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पंजाब के पटियाला में मनरेगा के तहत काम ना मिलने से ग्रामीणों में आक्रोश है. लिहाजा मंगलवार को भारी संख्या में ग्रामीण कलेक्टर ऑफिस पहुंचे. ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार मनरेगा नियमों के तहत ना तो उन्हें काम दे रही है, ना ही बेरोजगारी भत्ता. सरकार मनरेगा कानून का हवाला देकर काम देने की गारंटी तो देती है, लेकिन धरातल पर काम मिलता नहीं.
130 लोगों में सिर्फ 80 लोगों को मिल रहा 17 दिन काम
पटियाला के नाभा ब्लॉक के बाबरपुर गांव की निवासी अमरजोत कौर के मुताबिक उनके गांव में 130 जॉब कार्ड धारक हैं, जिनमें से सिर्फ 80 लोगों को काम मिल रहा है. वह भी गारंटी के मुताबिक 100 दिन नहीं, बल्कि सिर्फ 17 दिन. अमरजोत कौर ने कहा कि उनके पास रोजगार का दूसरा साधन नहीं है. सिर्फ मनरेगा से मिलने वाली दिहाड़ी से उनका चूल्हा जलता है. अब काम न मिलने की वजह से लोग मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं.
2021 से कोई काम नहीं मिला
नाभा के ही रामगढ़ गांव की रहने वाली कुलविंदर कौर कहती हैं कि उनके गांव में 250 के करीब जॉब कार्ड धारक हैं. इस गांव के लोगों को 2021 में मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिला, जब उन्होंने बेरोजगारी भत्ता देने की मांग की तो सरकारी अफसर टालमटोल करने लगे.
4 साल से कर रहे काम की मांग
नाभा के दुही गांव की कुलवंत कौर की शिकायत है कि उनके गांव के लोग साल 2018 से मनरेगा के तहत काम की मांग कर रहे हैं, उन्होंने सिर्फ 50 दिन का काम मांगा था, लेकिन वह भी सिर्फ आधा मिला. जबकि मनरेगा के तहत साल में 100 दिन काम उपलब्ध करवाने की गारंटी है. नियमों के तहत सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना होता है, लेकिन उनको ना काम मिला और ना ही बेरोजगारी भत्ता. पटियाला के इछेवाल गांव के सुखचैन सिंह भी सरकारी अफसरों पर काम मांगे जाने पर आनाकानी करने का आरोप लगा रहे हैं.
कैसे मिलता है मनरेगा के तहत काम और भत्ता?
मनरेगा नियमों के तहत लाभार्थी को सबसे पहले आवेदन देना पड़ता है, उसके बाद उसका पंजीकरण होता है, उसका जॉब कार्ड बनाया जाता है. जिसका जॉब कार्ड बनता है, वह काम ना मिलने पर बेरोजगारी भत्ते की मांग कर सकता है.
क्या है लाभार्थियों का आरोप?
लाभार्थियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारी अधिकारियों की कोशिश रहती है कि लाभार्थी का पंजीकरण ही ना हो. उसे कभी-कभार बिना पंजीकरण के ही काम दे दिया जाए, ताकि सरकार को बेरोजगारी भत्ता न देना पड़े.
केंद्र सरकार से राज्य को कितना बजट मिलता है?
जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार मनरेगा योजना के तहत राज्य सरकार को हर साल योजना के कुल बजट का 75 फ़ीसदी भाग उपलब्ध करवाती है. बाकी 25 फ़ीसदी खर्चा राज्य सरकार को खुद करना पड़ता है. काम नहीं देने की सूरत में बेरोजगारी भत्ते का खर्चा भी राज्य सरकार को ही उठाना होता है. लेकिन पंजाब देश के उन 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल है, जो बेरोजगारी भत्ता देने के लिए कानून ही नहीं बना सका है.
क्या है पटियाला और संगरूर का हाल?
पटियाला के RTI कार्यकर्ता राजकुमार के मुताबिक पटियाला और संगरूर जिले के दर्जनों गांवों के लाभार्थी पिछले कई सालों से मनरेगा नियमों के मुताबिक काम की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन उन्हें नियमों के मुताबिक ना तो काम मिलता है, ना ही बेरोजगारी भत्ता देने की व्यवस्था है.
वित्त विभाग के पास लटकी फाइल
पंजाब के ग्रामीण विकास विभाग के संयुक्त निदेशक संजीव गर्ग ने काम ना मिलने के आरोपों से इनकार किया. हालांकि उन्होंने कहा कि राज्य में फिलहाल बेरोजगारी भत्ता देने का नियम अस्तित्व में नहीं है. उन्होंने कहा कि नियम तय कर लिए गए हैं, लेकिन फाइल अभी वित्त विभाग के पास लटकी पड़ी है.
क्या है कानून
मनरेगा एक्ट की धारा 7 (1) के तहत राज्य सरकार अगर 15 दिनों के भीतर लाभार्थी को रोजगार नहीं दे पाती है तो उसके एवज में इस कानून की धारा 7(5) के अंतर्गत लाभार्थी को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता है. मनरेगा नियमों के मुताबिक लाभार्थियों को साल में कम से कम 100 दिन रोजगार देना लाजिमी है.
अभी तक नहीं बनाई व्यवस्था
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 5 अप्रैल 2022 को लोकसभा को सूचित किया था कि पंजाब सरकार ने बेरोजगारी भत्ता देने के लिए अभी तक कानून ही नहीं बनाया है.
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