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एक राष्ट्र-एक चुनाव से पलटे CM अशोक गहलोत, अब आचार संहिता पर EC को पत्र

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले से ही देशभर में एक साथ चुनाव कराने के आइडिया पर विचार करने की मांग करते रहे हैं. लेकिन जब से कांग्रेस ने अपना स्टैंड इसके खिलाफ किया है, तब से अशोक गहलोत चुनाव आयोग से इसे दूसरे तरीके से कह रहे हैं.

राजस्थान के CM अशोक गहलोत ने आचार संहिता पर EC को लिखा पत्र राजस्थान के CM अशोक गहलोत ने आचार संहिता पर EC को लिखा पत्र
शरत कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2019,
  • अपडेटेड 7:53 PM IST

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले से ही देशभर में एक साथ चुनाव कराने के आइडिया पर विचार करने की मांग करते रहे हैं. लेकिन जब से कांग्रेस ने अपना स्टैंड इसके खिलाफ किया है, तब से अशोक गहलोत चुनाव आयोग से इसे दूसरे तरीके से कह रहे हैं.

बार-बार लगने वाली आचार संहिता से परेशान होकर पिछली बार अशोक गहलोत ने चुनाव आयोग से कुछ चुनाव एक साथ कराने का आग्रह किया था. लेकिन उन्होंने अब नया पत्र लिखा है जिसमें चुनाव आयोग के दौरान आचार संहिता में छूट देने की बात कही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भारत के निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर आदर्श आचार संहिता की समीक्षा की मांग की है.

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अशोक गहलोत ने पत्र में क्या लिखा

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को लिखे इस पत्र में अशोक गहलोत ने लिखा है कि आदर्श आचार संहिता की अवधि न्यूनतम हो और इसके विभिन्न प्रावधानों की समीक्षा किए जाए. पत्र में बताया गया है कि लंबे समय तक आचार संहिता लागू रहने के कारण राज्यों को संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है और नीतिगत अपंगता की स्थिति बन जाती है.

गहलोत ने हवाला दिया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान देशभर में 78 दिनों तक आचार संहिता प्रभावी रहने से गवर्नेंस का कार्य पूरी तरह ठप रहा और इसकी वजह से आम लोगों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा. गहलोत ने पत्र में इस बात का भी हवाला दिया है कि आचार संहिता के पालन को लेकर आयोग के अंदर मतभेदों ने इस संवैधानिक संस्था की साख को आघात पहुंचाया है.

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अशोक गहलोत ने पत्र में सुझाव दिया है कि आचार संहिता के दौरान मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को अधिकारियों से सीधे फीडबैक लेने और कानून व्यवस्था और जनहित के कार्यों की मॉनिटरिंग की मनाही होती है. इसके चलते आवश्यक निर्णय नहीं लिए जाते. लोकसभा में चुनाव आमतौर पर गर्मी में होते हैं, इस दौरान राजस्थान जैसे मरुस्थलीय प्रदेश में जल प्रबंधन को लेकर विभिन्न समस्या होती हैं.

गर्मी के मौसम में बिजली जैसी अति आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता और सुधार कार्य भी प्रभावित होता है. आचार संहिता के दौरान ऐसे प्रतिबंध नहीं होने चाहिए. इसके अलावा रोजमर्रा के कार्यों पर आचार संहिता लागू नहीं होनी चाहिए. आवश्यक बैठकों की मनाही भी आचार संहिता में होती है, इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है इस पर लगी रोक हटनी चाहिए.

जहां मतदान हो जाए वहां मतगणना तक आचार संहिता तार्किक नहीं होती. लिहाजा इस संबंध में विचार किया जाए. राजकीय विश्राम स्थलों पर ठहरने के लिए भी अवसर दिए जाने चाहिए. दरअसल, विधानसभा चुनाव में जीत के बाद सरकार चुनाव आचार संहिता की वजह से फैसले नहीं ले पाए और कांग्रेस सरकार अपनी हार की एक वजह इसे भी मानती है.

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