
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर अंधविश्वास से परेशान हैं. यहां पर इलाज के दौरान अस्पतालों में जिन मरीजों की मौत होती है. उनके परिजन सालों बाद भी यहां आते हैं और बेड के नीचे ज्योति जलाते हैं. उनकी मान्यता है कि ऐसा कर वो अपने मृतक रिश्तेदार की आत्मा ले जाते हैं. यह मामला कुछ मिनटों का नहीं होता है बल्कि इस प्रक्रिया में कई घंटे लगते हैं.
हाथीसर गांव के लोग पहले स्वास्थ्य केन्द्र के वार्ड में घुसते हैं. उसके बाद वे वार्ड में उस पलंग को तलाशते हैं जहां पर परिजन की मौत हुई थी. वहां से वे आत्मा की ज्योति लेकर अस्पताल परिसर में घंटे भर पूजा करते हैं. इस दौरान महिलाएं भोपों (तांत्रिक टाइप के लोग) के सामने सिर हिलाती रहती हैं. गांव वालों का दावा है कि इस दौरान उनके शरीर में मृत आत्मा प्रवेश करता है और वे उनसे बात करते हैं. यानी कि घंटों तक वार्ड के अंदर अंधविश्वास का सिलसिला चलता रहता है.
एक इसी तरह के मामले में मृतक के भाई ने कहा कि हम यहां से हाथीसर गांव के पास आत्मा ज्योत ले जा रहे हैं. मेरे भाई की इस अस्पताल में मौत हो गयी थी. भोपा जी ने ज्योत लाने के लिए कहा है. यहां से ज्योत ले जाकर मूर्ति बनाकर खेत पर प्रतिष्ठा करेंगे. मृतक के परिजनों से इस संबंध में जब अधिक जानकारी मांगी गई तो उसने कहा कि आपका इन सबसे वास्ता नहीं पड़ा है क्या?
अंधविश्वास के चलते मृत व्यक्तियों की आत्मा की ज्योत ले जाने की इन घटनाओं पर प्रभावी ढंग से रोक लगाने में चिकित्सा प्रशासन असफल रहा है. भीलवाड़ा जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मुस्ताक खान कहते हैं कि दुर्घटनाओं में और उपचार के दौरान अस्पतालों में मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा की ज्योत ले जायी जाती है. यह एक सामाजिक कुरुति है लोगों में जागरूकता का अभाव है.
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उन्होंने आगे बताया कि इस क्षेत्र में यह धारणा है कि लोग आत्मा की ज्योत ले जाकर खेत पर मूर्ति लगाते हैं. हम लोग अपने लेवल पर लोगों को समझाने का प्रयास करते हैं. कई बार तो अस्पताल परिसर में यह लोग जबरन घुस जाते हैं और कई बार ये लोग झगड़े पर भी उतर जाते हैं. क्योंकि इनके दिमाग में यह अंधविश्वास जमा हुआ है. कई बार इन्हें रोकने पर कानून व्यवस्था की स्थिती भी बिगड़ जाती है. मैं सोचता हूं कि इन पर कार्रवाई होनी चाहिए.
जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है जनजागरण कर अंधविश्वास खत्म करने की, वो ही इन अंधविश्वासों के आगे लाचार नजर आते हैं. तो फिर भोले-भाले ग्रामीण गांवों में भोपों द्वारा ठगे जाने से आखिर कैसे बचेंगे.