
पंजाब में किसान एक बार फिर से आंदोलन कर रहे हैं. पिछले तीन दिनों में किसानों के आंदोलन में कई अहम पड़ाव आए हैं जिसमें सरकार से वार्ता विफल हुई तो वहीं सैकड़ों किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया और बुधवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान के आवास के बाहर धरना देने के लिए किसानों को चंडीगढ़ पहुंचने की अनुमति नहीं दी गई. पिछले तीन दिनों से किसानों और राज्य सरकार के तनाव लगातार बढ़ रहा है
किसानों के जत्थे एक बार से लामबंद हो रहे हैं. अबकि बार राजधानी चंडीगड़ को ये अपना ठिकाना बनाना चाहते हैं, जहां पर ये पक्का मोर्चा लगाकर डटना चाहते हैं और अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर आवाज बुलंद करना चाहते हैं.
कभी मध्यस्थ की भूमिका में थे मान
कुछ समय पहले तक, जो भगवंत मान किसान नेताओं और केंद्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे और घंटों बैठकों में बैठते थे वो आज खुद किसानों को लेकर बदले-बदले नजर आ रहे हैं. अब हालात बदल गए हैं और सीएम ने उन किसानों के प्रति अपना रुख कड़ा कर लिया है, जो उनका और राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार का विरोध कर रहे हैं. मान ने बार-बार किसानों को नई दिल्ली में प्रवेश न करने देने के लिए केंद्र की आलोचना की थी. और अब उन्हें भी इसी तरह की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.
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किसान नेताओं और राज्य सरकार के बीच तब तनाव बढ़ गया जब 3 मार्च को किसानों ने सीएम पर अनुचित व्यवहार करने और चंडीगढ़ स्थित पंजाब भवन में संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के साथ बैठक से बाहर निकलने का आरोप लगाया. कथित तौर पर मान ने यह कहते बैठक छोड़ दी कि अगर किसान चंडीगढ़ में 5 मार्च के धरने के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं.
क्या बोले मान
हालांकि मान ने 4 मार्च को मीडिया से बात करते हुए कहा, "हां, मैं बैठक छोड़कर चला गया और हम उन्हें हिरासत में भी लेंगे, किसानों को पटरियों और सड़कों पर बैठने की अनुमति नहीं देंगे, मैं पंजाब के तीन करोड़ लोगों का संरक्षक हूं. कल मैंने दो घंटे मीटिंग में बिताए, लेकिन किसानों ने सीधे तौर पर कहा कि वे 5 मार्च को प्रदर्शन करेंगे. इसलिए मैं चला गया."
बुधवार को चंडीगढ़ पहुंचकर सीएम आवास के बाहर प्रदर्शन करने वाले किसानों को पंजाब पुलिस ने गांवों में ही रोक दिया. बलबीर सिंह राजेवाल, रुलदू सिंह मानसा और जोगिंदर उगराहां जैसे बड़े नेताओं समेत कई लोगों को हिरासत में लिया गया.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कुलदीप सिंह के मुताबिक, यह अचानक नहीं हुआ है. सिंह ने कहा, "मुझे लगता है कि किसान संगठनों की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ साल पहले जितना मजबूत नहीं है और यह पूरी घटना उसी का नतीजा है. इसके अलावा, सरकार को लग रहा होगा कि किसानों के अलावा भी एक आबादी है जो किसानों के रोज़ाना के धरने और नाकेबंदी से परेशान है. सरकार शायद सोच रही होगी कि वे हर समय किसानों को खुश नहीं रख सकते, इसलिए कम से कम वे दूसरी आबादी को तो खुश कर ही सकते हैं."
अर्थशास्त्री प्रोफेसर आरएस बावा ने स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा, "मुझे लगता है कि राज्य सरकार को यह समझ में आ गया होगा कि किसानों की कई मांगें हैं जो केंद्र के हाथ में हैं और राज्य के पास करने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है." उन्होंने आगे कहा कि मान सरकार को यह भी अंदाजा हो गया होगा कि नियमित नाकेबंदी और धरने से राज्य के साथ-साथ गैर-किसान आबादी को भी बहुत परेशानी हो रही है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को बातचीत फिर से शुरू करनी चाहिए और किसानों के लिए जो कुछ भी कर सकती है, वह करना चाहिए.
किसानों और सरकार के बीच के इस झगड़े का राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर असर पड़ेगा क्योंकि इसने राज्य सरकार को किसान संगठनों और विपक्षी दलों के निशाने पर ला दिया है. पहले से ही किसान मान सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और पुतले जला रहे हैं.
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किसान नेता सरवन पंधेर ने कहा, "यह राज्य सरकार की तानाशाही हरकत है. किसान इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे और विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. पंजाब की यह सरकार किसानों को उनकी राज्य की राजधानी चंडीगढ़ जाने की अनुमति नहीं दे रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है."
किसानों को नहीं चलाने देंगे हुक्म: AAP
पंजाब आप प्रमुख अमन अरोड़ा के अनुसार, सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है और किसान जब चाहें बातचीत फिर से शुरू कर सकते हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि वे "बड़ी संख्या में नहीं आ सकते." अरोड़ा ने कहा, "उनकी ज़्यादातर मांगें केंद्र से संबंधित हैं, लेकिन हम उन्हें हम पर दबाव बनाने की इजाज़त नहीं देंगे. हमने किसानों को विवादों को सुलझाते देखा है. हम उन्हें समानांतर व्यवस्था नहीं चलाने देंगे और हर मामले में उनका हस्तक्षेप नहीं होने देंगे. हम किसानों को हम पर हुक्म चलाने नहीं देंगे. हम शंभू और खनौरी बॉर्डर भी खोलेंगे."
पंजाब कांग्रेस के विधायक परगट सिंह ने कहा, "मुझे लगता है कि सीएम ने किसानों की मांगों को सुना होगा और उन्हें हिरासत में लेने या बैठक से बाहर जाने का ऐसा फ़ैसला नहीं लिया होगा. इसे बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था. मुझे लगता है कि सरकार इस बारे में स्पष्ट नहीं है कि वह क्या कर रही है."