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झोपड़ी में चलता है यह स्कूल, सर्दी में आग जलाने के लिए लकड़ी घर से लाते हैं बच्चे

पिछले पांच साल से ऐसा सरकारी स्कूल चल रहा है, जिसमें भवन के नाम पर एक झोपड़ी है. इसी झोपड़ी में एक टीचर पढ़ाने आता है. यही एक ही टीचर सर्वेसर्वा है यानी प्राचार्य से चपरासी तक.

झोपड़ी में चलने वाला स्कूल झोपड़ी में चलने वाला स्कूल
शरत कुमार
  • जयपुर,
  • 14 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 10:22 PM IST

राजस्थान के पाली जिले के रवारची के जीझाड़ी गांव में पिछले पांच साल से ऐसा सरकारी स्कूल चल रहा है, जिसमें भवन के नाम पर एक झोपड़ी है. इसी झोपड़ी में एक टीचर पढ़ाने आता है. यही एक ही टीचर सर्वेसर्वा है यानी प्राचार्य से चपरासी तक.

स्कूल में कोई बोर्ड तक लगाने की जगह नहीं है. स्कुल का नाम लिखने के लिए सरकारी टॉयलेट का सहारा लिया गया है, जो बिना गेट का बना है. उसी पर स्कूल का नाम लिखा है, जैसे टॉयलेट में ही स्कूल चलता है. बच्चों के बैठने की दरी- पट्टी, स्कूल का सामान रखने के लिए, लोहे के बॉक्स का इंतजाम स्थानीय दानदाता से करवाया गया है.

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न बिजली है, न पानी है, न ब्लैक बोर्ड है और न स्कूल का सामान रखने की जगह है. बरसात में तो सुरक्षित जगह देखनी पड़ती है और वर्तमान में तेज सर्दी में बच्चों को एक गोल घेरा बनाकर उस के बीच में आग लगाई जाती है. बच्चे सर्दी में अलाव तापते रहते और गुरुजी पढ़ाते रहते हैं और आग लगाने के लिए सूखी लकड़ी भी बच्चे ही लाते हैं.

मिड-डे मिल का भी अजीब हाल है. जगह नहीं है तो एक ग्रामीण के घर पर मिड-डे मिल बनता है और उसी के घर जाकर बच्चे मिड-डे मिल खाते हैं. गांव वाले के घर में सर्दी में जाकर जमीन पर बैठकर मिड डे मिल खाते हैं.

हालांकि, कुछ साल पहले बच्चों के लिए पानी का हैंडपंप लगाया गया था, मगर पानी इतना खारा है कि टीचर सुबह अपने घर से कैंपर लेकर आता है और उसी पानी को बच्चों को पिलाता है.

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स्कूल के एक मात्र टीचर कानाराम का कहना है कि उच्च अधिकारियों को इस बारे में पता है, लेकिन हम तो अपनी जिम्मेदारी इस परस्थितियों में भी निभा रहे हैं. पंचायत समिति की सदस्य इंदिरा नायक का कहना है कि बच्चों को इस परिस्थिति में पढ़ना मजबूरी है. मगर कोई कुछ भी नही कर रहा है.

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