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जीका वायरस से जयपुर में हड़कंप, 29 पॉजिटिव केस की हुई पुष्टि

मंत्रालय के अनुसार जीका वायरस के नियंत्रण और रोकथाम उपायों में राज्य सरकार की मदद के लिए सात सदस्यीय एक उच्चस्तरीय केंद्रीय टीम जयपुर में है.

जयपुर में जीका वायरस के 29 मामले पाए गए (फोटो: पीटीआई) जयपुर में जीका वायरस के 29 मामले पाए गए (फोटो: पीटीआई)
विवेक पाठक/शरत कुमार
  • जयपुर,
  • 09 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 8:45 PM IST

जयपुर में जीका वायरस से पीड़ितों के सामने आने से हड़कंप मच गया है. अकेले शास्त्री नगर इलाके में 29 जीका वायरस पॉजिटिव केस की पुष्टि हुई है. अब तक राजस्थान का चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महकमा जीका से जुड़े आंकड़ों को छुपा रहा था, लेकिन पीएमओ से मांगी गई जानकारी पर विभाग को मीडिया के सामने आकर जानकारी देनी पड़ी.

राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महकमे की एडिशनल चीफ सेक्रेटरी वीनू गुप्ता ने जीका वायरस को लेकर आंकड़े पेश करते हुए बताया है कि जीका को लेकर लगभग 26 हजार घरों का सर्वे कराया जा चुका है, जिसमें 150 से 200 टीमें युद्ध स्तर पर अपने प्रयासों में लगी हुई हैं. अकेले शास्त्री नगर इलाके से 450 संदिग्ध लोगों के सैंपल लिए गए है, जिनमें से 29 पॉजिटिव केस सामने आये हैं. इन 450 संदिग्ध में से 160 गर्भवती महिलाएं थीं, जिन्हें सबसे ज्यादा जीका का खतरा होता है.

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जयपुर स्थित स्वास्थ्य भवन में जीका की जागरुकता को लेकर एक मीडिया सेंसेटाइजेशन कार्यशाला भी रखी गई, जिसमें जीका के आंकड़ों को लेकर जानकरी दी गई. इस ब्रीफिंग में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य वीनू गुप्ता ने ये भी बताया कि शास्त्री नगर क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों में उन्हें लोगों का सहयोग नहीं मिल रहा है. उनका कहना है कि कुछ लोग अपने सैंपल नहीं देना चाहते, तो कुछ लोग मेडिकल की टीम को घर में दाखिल नहीं होने देते.

राजस्थान में विभाग की लापरवाही के चलते इस साल की शुरूआत में पहले स्वाइन फ्लू मौत बनकर उभरा. बीजेपी के एक विधायक की मौत और फिर कई वीआईपी के चपेट में आने के बाद हरकत में आए सिस्टम ने जब घर-घर दस्तक दी, तब जाकर मामला थमा. लेकिन अब चुनाव से ठीक पहले स्वाइन फ्लू के साथ-साथ रेयर डिजीज मानी जाने वाले जीका वायरस की दस्तक ने सबकी चिंता बढ़ा दी है.

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केंद्र सरकार की तरफ से भी अब पीएमओ स्तर पर जीका को लेकर राजस्थान स्वास्थ्य विभाग से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है. अब तक आंकड़ों को छुपाने वाला राजस्थान का स्वास्थ्य विभाग अब सामने आया है और आंकड़े और अपनी तैयारी सामने रखी है.

जीका वायरस को लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रयास: 

-प्रदेश में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देश के अनुसार जीका वायरस की रोकथाम के लिए माइक्रो प्लान बनाकर सभी आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं.

-केंदीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा भेजे गए केंद्रीय दल के साथ रोकथाम के लिए आवश्यक गतिविधियां व प्रचार-प्रसार किए जा रहे हैं.

-जिला प्रशासन, जयपुर नगर निगम और महिला एवं बाल विकास विभाग की मदद से प्रभावित क्षेत्र में आमजन को जीका वायरस से बचाव व रोकथाम के प्रति जागरूक किया जा रहा है.

-प्रभावित क्षेत्रों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के लगभग 170 दल कार्य कर रहे हैं. पॉजिटिव मामलों को क्रास वेरीफाई करने के लिए विषेष दल बनाये गये हैं.

-हीराबाग प्रशिक्षण केंद्र में एक विशेष आईसोलेशन वार्ड बनाया गया है.

-प्रभावित क्षेत्र को 8 जोनों में विभाजित किया गया है. एसडीओ, एसीएम, सीडीपीओ, डॉक्टर, वीबीडी सलाहकार, पीएसएम विभाग के डॉक्टरों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गयी हैं.

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-स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में रुके हुए पानी को हटाने व मच्छरों की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर घर-घर जाकर प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है.

जीका वायरस को लेकर जरूरी जानकारी:

-जीका मच्छर के काटने से फैलता है और व्यस्कों में लकवा या अन्य अक्षमताएं पैदा कर सकता है, यह गर्भ में पल रहे शिशु के दिमागी विकास में भी बाधक बन सकता है.

-जीका वायरस वाला मच्छर सुबह और शाम को ज्यादा सक्रिय होता है यह मच्छर रुके हुए पानी में ही पनपता है. जीका, मच्छर से इंसान में और मां से गर्भस्थ शिशु में फैल सकता है.

-जीका रोग के लक्षण मच्छर के काटने से 2 से 7 दिन के पश्चात या जीका प्रभावित व्यक्ति से असुरक्षित यौन संबंध के बाद प्रकट हो सकते हैं.

-आंखें आना, शरीर पर दाने होना, बुखार होना, बदन दर्द होना और जोड़ों में दर्द होना इसके सामान्य लक्षण हैं.

-यह बीमारी जीका वायरस संक्रमित एडीज मच्छर के काटने से होती है. इस बीमारी में सबसे बड़ा खतरा गर्भवती महिलाओं को होता है, गर्भ ठहरने के दो-तीन माह के भीतर अगर महिला जीका की चपेट में आ जाए तो शिशु के सिर का अपूर्ण विकास होता है.

-इस बीमारी पर यदि समय रहते अंकुश नहीं पाया गया तो यह हमारी पीढियों को बिगाडने वाली साबित हो सकती है. पीडित को न्यूरोलॉजिकल और आर्गन फेलियर तक की नौबत आ सकती है. 

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