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राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल बना अजमेर उपचुनाव

अजमेर लोकसभा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस ने कमर कस के उतर चुकी है. अजमेर की सियासी रण में कांग्रेस ने पूर्व विधायक रघु शर्मा को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं बीजेपी ने रामस्वरुप लांबा को टिकट दिया है. लांबा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवरलाल जाट के बेटे हैं

राजस्थान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलेट और रघु शर्मा राजस्थान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलेट और रघु शर्मा
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 12 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:56 AM IST

राजस्थान के दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव ने सियासी तापमान गर्म कर दिया है. अजमेर और अलवर लोकसभा सीट के साथ-साथ मांणलगढ़ विधानसभा सीट पर 29 जनवरी को उपचुनाव हैं. बीजेपी नेता सांवरलाल जाट के निधन के चलते अजमेर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. राज्य के विधानसभा चुनाव से पहले उपचुनाव को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में हार जीत के नतीजे दोनों दलों के लिए सियासी नजरिए से काफी अहम माने जा रहे हैं. अमजेर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों की साख दांव पर लगी है.

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अजमेर लोकसभा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस पूरी ताकत के साथ उतर रही हैं. अजमेर के सियासी रण में कांग्रेस ने पूर्व विधायक रघु शर्मा को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं बीजेपी ने रामस्वरुप लांबा को टिकट दिया है. लांबा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवरलाल जाट के बेटे हैं. बता दें कि 2014 लोकसभा में अजमेर से सांवरलाल ही बीजेपी के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे थे. उनके आकस्मिक निधन के बाद अब पार्टी ने उपचुनाव में उनके ही बेटे को मैदान में उतारा है.

सियासी समीकरण

अजमेर लोकसभा सीट का सियासी इतिहास काफी दिलचस्प है. आजादी के बाद हुए पहले चुनाव के समय अजमेर उत्तर और दक्षिण दो सीट थी, इसके बाद 1957 में हुए चुनाव में एक सीट कर दी गई. अब तक के अजमेर सीट पर हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 बार जीत दर्ज की है. वहीं एक बार जनता पार्टी और 6 बार बीजेपी ने दर्ज की है.  2014 के लोकसभा चुनाव के समय करीब 17 लाख वोटर थे, जो उपचुनाव में बढ़कर करीब 18 लाख हो गए हैं. 2014 में 11 लाख 56 हजार 314 वोट पड़े थे, जिसमें पायलट को 1 लाख 72 वोट से हार का सामना करना पड़ा था.

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अजमेर का जातीय गणित

अजमेर लोकसभा सीट का जातीय गणित को देखें दलित और आदिवासी बाहुल्य सीट मानी जाती है, लेकिन जाट और गुर्जर का सियासी दबदबा रहा है. अजमेर लोकसभा सीट पर एससी और एसटी मिलाकर 3.85 लाख मतदाता हैं, 2.10 लाख जाट हैं, 2 लाख गूजर, 1.50 लाख रावत, 2.60 लाख मुस्लिम, 1 लाख राजपूत, एक लाख ब्राह्मण, 1.45 लाख वैश्य और अन्य हैं. बीजेपी जहां जाट, वैश्य, रावत मतों के सहारे हैं, तो वहीं कांग्रेस ब्राह्मण, मुस्लिम, गुजर और दलित-आदिवासी मतों का भरोसा है.

BJP की साख दांव पर

अजमेर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी साख दांव पर है. सीएम वसुधंरा राजे अजमेर सीट जीतने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है. बीजेपी बाखूबी समझती है कि अजमेर में पार्टी की हार होती है, तो आने वाले विधानसभा चुनाव में उसकी मुश्किलें और भी बढ़ जाएगी. बीजेपी अजेमर सीट से किसी तरह को ऐसा संदेश नहीं देना चाहती है कि राज्य में बीजेपी की स्थिति किसी भी सूरत में कमजोर है.

बीजेपी ने इसी के मद्देनजर बीजेपी ने सांवरलाल जाट के बेटे रामस्वरुप लांबा को उतारा है, ताकि पार्टी के भवनात्मक लाभ मिल सके. बीजेपी इस सीट से जीतकर राज्य की हवा को भगवामय करना चाहती है. इतना ही वसुंधरा राजे इस सीट को जीतकर दूसरा कोई विकल्प नहीं खड़े होने देना चाहती हैं.

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अजमेर कांग्रेस के लिए सेमीफाइनल

राजस्थान में सत्ता की वापसी की राह देख रही कांग्रेस के लिए अजमेर उपचुनाव सेमीफाइनल के तौर पर है. इतना ही नहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलेट की साख भी दांव पर लगी है, क्योंकि वो खुद इस सीट से सांसद रह चुके हैं. ऐसे में 2014 का हिसाब भी बराबर करने की चुनौती है.

पायलेट ने खुद न उतरकर ब्राह्मण चेहरा रघु शर्मा पर दांव लगाया है. उनकी पूरी कोशिश है कि इस अजमेर उपचुनाव पर जीत दर्ज करने की. कांग्रेस इस सीट पर जीत दर्ज करके आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के खिलाफ माहौल बना सके.

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