चंबल के बीहड़ में किसान कर रहा पपीते की बागवानी, आधे एकड़ से हर साल ढाई लाख की कमाई

कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. हिम्मत और जोश की कुछ ऐसी ही कहानी राजस्थान के धौलपुर जिले में चंबल नदी के किनारे बसे एक गांव से सामने आई है. जहां एक किसान ने पारंपरिक खेती छोड़ कुछ नया करने का सोचा और आज अच्छी-खासी आमदनी हो रही है.

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चंबल के बीहड़ में पपीते की बागवानी चंबल के बीहड़ में पपीते की बागवानी
उमेश मिश्रा
  • धौलपुर,
  • 25 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST
  • आधा एकड़ में शुरू की पपीते की बागवानी
  • पारंपरिक खेती छोड़कर उठाया नया कदम 
  • 255 पौधे लगाकर किसान ने की थी शुरुआत  

राजस्थान में धौलपुर जिले के राजाखेड़ा उपखंड के चंबल तटवर्ती गांव गढ़ी टडावली में रहने वाले एक किसान ने खेती का वो तरीका अपनाया, जिससे वह अब साल ढाई लाख रुपये कमाता है. किसान लक्ष्मीकांत तिवारी को पारंपरिक खेती में लगातार घाटा हो रहा था. जिसके बाद पारंपरिक खेती को छोड़ बागवानी की तरफ अपना रुख किया. लक्ष्मीकांत ने करीब आधा एकड़ जमीन में पपीते की बागवानी की और आज किसान लक्ष्मीकांत पपीते की बागवानी से करीब ढाई लाख रुपये सालाना कमा रहा है.

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धौलपुर जिले से होकर गुजर रही चंबल नदी से लगने वाला ज्यादातर इलाका बागी, बंदूक और बजरी के लिए कुख्यात रहा है, लेकिन उसी इलाके के किसान लक्ष्मीकांत तिवारी ने पारंपरिक खेती में लगातार हुए नुकसान और कर्ज की वजह से बागवानी की तरफ रुख कर लिया. लक्ष्मीकांत ने अपनी करीब आधा एकड़ जमीन में कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से पपीते की बागवानी की, जिसके बाद वह आज अपने पपीते के इस बाग से हर साल करीब ढाई लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं.

किसान लक्ष्मीकांत ने बताया कि उन्होंने अपनी पढ़ाई बारहवीं तक बायोलॉजी विषय के साथ की और फिर आईटीआई की ट्रेनिंग ली. आईटीआई करने के बाद लक्ष्मीकांत ने जयपुर स्थित एक प्राइवेट कंपनी में करीब एक साल तक नौकरी की. जिसके बाद पारिवारिक कारणों से उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. गांव में आने के बाद रोजगार के साधनों के अभाव में गांव के अन्य लोगों की तरह उन्होंने भी पारंपरिक खेती की, लेकिन अधिक लागत और कम मुनाफे की वजह से लगातार कर्ज के बोझ में दबते गए. जिसके बाद उन्होंने बागवानी करने की ठानी और धौलपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों से संपर्क किया.

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एक-एक पौधे से मिलते हैं 80 किलो तक पपीते
धौलपुर कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर उन्होंने अधिकारियों को अपनी जमीन पर पपीते की बागवानी करने की इच्छा जताई. लक्ष्मीकांत के इस फैसले और लगन को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने भी उनका भरपूर सहयोग दिया. कृषि विज्ञान केंद्र ने उन्हें पपीते की उन्नत किस्म 'ताइवान रेड लेडी 786' रोपने का सुझाव दिया. इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र ने उन्हें करीब 20 रुपये प्रति पौधे की दर से 255 पौधे उपलब्ध कराए. किसान लक्ष्मीकांत ने इन पौधों को अपनी करीब आधा एकड़ जमीन में रोपकर पपीते की बागवानी की शुरुआत की. आज एक पौधे से करीब 80 किलोग्राम से लेकर एक क्विंटल तक फल प्राप्त कर रहे हैं.

अच्छे फल के लिए चाहिए होता है इतना तापमान
किसान लक्ष्मीकांत ने बताया कि 'ताइवान रेड लेडी 786' किस्म का पौधा करीब दो फीट की लंबाई से ही फल देना प्रारंभ कर देता है. वहीं पौधे के अच्छे फल प्रस्फुटन के लिए मिनिमम 10 डिग्री से अधिकतम 30 डिग्री तापमान होना बेहद जरूरी है. सिंचाई के लिए उन्होंने पारंपरिक नलकूप पद्धति को छोड़ बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति (ड्रिप इरिगेशन) को अपनाया है.

किसान के मुताबिक फरवरी से मार्च के बीच में पपीते के पौधों पर फल का पकाव शुरू हो जाता है. स्थानीय स्तर पर फलों की कोई मंडी और खरीदार ना होने के कारण वह शुरुआत में सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की मंडी में फलों की सप्लाई करते थे, लेकिन आज दूर-दूर से लोग वहां आकर उनके फलों को खेत से ही उचित भाव में ले जाते हैं.

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पपीते के बाद अब ये है लक्ष्मीकांत की प्लानिंग
25 फरवरी 2021 को श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर, जयपुर में आयोजित किसान मेला कार्यक्रम में लक्ष्मीकांत को उनके इस नवाचार के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति और पुलिस महानिदेशक बीएल सोनी द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है. किसान लक्ष्मीकांत ने बताया कि ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती करने में ही विश्वास रखते हैं, लेकिन आज पारंपरिक खेती में अधिक लागत और कम मुनाफे की वजह से उनकी आय में कोई वृद्धि नहीं हो रही है. लक्ष्मीकांत ने बताया कि अपने द्वारा किए गए इस नवाचार की जानकारी वह समय-समय पर अन्य किसानों को भी कराते रहते हैं. पपीते की बागवानी के बाद लक्ष्मीकांत अब आगे अमरूद, नींबू और किन्नू की खेती में भी हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं.

बता दें कि चंबल किनारे बसा गांव गढ़ी टड़ावली करीब डेढ़ दशक पहले चंबल के कुख्यात डाकू जगजीवन परिहार के कारण पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया था. उस कुख्यात डाकू जगजीवन परिहार ने इसी गांव के एक समुदाय विशेष के आठ लोगों का अपहरण कर लिया था, लेकिन आज किसान लक्ष्मीकांत के इस नवाचार की चर्चा होती है. किसान के पपीते के बाग को देखने के लिए आस-पास और दूर-दराज के क्षेत्रों से किसान आते हैं और जरूरी जानकारियां लेकर जाते हैं.

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