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राजस्थान में BJP को झटका, जसवंत सिंह के बेटे थाम सकते हैं कांग्रेस का हाथ

बीजेपी के दिग्गज नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह अब पार्टी को अलविदा कहकर नई राजनीतिक राह बना सकते हैं. माना जा रहा है कि 22 सितंबर को होने वाली स्वाभिमान रैली में कांग्रेस में शामिल होने की चर्चाओं पर मुहर लग सकती है.

बीजेपी विधायक मानवेंद्र सिंह बीजेपी विधायक मानवेंद्र सिंह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:24 AM IST

राजस्थान विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बीजेपी के संस्थापक सदस्य और अटल सरकार में रक्षामंत्री रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. मानवेंद्र बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक हैं.

मानवेंद्र सिंह ने अपने करीबी और समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल होने को लेकर चर्चा करना शुरू कर दिया है. इन दिनों वे बाड़मेर एवं जैसलमेर जिलों के दौरे कर अपने समर्थकों से राय मशविरा कर रहे हैं.

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मानवेंद्र के भविष्य की राजनीति का फैसला 22 सितंबर को

मानवेंद्र सिंह बाड़मेर के पचपदरा में 22 सितंबर को 'स्वाभिमान रैली' कर रहे हैं. इसमें उनके समर्थक और राजपूत समुदाय के लोग बड़ी तादाद में शामिल हो सकते हैं. ये रैली ही उनके भविष्य की राजनीति राह तय करेगी.

मानवेंद्र सिंह ने आजतक से बातचीत में कहा कि मुझे भविष्य की राजनीति कैसे करनी है, यह फैसला 22 सितंबर को पचपदरा में वाली स्वाभिमान रैली में होगा. इस रैली में वे सभी लोग मौजूद रहेंगे, जिन्होंने मेरे पिता के आखिरी चुनाव में साथ दिया था. इसमें मेरे सभी साथी भी मौजूद होंगे.

मानवेंद्र ने कहा कि इस रैली में सभी स्वाभिमानी लोग शामिल होंगे,चाहे वे किसी भी समाज से हों. ये लोग जो निर्णय लेंगे उसी का हम पालन करेंगे. ये लोकतांत्रिक फैसला होगा. 

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करीबी रखेंगे कांग्रेस में शामिल होने की बात

सूत्रों की मानें तो इस रैली की स्क्रिप्ट बकायदा लिखी जा चुकी है. मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय खुद से लेने के बजाय अपने समर्थकों के जरिए बात रखवाना चाहेंगे. इसके बाद रैली में शामिल बाकी लोगों के मूड को समझेंगे. अगर लोग एक सुर में इस फैसले का स्वागत करते हैं तो इसके बाद वे हामी भरेंगे.

वसुंधरा-जसवंत के संबंध में आई खटास

बता दें कि जसवंत सिंह और सीएम वसुंधरा राजे के बीच पहले काफी अच्छे संबंध थे, लेकिन पिछले सात-आठ साल में दोनों के बीच दूरी पैदा हो गई. इसी का नतीजा था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बाड़मेर से जसंवत सिंह को टिकट देने के बजाय कर्नल सोनाराम चौधरी को मैदान में उतारा था. जसवंत के टिकट कटने के पीछे वसुंधरा राजे को मुख्य कारण माना गया था.

बीजेपी से टिकट न मिलने के बाद जसवंत सिंह निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़े थे. मोदी लहर के बावजूद जसवंत सिंह 4 लाख से ज्यादा वोट पाने में कामयाब रहे थे. मानवेंद्र ने इस चुनाव में अपने पिता के खिलाफ और बीजेपी प्रत्याशी सोनाराम चौधरी के पक्ष में प्रचार करने से मना कर दिया था.

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इसी का नतीजा था कि मानवेंद्र को चुनाव के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर करने के साथ-साथ पार्टी से निकाल दिया गया था. हालांकि, मानवेंद्र को पार्टी से निकाले जाने के फरमान का लेटर नहीं दिया गया. इसी का नतीजा है कि वे बीजेपी के सदस्य बने हुए हैं.

वसुंधरा की गौरव यात्रा से दूर

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इन दिनों प्रदेश में गौरव यात्रा पर हैं. वसुंधरा राजे ने गौरव यात्रा के दौरान कई पार्टी नेताओं के नाम लिए लेकिन जसवंत सिंह का जिक्र नहीं किया. वहीं, मानवेंद्र सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र शिव में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा कराने से इंकार कर दिया. जोधपुर संभाग में यात्रा के पहले चरण से मानवेंद्र ने पूरी तरह से दूरी बनाए रखी है. इससे उनकी नाराजगी को समझा जा सकता है.

 जसंवत सिंह का सफर

जसवंत सिंह ने 1960 के दशक के आखिरी सालों में सेना की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा था. बीजेपी के कद्दावर नेता रहे भैरोसिंह शेखावत उन्हें राजनीति में लाए थे. जसंवत सिंह बीजेपी के संस्थापक सदस्य हैं. जसवंत सिंह अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी माने जाते थे. वे 4 बार लोकसभा और 5 बार राज्यसभा सांसद रहे.

जयवंत सिंह अटल की 13 दिन की सरकार में वित्तमंत्री बने. 2 साल बाद जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्हें विदेश मंत्रालय का जिम्मा मिला. 2004 में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाली.

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