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क्या पंजाब सरकार को सीबीआई से लगता है डर? जानें- क्यों वापस ली सहमति

शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि पहले खनन माफिया, फिर शराब माफिया और अब दलित छात्रवृत्ति घोटाले में पंजाब के एक कैबिनेट मंत्री का नाम आने के बाद सरकार सीबीआई की कार्रवाई से डरी हुई है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो) कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो)
मनजीत सहगल
  • चंडीगढ़,
  • 11 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 11:52 PM IST
  • सहमति वापस लेने के बाद विपक्ष के निशाने पर सरकार
  • 'मुख्यमंत्री सीबीआई की कार्रवाई से डरे हुए हैं'
  • दो दर्जन से अधिक कांग्रेस नेताओं पर ED की नजर

पंजाब की कांग्रेस सरकार सीबीआई को दी गई सहमति वापस लेने के बाद विपक्ष के निशाने पर आ गई है. विपक्ष का आरोप है कि कांग्रेस सरकार के मंत्री विधायक और यहां तक कि मुख्यमंत्री सीबीआई की कार्रवाई से डरे हुए हैं, इसलिए सहमति वापस लेकर कार्रवाई से बचने की कोशिश कर रहे हैं.

शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि पहले खनन माफिया, फिर शराब माफिया और अब दलित छात्रवृत्ति घोटाले में पंजाब के एक कैबिनेट मंत्री का नाम आने के बाद सरकार सीबीआई की कार्रवाई से डरी हुई है. उन्होंने कहा कि यही कारण है कि पंजाब सरकार ने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है. 

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सीबीआई से सहमति वापिस लेने के कारण

पंजाब में हाल ही केंद्र सरकार द्वारा दलित छात्रों को मिलने वाले वजीफे का घोटाला सामने आया. आरोप है कि पंजाब के कैबिनेट मंत्री साधु सिंह धर्मसोत, जो खुद भी एक दलित हैं, ने कथित तौर पर 51 करोड़ रुपये का छात्रवृत्ति घोटाला किया. विभागीय जांच में भी घोटाले के आरोप लगे थे. हालांकि, पंजाब सरकार ने बाद में मंत्री को क्लीन चिट दे दी और जांच करने वाले अधिकारी का तबादला भी कर दिया. लेकिन मामला केंद्र सरकार के संज्ञान में आने के अलावा बाद हाई कोर्ट पहुंच गया. विपक्ष इस घोटाले को लेकर सीबीआई जांच की मांग कर रहा था. 

इसके अलावा हाल ही आयकर और विदेशों में धन रखने के आरोपों के चलते प्रवर्तन निदेशालय ने 4 साल बाद फिर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह को समन जारी किया. सूत्रों के मुताबिक पंजाब के दो दर्जन से अधिक कांग्रेस नेताओं पर भी प्रवर्तन निदेशालय की नजर है. इन नेताओं पर खनन और शराब माफिया को संरक्षण देने का आरोप है. 

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इससे पहले भी पंजाब कांग्रेस सरकार सीबीआई की कारगुजारी को लेकर आपत्ति कर चुकी है. पंजाब में हुई धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामले की जांच को लेकर भी पंजाब पुलिस और सीबीआई आपस में उलझ गए थी. बाद में मुख्यमंत्री ने सीबीआई से जांच वापस लेने की मांग भी की थी. 

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इस साल अगस्त माह में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब के कई जिलों ,खासकर रूपनगर, में वसूले जा रहे गुंडा टैक्स को लेकर भी सीबीआई जांच बैठा दी थी. पंजाब सरकार ने सीबीआई जांच का विरोध किया था. यही कारण है कि पंजाब सरकार राज्य में सीबीआई के दखल से घबराई हुई है और आनन-फानन में पूर्व में दी गई सहमति वापस लेने का फैसला लिया गया है. 

अपनी सुविधा के मुताबिक सीबीआई को सहमति देगी सरकार

सीबीआई को दी गई सहमति वापस लेने के बाद पंजाब सरकार ने साफ किया है कि वह सीबीआई को केस के आधार पर सहमति देगी. यानी सीबीआई को अगर पंजाब में कोई जांच करनी है तो उसे राज्य सरकार से इजाजत लेनी होगी. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है इस सीबीआई पंजाब में छापेमारी या फिर कोई जांच नहीं कर पाएगी. भविष्य में अगर कोई न्यायालय सीबीआई किसी मामले में सीबीआई जांच के आदेश देता है और कार्रवाई के लिए छापेमारी जरूरी है तो सीबीआई संबंधित न्यायालय से इजाजत लेकर कार्रवाई कर सकती है. 

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पंजाब सरकार द्वारा सहमति वापस लेने से पहले दर्ज किए गए मामलों में सीबीआई जांच करती रहेगी. अक्सर सीबीआई पर आरोप लगते आए हैं कि वह सत्तारूढ़ केंद्र सरकार के दबाव में काम करती है. पंजाब के मामले में भी सरकार को अंदेशा है कि कृषि कानूनों को लेकर राज्य सरकार और केंद्र के बीच में चल रही तनातनी के कारण केंद्र सरकार राज्य सरकार के खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल कर सकती है. पंजाब पहला राज्य नहीं है जिसने सीबीआई को दी गई सहमति वापस ली है. इससे पहले सात दूसरे राज्य, खासकर गैर भाजपा शासित राज्यों ने सीबीआई को दी गई सहमति वापिस ली थी.


 

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