
राजस्थान में गुर्जर आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है. गुर्जर समाज के लोग अपनी मांगों को लेकर घरों से बाहर आ गए हैं. रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर दिया गया है. जिससे कई ट्रेनों के रूट बदल दिए गए हैं. रेलवे ट्रैक की ये तस्वीर ठीक वैसी ही है जैसी 2008 में नजर आई थी. उस वक्त गुर्जर आंदोलन के दौरान काफी हिंसा हुई थी और कई लोग मारे गए थे. उसके बाद से कई बार गुर्जर आरक्षण का मुद्दा गरमा चुका है, लेकिन अब तक इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर गुर्जर आरक्षण का मुद्दा सुलझ क्यों नहीं पा रहा है. ऐसा तब है जबकि राजस्थान सरकार की तरफ से कई बार फैसले किए जा चुके हैं. हाल ही में बीते 31 अक्टूबर को गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति और अशोक गहलोत सरकार के बीच 14 बिंदुओं पर सहमति बनी है. हालांकि, संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला इस वार्ता में शामिल नहीं हुए थे. वार्ता में गुर्जर नेता हिम्मत सिंह के गुट के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. इस बैठक में गुर्जरों के लिए राज्य सरकार ने लिए बड़े निर्णय किए हैं.
सरकार से बनी इन मांगों पर सहमति
सरकार गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5% आरक्षण देने पर राजी हो गई है. प्रक्रियाधीन भर्तियों में गुर्जरों को ये आरक्षण दिया जाएगा. आंदोलन में मारे गए 3 परिवारों को सरकारी नौकरी देने की बात कही गई है. साथ ही एम.बी.सी. वर्ग के 1252 अभ्यर्थियों को नियमित वेतन श्रृंखला से लाभ देने की बात कही गई है. इसके अलावा पिछले गुर्जर आंदोलन में जिन लोगों पर केस लगे थे, वो वापस लेने को कहा गया है. देवनारायण योजना में निर्माणाधीन 5 आवासीय विद्यालयों की कमेटी गठित की जाएगी और लबाना जाति के अलावा अन्य लोगों के लबाना जाति के जारी जाति प्रमाण-पत्रों की जांच की जाएगी.
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14 बिंदुओं पर जो सहमति बनी है उसमें एक अहम बात ये भी है कि सरकार ने आरक्षण से संबंधित प्रावधान को नौवीं सूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की बात कही है. समझौते में कहा गया है, ''राज्य सरकार द्वारा अति पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षण से संबंधित प्रावधान को नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पूर्व में भारत सरकार को 22 फरवरी 2019 और 21 अक्टूबर 2020 को लिखा गया है. इस बारे में एक बार फिर केंद्र सरकार को लिखा जाएगा.''
केंद्र और राज्य सरकार का मामला
दरअसल, गुर्जरों की नाराजगी के पीछे असली वजह भी यही बताई जा रही है. गुर्जर बैकलॉग में 5 फीसदी विशेष आरक्षण की मांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जिस तरह से मराठा आरक्षण पर हाई कोर्ट का हथौड़ा चला है उसे देखते हुए केंद्र सरकार से गुर्जर आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग की जा रही है.
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला गुट का विरोध भी इन्हीं बातों को लेकर है. विजय बैंसला ने कहा है कि समझौते में कोई भी चीज की नहीं गई है बल्कि 'कर देंगे' कहकर की गई है, जो काफी वक्त से की जा रही है. विजय बैंसला ने कहा कि बैकलॉग के ऊपर कोई बात ही नहीं हुई. ये ऐसा है जैसे हम एक दिन बहुत बड़े बनेंगे, कैसे बनेंगे, कब बनेंगे इसका कोई जिक्र नहीं है. विजय बैंसला ने समझौते को सौदा बताया.
दूसरी तरफ विशेषज्ञ भी गुर्जर आरक्षण के मुद्दे को केंद्र से जोड़कर ही देख रहे हैं. राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा ने बताया है कि ये विरोध प्रदर्शन रणनीति के तहत कराया गया है क्योंकि नौवीं सूची में शामिल करने की जो मांग है वो केंद्र सरकार को पूरी करनी है. ऐसे में केंद्र सरकार अगर गुर्जरों के लिए फैसला करेगी तो फिर मराठा समेत अन्य जातियों के आरक्षण का मुद्दा भी गरमा जाएगा. इसके अलावा श्याम सुंदर शर्मा इस लड़ाई को अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खाई के तौर भी देख रहे हैं. सचिन पायलट एक गुर्जर नेता हैं और पायलट की नाराजगी गहलोत से स्पष्ट है. ऐसे में राजस्थान के मंत्री अशोक चांदना के जरिए गहलोत हालात को साधने की कोशिश कर रहे हैं.
बता दें कि अशोक चांदना खुद एक गुर्जर नेता हैं और अशोक गहलोत गुट के हैं. अशोक चांदना ही लगातार इस मामले में सरकार की तरफ से सामने आ रहे हैं. उनका कहना है कि गुर्जर नेताओं की ज्यादातर मांगे मान ली गई हैं और बाकी मांगों पर विचार किया जा रहा है. ऐसे में वार्ता के बजाय आंदोलन का रास्ता ठीक नहीं है.