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राजस्थान में सात दिसंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं और राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सत्ता दांव पर है. प्रदेश की 200 सीटों पर कई उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें कई महिलाएं भी शामिल है. प्रदेश में 2294 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन इनमें 189 महिलाएं हैं. वहीं राजस्थान के 2013 के चुनाव में 166 महिला प्रत्याशियों में से 28 ने जीत हासिल की थी.
इस बार बीजेपी ने 23 महिलाओं को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने 27 महिलाओं को मैदान में उतारा है. वहीं बीएसपी ने सिर्फ 15 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं, जबकि निर्दलीय और अन्य दलों की मिलाकर 124 महिलाएं मैदान में हैं. राजस्थान की सियासत में महिलाओं का भी खास योगदान रहा है और यह प्रदेश में हुए पहले चुनाव से ही है. आजादी के बाद बनी पहली सरकार में भी महिला विधायक शामिल थीं.
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बात साल 1952 के विधानसभा चुनाव की है, जो देश की आजादी के बाद पहली बार विधानसभा हुआ था और इसमें राज्य की किसी महिला उम्मीदवार ने जीत नहीं दर्ज कर सकी थी. इस चुनाव में चार महिलाओं ने दावेदारी प्रस्तुत की थी, जिसमें फागी से केएलपी पार्टी की चिरंजी देवी, जयपुरशहर से समाजवादी पार्टी की वीरेन्द्रा बाई, उदयपुर शहर से शांता देवी (निर्दलीय) और सोजत मेन से जनसंघ की रानीदेवी शामिल है. हालांकि इन चारों महिलाओं में किसी ने भी जीत दर्ज नहीं की.
उसके बाद बांसवाड़ा की सीट पर चुनाव अवैध घोषित कर दिया गया और दोबारा चुनाव करवाने का फैसला किया गया. यहां साल 1953 में हुए उपचुनाव में पीएसपी से यशोदा देवी ने दावेदारी प्रस्तुत की और बांसवाड़ा से जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस के नटवरलाल को हराकर यह गौरवहासिल किया था. उनके खाते में 14 हजार 862 वोट पड़े थे, जबकि कांग्रेस को आठ हजार 451 वोट मिले थे. यशोदा ने छह हजार 411 वोटों से जीत दर्ज की थी.
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बता दें कि यशोदा देवी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के नागदा में हुआ था. रिपोर्ट्स के अनुसार, यशोदा देवी की शिक्षा वनस्थली विद्यापीठ तथा भील आश्रम बामनिया में हुई. उसके बाद भी उन्होंने दो चुनाव और जीते और वो कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी रहीं. उनका3 जनवरी 2004 को निधन हो गया.