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गहलोत-पायलट खेमे में संघर्ष से सामने आई राजस्थान कांग्रेस की गुटबाजी

राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने निकाय चुनाव को लेकर अशोक गहलोत के फैसले पर हमला बोला तो पार्टी के कई नेताओं ने गहलोत या पायलट की तरफ से कमान संभाल ली.

अशोक गहलोत और सचिन पायलट (फाइल फोटो-ट्विटर) अशोक गहलोत और सचिन पायलट (फाइल फोटो-ट्विटर)
देव अंकुर
  • जयपुर,
  • 24 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 6:56 AM IST

  • पार्टी के कई नेताओं ने विभिन्न मुद्दों पर खुलकर पक्षों का किया समर्थन
  • पायलट ने निकाय चुनाव को लेकर गहलोत के फैसले पर बोला हमला

राजस्थान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच खेमेबंदी अब सतह पर आ गई है. इसके चलते देश की सबसे पुरानी पार्टी स्पष्ट तौर पर दो धड़ों में बंटी हुई दिख रही है. पार्टी के कई नेताओं ने अब विभिन्न मुद्दों पर खुलकर किसी न किसी खेमे का पक्ष लेना शुरू कर दिया है. इसके चलते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के ​खेमे की लड़ाई पहले की तुलना में और ज्यादा स्पष्ट हो गई है.

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क्या है पूरा मामला?

यहां त​क कि राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने निकाय चुनाव को लेकर अशोक गहलोत के फैसले पर हमला बोला तो पार्टी के कई नेताओं ने गहलोत या पायलट की तरफ से कमान संभाल ली. पायलट का आरोप है कि गहलोत ने बिना कांग्रेस पार्टी को विश्वास में लिए नियम बनाया है कि पार्षद का चुनाव नहीं लड़ने वाला व्यक्ति भी मेयर और स्थानीय निकाय का प्रमुख बन सकता है. इस खुली खेमेबंदी से दोनों नेताओं के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं.

 राजस्थान सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने इस मुद्दे पर कहा, 'यह गवर्नेंस का मसला है. मैं सरकार का हिस्सा हूं और मैं पार्टी का अध्यक्ष भी हूं. यह किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि सिद्धांत का सवाल है. सिद्धांत यह है कि लोकतंत्र को पारदर्शी होने की जरूरत है और पार्टी इस सिद्धांत के साथ खड़ी है. इसलिए मैं नहीं मानता कि यह 'क' बनाम 'ख' का मामला है.'

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आगे उन्होंने कहा, 'यह मामला उस विश्वास का है जिसे मैं सच मानता हूं और यह जरूरी है. यही राज्य के लिए और हमारे लोगों के लिए सही है, इसलिए मैंने अपना मत प्रकट किया है. दरअसल, मामले पर कभी चर्चा नहीं की गई. जबसे सरकार बनी है, पिछले 10 महीने में हमने तीन कैबिनेट मीटिंग की हैं, पिछली मीटिंग में इस अप्रत्यक्ष चर्चा हुई थी, लेकिन यह फैसला विभाग ने कैबिनेट की जानकारी के बिना ले लिया.'

गहलोत को मिला करीबी ​मंत्रियों का समर्थन

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले कई ​मंत्रियों ने इस फैसले का खुलकर समर्थन किया कि जिस तरह निकाय चुनाव कराये जा रहे हैं, वह सही है. मुख्यमंत्री गहलोत के करीबी मंत्री शांति धारीवाल को नगर निकाय चुनावों के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव कराने का काम सौंपा गया है. राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी सरकार के इस फैसले का समर्थन किया.

कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा, 'हमने पहले ​निकाय चुनावों में प्रत्यक्ष चुनाव कराने का फैसला किया था. हालांकि, इस फैसले में बदलाव किया गया क्योंकि स्थानीय निकाय चुनावों में पार्षदों को सशक्त बनाने की जरूरत है.'

उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने खुलकर इस फैसले से असहमति जताई तो कई पार्टी नेता, यहां तक कि मंत्रियों ने भी उनका समर्थन किया. मंत्री  रमेश मीणा और जयपुर की पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल ने पायलट का समर्थन किया.

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सचिन पायलट ने उठाए सवाल

सचिन पायलट से जब उनके और राजस्थान के मुख्यमंत्री के बीच कथित दरार के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर एक विरोधाभासी रुख अपनाया है क्योंकि यह व्यक्तियों का नहीं, बल्कि  सिद्धांतों का मामला है.

जयपुर की पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल ने कहा कि प्रत्यक्ष चुनाव कराना बेहतर है, क्योंकि प्रत्यक्ष चुनाव के जरिये जनप्रतिधि ज्यादा जवाबदेह होते हैं और उनमें ज्यादा आत्मविश्वास भी आता है.

पायलट भले ही अपने नजरिये को सिद्धांतों का मामला बता रहे हों, लेकिन कई नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के भीतर चल रही इस अंदरूनी कलह ने विपक्ष को सरकार और कांग्रेस की छवि पर कीचड़ उछालने का मौका दे दिया है. इस अंदरूनी कलह के चलते राजस्थान कांग्रेस की छवि भी धूमिल हो रही है.

राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पुनिया ने इस मसले पर कहा, 'कांग्रेस के भीतर चल रही कलह से राजस्थान के लोगों का हित प्रभावित हो रहा है. कांग्रेस ने निकायों चुनाव में मेयर पद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव कराने के अपने शुरुआती रुख से पीछे हट रही है.'

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