
राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन तब मुख्यमंत्री पद की रेस से शुरू हुआ अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का मनमुटाव कम होने का नाम नहीं ले रहा. समय-समय पर एक-दूसरे के खिलाफ बोलते रहे दोनों नेता एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं.
इस बार तनातनी की वजह है निकाय चुनाव. प्रदेश में नवंबर में निकाय चुनाव होने हैं. इन चुनावों को लेकर कांग्रेस के अंदर भारी उठापटक शुरू हो गई है. राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने मेयर और स्थानीय निकाय के प्रमुखों के चयन को लेकर सरकार की ओर से दिए गए फॉर्मूले पर नाराजगी जताई है. झुंझुनू में चुनाव प्रचार करने पहुंचे उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के बगैर चुनाव लड़े मेयर बनने के फैसले पर नाराजगी जताई.
पायलट ने कहा कि पहले तो मेयर और स्थानीय निकाय प्रमुखों के सीधे चुनाव करने के फैसले को हमने पलटा, मगर इस पर कैबिनेट में चर्चा किए बगैर हमने बैकडोर एंट्री का प्रावधान कर दिया. इसमें चुनाव नहीं लड़ने वाला व्यक्ति भी मेयर या सभापति बन सकता है. उन्होंने कहा कि मैं इस निर्णय को गलत मानता हूं. इसे लेकर संगठन में कोई चर्चा नहीं की गई. उपमुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार कर रहा था, तब मंत्री ने यह निर्णय लिया है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र से आते ही अपना मत व्यक्त कर दिया है.
गहलोत ने दिया जवाब
सचिन पायलट के नाराजगी जताने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी जवाबी हमला बोल दिया. पायलट की नाराजगी को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव में कई बार लोग अलग-अलग भूमिका में होते हैं. काम बंटे होने से व्यस्तता बढ़ जाती है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इसलिए इस तरह का प्रावधान किया गया है. जो भी मेयर बनेगा वह पार्षदों का विश्वास हासिल करके ही बनेगा.
क्या है पूरा मामला
गहलोत सरकार में स्वायत्त शासन मंत्री और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी शांति धारीवाल ने गुरुवार को नगर निगम और स्थानीय निकाय के चुनाव में मेयर और स्थानीय निकाय प्रमुख के चयन को लेकर एक हाइब्रिड फार्मूला दिया था. इस फॉर्मूले के अनुसार स्थानीय निकाय का चुनाव नहीं लड़ने वाला व्यक्ति भी मेयर और स्थानीय निकाय प्रमुख बन सकता है.
सरकार की ओर से इस फॉर्मूले के पीछे संसद और विधानसभा का तर्क दिया गया था. यह कहा गया था कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने वाला व्यक्ति भी जिस तरह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बन सकता है उसी तरह से पार्षद का चुनाव नहीं लड़ने वाला व्यक्ति भी मेयर और सभापति बन सकता है.
दो मंत्रियों ने जताई थी नाराजगी
इस फॉर्मूले को लेकर गहलोत मंत्रिमंडल के खाद्य मंत्री रमेश मीणा और फिर परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने विरोध दर्ज कराया था. दोनों ही नेता सचिन पायलट गुट के माने जाते हैं. अब जिस तरह से सूबे की सत्ता के शीर्ष दो पदों, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पर काबिज कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं के बीच निकाय चुनाव से ठीक पहले मतभेद सामने आया है, पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है.