
पंजाब चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने कोशिशें तेज कर दी हैं. सभी पार्टियां विकास के दावे के साथ लोगों के बीच उतर रही हैं. अमृतसर के लोगों से जब चुनावी माहौल से लेकर बात की गई तो उनका कहना था कि यहां सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी का है. पढ़े लिखे युवाओं के पास काम नहीं है. किसान भी परेशान हैं.
अमृतसर को पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान विकास के बड़े सब्जबाग दिखाए गए थे. कई वादे किए गए थे. बादल की सरकार के सामने कांग्रेस खड़ी थी तो वहीं आम आदमी पार्टी भी चुनाव में उतरी थी. स्थानीय निवासी विक्रमजीत कहते हैं कि अब अमृतसर में विकास बड़े पैमाने पर हुआ है, लेकिन बेरोजगारी सबसे बड़ा मसला है.
विक्रमजीत के मुताबिक, जब से चरणजीत चन्नी मुख्यमंत्री बने हैं, तब से उन्हें उम्मीद की नई रोशनी दिखाई पड़ती है, लेकिन कहते हैं कि पिछले साढे चार सालों में कैप्टन अमरिंदर के कार्यकाल में उन्हें सिर्फ निराशा हाथ लगी. दूसरे निवासी गुरदीप का कहना है कि नए मुख्यमंत्री को आए अभी कुछ महीने ही हुए हैं. ऐसे में उन्हें वक्त दिया जाना चाहिए और मौका दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह अच्छा काम कर रहे हैं.
कांग्रेस का वादा अब तक अधूरा
अन्य कई लोगों ने बताया कि फिलहाल बेरोजगारी अमृतसर के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इसका वादा 2017 के चुनाव में भी कांग्रेस ने किया था, लेकिन वह वादा पूरा नहीं हुआ. अमृत सिंह मानते हैं कि इस चुनाव में भी ट्रक सबसे बड़ा मुद्दा है, क्योंकि वह धीरे-धीरे गांव गांव में फैल रहा है. इसको लेकर सरकार ने कभी कुछ नहीं किया, फिर चाहे वह बादलों की सरकार रही हो या फिर कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार.
अमृतसर के लिए बिजली समस्या भी बड़ा मुद्दा
बिजली भी अमृतसर के लिए मुद्दा है. जसवंत मान कहते हैं कि सर्दियों में तो व्यवस्था ठीक है, लेकिन गर्मियों में बिजली कटौती होती है. ज्यादातर लोगों ने कहा कि फिलहाल महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है, क्योंकि पेट्रोल डीजल के साथ घर की दूसरी आवश्यक चीजें इतनी महंगी हो गई हैं, जिससे घर का बजट बिगड़ गया है. कुछ लोगों की राय यह है कि नए मुख्यमंत्री सही राह पर हैं और अगर उन्हें एक और मौका मिलता है तो शायद पंजाब के लिए वह बेहतर काम कर सकें.
एक अन्य नागरिक ने कहा कि आखिर यह महंगाई क्यों हुई. पिछली सरकारों ने काफी कर्जा लिया था. उसका ब्याज चुकाने के लिए केंद्र सरकार को तेल की कीमतें बढ़ानी पड़ीं. अमृतसर के रहने वाले किसान गुरपिंदर सिंह ने कहा कि दाल ₹200 किलो बाजार में मिलती है, लेकिन किसान को ₹32 प्रति किलो कीमत भी नहीं मिलती तो बंगाल में रहकर काम करने वाले सिमरनजीत ने कहा कि यह सब सियासत है. धर्म के नाम पर जाति के नाम पर लोगों को लड़ाने की कोशिश है.
खेतों में काम करने के लिए थोड़ा ज्यादा समय मिले
लोगों का कहना है कि अब जब खेती के लिए पर्याप्त समय नहीं है. ट्रेड बॉर्डर पर काम नहीं है तो ज्यादातर किसान बेरोजगार हैं. खाली हैं. ऐसे में अटारी रेलवे स्टेशन के पास ताश के पत्तों के साथ ही उनका दिन बीतता है. लोगों का कहना है कि बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है जो पिछले चुनाव में भी थी, लेकिन इस तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया. वह यह मांग करते हैं कि उन्हें फेंसिंग के पार अपने खेतों में काम करने के लिए थोड़ा ज्यादा समय दिया जाए. यह इस साल चुनावी मुद्दा भी हो सकता है.
बीएसएफ को मिले अतिरिक्त अधिकार से किसानों को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन वह चाहते हैं कि सरकार उनकी बातें सुने और फेंसिंग के उस पार जाने वाले किसानों को खेती करने के लिए समय सीमा और बढ़ाई जाए. किसान कहते हैं कि हमें 3 बजे के पहले ही बीएसएफ वापस बुला लेती है और खेती में ज्यादा समय लगता है. हम चाहते हैं समय सीमा कम से कम 2 घंटे और बढ़ाई जाए.
युवाओं का भविष्य संकट में, नहीं है कोई काम
सीमा के पास ही 200 मीटर दूर रोडा वाला गांव है. फिलहाल में कुछ पुलिस की भर्तियां निकली हैं, जिसके लिए कुछ बच्चों ने आवेदन भी दिया है, लेकिन इन युवाओं के लिए भी सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी ही है. अरोड़ा वाला गांव के रहने वाले युवाओं ने बताया कि बेरोजगारी इस बार भी सबसे बड़ा मसला है. कई सारे युवा पढ़े लिखे होने के बावजूद भी बेरोजगार हैं.
अमनदीप जैसे कुछ ऐसे युवा भी हैं, जिन्हें लगता है कि अब नौकरियों के लिए व्यवस्था होने लगी है, क्योंकि पुलिस समेत कई महकमों में भर्तियां निकाली गई हैं. कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में कांग्रेस ने घर-घर रोजगार गारंटी कार्ड भी भिजवाए थे. पांच साल बाद जनता बेरोजगारी कार्ड लेकर खड़ी है. सीमावर्ती किसानों के अपने मसले हैं तो शहरी आबादी अपने मुद्दों के साथ चुनाव में नेताओं का इंतजार कर रही है.