ की वजह से पार्टी की छवि खराब हो रही थी.
हालांकि इस घटना के करीब तीन महीने बाद यानी जून में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पंजाब प्रभारी प्रभात झा ने गठबंधन टूटने की अटकलों पर विराम लगा दिया था. प्रभात झा ने कहा था कि पंजाब में अकाली दल-बीजेपी का गठबंधन जारी रहेगा. और यह रिश्ता टूटने वाला नहीं है.
बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन वर्षों पुराना है. 1998 में एनडीए बनने के बाद से ही अकाली दल इसका हिस्सा रहा. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में भी अकाली दल शामिल रही थी. केंद्र की मौजूदा सरकार में भी अकाली दल की हिस्सेदारी है. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद से अकाली दल से इसके रिश्ते में तल्खी दिखनी शुरू हो गई.
महाराष्ट्र, हरियाणा, झारंखड में बना ली है दूरी
बीजेपी ने धीरे-धीरे अपने क्षेत्रीय सहयोगियों से दूरी बनानी शुरू कर दी. महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में हुए विधानसभा चुनावों में भी ऐसा देखने को मिला. जहां तक पंजाब का सवाल है तो यहां सत्ता कांग्रेस और अकाली दल-बीजेपी गठजोड़ के बीच बारी-बारी से आती रही. लेकिन 2012 में यह ट्रेंड टूटा और अकाली दल-बीजेपी गठबंधन सत्ता में दोबारा वापसी में कामयाब रहा.
लेकिन हाल के दिनों में राज्य में बीजेपी की लोकप्रियता में गिरावट देखने को मिली है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 7 सीटों का नुकसान हुआ और 117 सदस्यों वाली विधानसभा में पार्टी 12 सीटों पर सिमट गई. पिछले चुनाव की तुलना में वोट शेयर भी 8 फीसदी कम रहा. यहां तक कि 2014 के आम चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 1.7 गिरा और पार्टी 13 सीटों में महज दो सीटें ही जीत सकी.
इमेज का डैमेज कंट्रोल करने का मौका
हालांकि, पंजाब में आम आदमी पार्टी जिस तरीके से उभर रही है, ऐसे हालात में बीजेपी के लिए अकाली दल से गठबंधन तोड़ना इतना आसान भी नहीं होगा. पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने चार सीटें जीतीं. पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए भी बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान कर रही है. सूबे में सत्ता विरोधी लहर है, ऐसे में इसका फायदा कांग्रेस को मिलता है या आम आदमी पार्टी को, यह आगे सामने आएगा. लेकिन बीजेपी अगर गठबंधन तोड़ लेती है तो इसे कुछ फायदा भी हो सकता है.
पिछले दो-चार वर्षों के दौरान पंजाब सरकार की काफी बदनामी हुई है. चाहे नशा का मुद्दा हो या किसानों की आत्महत्या का, राज्य सरकार की साख गिरी है. सतलज-यमुना लिंक कनाल के मसले पर भी पंजाब सरकार की काफी फजीहत हुई है. अगर चुनाव से पहले बीजेपी सरकार से अलग हो जाती है तो कम से कम वो पीएम मोदी के चेहरे के साथ जनता के बीच जा सकती है और उनके विकास कार्यों के सहारे डैमेज कंट्रोल कर सकती है.