Advertisement

बीजेपी के लिए क्या आपदा में अवसर साबित होगा पंजाब में अकाली का अलग होना?

पंजाब की कुल 117 सीटों में से बीजेपी महज 23 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन अकाली दल से अलग होने के बाद अब उसे पूरे राज्य में आधार बढ़ाने का सियासी मौका मिल गया है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि बीजेपी कभी अकाली दल से अलग नहीं होना चाहती थी. ऐसी कोशिश बीजेपी की प्रदेश इकाई की तरफ से कई बार हुई, लेकिन हर बार पार्टी हाईकमान के सियासी दखल के चलते समझौते होते रहे.

सुखबीर सिंह बादल और नरेंद्र मोदी सुखबीर सिंह बादल और नरेंद्र मोदी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:20 AM IST
  • बीजेपी और अकाली दल 1997 में साथ आए थे
  • पंजाब में बीजेपी 23 सीटों पर ही चुनाव लड़ती रही
  • बीजेपी को 117 सीटों पर आधार बढ़ाने का मौका

किसानों के लिए लाए गए कृषि संबंधी तीनों विधेयकों को मोदी सरकार संसद से पारित कराने में सफल रही है, लेकिन बीजेपी से शिरोमणि अकाली दल ने गठबंधन तोड़ लिया है. अकाली और बीजेपी की 22 साल पुरानी दोस्ती ऐसे समय टूटी है जब सूबे में विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का वक्त बाकी है. ऐसे में पंजाब की सियासत में बीजेपी को एक तरफ तो अपने अस्तित्व को बचाए रखने चुनौती है जबकि दूसरी ओर राज्य में अपना राजनीतिक विस्तार बढ़ाने का अवसर भी है. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी क्या आपदा को अवसर में तब्दील कर पाएगी? 

Advertisement

अकाली दल के साथ बीजेपी का गठबंधन 1997 में हुआ था. पंजाब में 1999 के लोकसभा और 2002 और 2017 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन के खराब प्रदर्शन के बावजूद समझौता जारी है. इस दौरान बीजेपी की जितनी भी केंद्र में सरकार बनी सबसे में अकाली दल के नेता मंत्री बने. यही नहीं 1997 में बीजेपी के साथ आने का राजनीतिक फायदा अकाली को मिला और प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री बने. पंजाब में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी दल की सरकार ने पांच साल का सफर पूरा किया था.

बीजेपी को पंजाब में आधार बढ़ाने का मौका

पंजाब की कुल 117 सीटों में से बीजेपी महज 23 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन अकाली दल से अलग होने के बाद अब उसे पूरे राज्य में आधार बढ़ाने का सियासी मौका मिल गया है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि बीजेपी कभी अकाली दल से अलग नहीं होना चाहती थी. ऐसी कोशिश बीजेपी की प्रदेश इकाई की तरफ से कई बार हुई, लेकिन हर बार पार्टी हाईकमान के सियासी दखल के चलते समझौते होते रहे. हालांकि, अब बीजेपी के पास पंजाब में एक बड़ा अवसर है कि सभी 117 सीटों पर अपना राजनीतिक आधार बढ़ाया जा सके. 

Advertisement

बीजेपी के प्रदेश महासचिव डॉ. सुभाष शर्मा ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि अकाली दल के अलग होने के बाद हमारे पास अब उन इलाकों में जाने का मौका आ गया है, जहां अभी तक हम अकाली दल के चलते कभी गए ही नहीं. ऐसे में नई जगहों पर जड़ें जमाना आसान नहीं होगा, लेकिन अब यह हमारी मेहनत पर निर्भर करेगा कि हम इन जगहों पर अपनी जड़ें कितनी जल्दी जमाते हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना से बीजेपी अलग होकर आज सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. ऐसे ही पंजाब में भी हम अपना राजनीतिक आधार बढ़ा सकते हैं. 

बीजेपी का लिटमस टेस्ट

पंजाब में बीजेपी का शहरी मतदाताओं के बीच राजनीतिक आधार रहा है, लेकिन उसने ग्रामीण इलाकों में भी पकड़ बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी. ऐसे में अकाली दल से बीजेपी के अलग होने का पहला लिटमस टेस्ट इसी साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में देखने को मिलेगा, जो कि पूरी तरह से शहरी और कस्बे के मतदाताओं के हाथ में होगा. ऐसे में बीजेपी को निकाय चुनाव में अकेले किस्मत आजमाना होगा और यह उसके लिए असली परीक्षा होगी. 
 

ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की राह 

कृषि विधेयकों को लेकर किसान बहुल ग्रामीण इलाकों में बीजेपी लिए राजनीतिक राह और कठिन हो सकती है. सूबे के किसानों की शंकाएं दूर करने के लिए बीजेपी ने गांवों में जाकर जनसंपर्क करने की योजना बनाई है, लेकिन किसान संगठनों ने एलान कर दिया है कि कृषि विधेयक के समर्थन करने वालों को गांवों में घुसने नहीं देंगे. ऐसे में बीजेपी के लिए ग्रामीण इलाकों में अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करना एक बड़ी चुनौती बन गई है. वहीं, सुभाष शर्मा कहते हैं कि किसानों को हम समझाने की कोशिश कर रहे हैं और 2022 के चुनाव आने तक हम किसानों के गुस्से को ठंडा करने में कामयाब हो जाएंगे. 

Advertisement

पंजाब के हिंदू वोटों पर होगी नजर

पंजाब की सियासत में अब तक का इतिहास रहा है कि बीजेपी जब भी कमजोर हुई है, उसका लाभ कांग्रेस को मिला है. यही वजह कि अकाली और बीजेपी के गठबंधन टूटने से कांग्रेस को अपना सियासी फायदा नजर आ रहा है. इसीलिए हरसिमरत कौर बादल के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ लगातार दबाव बनाते रहे कि अकाली दल केवल मगरमच्छ के आंसू बहाने का काम कर रही है जबकि वह अब भी एनडीए में बना हुई है और केंद्र सरकार को समर्थन दे रही है. ऐसे में कांग्रेस का यह दांव कामयाब रहा और अकाली ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. 

दरअसल, पंजाब में 1997 के दौरान जब बीजेपी को 18 सीटें मिलीं तो प्रदेश में सरकार अकाली-बीजेपी की बनी. 2002 में बीजेपी तीन सीटों पर सिमट गई और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी. 2007 में 19 और 2012 में 12 सीटें बीजेपी को मिलीं तो प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से दूर रही. 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखें बीजेपी की महज तीन सीटें आईं और सत्ता कांग्रेस को मिली. इससे साफ जाहिर है कि हिंदू वोट के बंटने का फायदा कांग्रेस को होता है.
 

Advertisement

मालवा बनेगा राजनीतिक प्रयोगशाला

पंजाब का मालवा इलाका हिंदू वोटों का गढ़ माना जाता है, जहां करीब 67 विधानसभा सीटें आती हैं. यहां बीजेपी के चलते अकाली दल को सियासी फायदा होता रहा है, क्योंकि बीजेपी के चलते हिंदू वोट बैंक अकाली दल के पक्ष में जाता रहा है. हालांकि, अकाली दल से बीजेपी के गठबंधन होने के चलते हिंदू मतदाताओं की पसंद कांग्रेस बनी हुई है. ऐसे में अब इन वोटों पर सीधे कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई होगी. पंजाब के पांच बार विधानसभा और पांच बार लोकसभा चुनाव अकाली दल और बीजेपी ने मिलकर लड़े. पंजाब की सत्ता में तीन बार गठबंधन काबिज हुआ था. 

पंजाब में बीजेपी का घटता जनाधार

2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल-बीजेपी का गठबंधन कामयाब रहा था. इन दोनों चुनाव में एनडीए ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था. 2012 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल को 34.75 प्रतिशत और 2007 में 37.09 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 2007 में 8.28 प्रतिशत वोट मिले थे जो 2012 में घटकर 7.13 फीसदी रह गया था. 

पंजाब के इन दोनों चुनाव में कांग्रेस 40 फीसदी से अधिक वोट मिलने के बावजूद सत्ता नहीं पा सकी थी क्योंकि एनडीए गठबंधन को 41 फीसदी से अधिक वोट मिला था. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा और उसे 38.50 फीसदी वोट मिले और उसके 77 विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंचे. 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक नुकसान बीजेपी का हुआ, जिसके महज 3 विधायक ही जीत सके थे और उसका वोट प्रतिशत 5.4 फीसदी पर सिमट गया. ऐसे में बीजेपी के लिए अब इससे बुरा दौर पंजाब में नहीं आएगा. हालांकि, अकाली को 15 सीटें और 25.2 फीसदी वोट मिल सके जबकि आम आदमी पार्टी 20 विधायकों के साथ  23.7 प्रतिशत वोट हासिल किए. 

Advertisement

2022 में किसे मिलगा सियासी फायदा

दरअसल, पंजाब में अकाली दल से वोटरों का मोह भंग हुआ है और पार्टी में दो फाड़ हो गए हैं. अकाली के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. 2022 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल को सत्ता तभी हासिल हो सकती है जब उसको 40 फीसदी से ऊपर वोट मिले. लेकिन बीजेपी के साथ नाता तोड़ने के बाद सुखबीर बादल के लिए बहुत कठिन लक्ष्य हो गया है. दूसरी तरफ बीजेपी के सामने पूरे प्रदेश में राजनीतिक ग्राफ बढ़ाने का मौका जरूर हाथ लग गया है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी अब पंजाब में अपने सियासी आधार को कैसे मजबूत कर पाती है. 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement